नवदुर्गा के नौ औषधि स्वरूपों का वर्णन मार्कण्डेय चिकित्सा पद्धति के रूप में किया गया है। चिकित्सा प्रणाली का यह रहस्य वास्तव में ब्रह्माजी ने दिया था जिसे बारे में दुर्गाकवच में संदर्भ मिल जाता है। ये औषधियां समस्त प्राणियों के रोगों को हरने वाली हैं। शरीर की रक्षा के लिए कवच समान कार्य करती हैं। इनके प्रयोग से मनुष्य अकाल मृत्यु से बचकर सौ वर्ष जी सकता है। आइए जानते हैं दिव्य गुणों वाली नौ औषधियों को जिन्हें नवदुर्गा कहा गया है।
प्रथम शैलपुत्री यानी हरड़
नवदुर्गा का प्रथम रूप शैलपुत्री माना गया है। कई प्रकारकी समस्याओं में काम आने वाली औषधि हरड़, हिमावती है जो देवी शैलपुत्री का ही एक रूप हैं। यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है, जो सात प्रकार की होती है। इसमें हरीतिका (हरी) भय को हरने वाली है। पथया – जो हित करने वाली है। कायस्थ – जो शरीर को बनाए रखने वाली है। अमृता – अमृत के समान हेमवती – हिमालय पर होने वाली। चेतकी -चित्त को प्रसन्न करने वाली है। श्रेयसी (यशदाता)- शिवा यानी कल्याण करने वाली।