*अंजनी व केसरी के पुत्र थे हनुमान जिन्होंने एक वानर के रूप में जन्म लिया, हनुमान जी भगवान शिव के 11 वें अवतार हैं !*
*हनुमान जी का जन्म झारखंड के गुमला जिले के अंजन गांव में हुआ था, यहां एक मंदिर में आज भी उनका बाल स्वरूप मौजूद है*
श्रीराम भक्त हनुमान की शक्तियों और चमत्कारों के बारे में कई किस्से और कहानियों मौजूद हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि अंजनी पुत्र हनुमान का जन्म कैसे हुआ था। इसे लेकर भी कई अलग-अलग तरह की मान्यताएं हैं। आइए हनुमान जयंती के इस शुभ अवसर पर आपको पवन पुत्र के जन्म को लेकर स्थापित कुछ ऐसी ही मान्यताओं के बारे में बताते हैं। हनुमान जी का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को हुआ था। हनुमान जी को बल, बुद्धि और विद्या का प्रतीक माना जाता है। हनुमान जी भगवान शिव के 11 वें अवतार हैं। उन्हें संकटमोचक के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस कलयुग में वे ही हैं जो लोगों के संकटों को दूर करते हैं उसका ताजा उदाहरण आज ही हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी कोरोना से मुक्ति दिलाने के लिए हनुमान जी का आव्हान किया है। बताया जाता है कि हनुमान जी का जन्म झारखंड के गुमला जिले के अंजन गांव में हुआ था। इस गांव का नाम उनकी माता अंजना के नाम से जुड़ा है। पहाड़ी पर बसे इस गाँव अंजन धाम में आज भी एक मंदिर में हनुमान जी का बाल स्वरूप मौजूद है, जहां बाल रूप में हनुमान अपनी माता अंजनी की गोद में विराजित हैं। तंत्र-मंत्र में हनुमान की पूजा एक शिर, पंचशिर और एकादश शिर, संकटमोचन, सर्व हितरत और ऋद्धि-सिद्धि के दाता के रूप में होती है। आनंद रामायण के अनुसार हनुमान जी की गिनती आठ अमर देवों में होती है। अन्य सात हैं अश्वत्थामा, बलि, व्यास, विभीषण, नारद, परशुराम और मार्कण्डेय हैं। हनुमान का जन्म एक वानर के रूप में हुआ था। इनकी मां अंजनी एक अप्सरा थीं, जिन्होंने एक श्राप की वजह से पृथ्वी पर वानर के रूप में जन्म लिया था। हालांकि उन्हें ये वरदान भी था कि एक पुत्र को जन्म देने के बाद वह इस श्राप से मुक्त हो जाएंगी। वाल्मीकि की रामायण के मुताबिक, हनुमान के पिता केसरी बृहस्पति पुत्र थे, जो स्वयं राम की सेना के साथ मिलकर रावण के खिलाफ लड़े थे। अंजना और केसरी ने पुत्र प्राप्ति के लिए भगवान शिव की उपासना की थी। इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने ही इन्हें पुत्र का वरदान दिया था। एक अन्य कहानी के अनुसार, हनुमान भी शिव के एक अवतार ही थे। एक पौराणिक मान्यता के अनुसार, मारुति एक वन में अंजनी को देखकर उन पर मोहित हो गए थे। अंजनी गर्भवती हो गईं और इस तरह पवन पुत्र हनुमान का जन्म हुआ। एक दूसरी, मान्यता ये है कि वायु ने अंजनी के कान के रास्ते शरीर में प्रवेश किया और वह गर्भवती हो गईं। एक कहानी में ऐसा भी बताया जाता है कि महाराजा दशरथ ने पुत्रेष्टि यज्ञ से प्राप्त हवि अपनी तीनों रानियों में बांटी थी। इस हवि का एक टुकड़ा गरुड़ उठाकर ले गया और वो टुकड़ा उस स्थान पर गिर गया जहां अंजनी पुत्र प्राप्ति के लिए तपस्या कर रही थी। हवि खाते ही अंजनी गर्भवती हो गई और इस तरह हनुमान का जन्म हुआ। विष्णु पुराण और नारद पुराण के कथानुसार, नारद एक राजकुमारी पर मोहित होकर भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उन्हें अपने जैसा रूप देने के लिए कहा ताकि स्वयंवर में राजकुमारी उन्हें हार पहना सके। उन्होंने विष्णु से हरि मुख की मांग की। हरि भगवान विष्णु का ही दूसरा नाम है। हालांकि विष्णु जी ने नारद को एक वानर का चेहरा दे दिया, जिसे देखे बगैर नाराद स्वयंवर में पहुंच गए। स्वयंवर में एक वानर को देख पूरे दरबार में हंसी के ठहाके लगने लगे। नारद ये बर्दाश्त नहीं कर पाए और उन्होंने विष्णु को श्राप दिया कि एक दिन विष्णु एक वानर पर निर्भर होंगे। हालांकि बाद में विष्णु जी ने नारद से कहा कि उन्होंने जो कुछ किया उनकी भलाई के लिए ही किया। नारद अपनी शक्तियों को कम किए बिना वैवाहिक जीवन में प्रवेश नहीं कर सकते थे। उन्होंने कहा कि संस्कृत में हरि का दूसरा अर्थ वानर ही होता है। ये जानने के बाद नारद अपना श्राप वापस लेना चाहते थे, लेकिन विष्णु ने कहा कि उनका यही श्राप एक दिन वरदान बन जाएगा। कालांतर में हनुमान का जन्म होगा जो भगवान शिव का ही एक रूप होंगे और उनकी सहायता लेकर प्रभु श्रीराम रावण का वध करेंगे।
(संकलन – पवन राठी, केकड़ी )