श्राद्ध पूजन का महत्‍व

अगर पितर रुठ जाएं तो कुंडली में आता है बड़ा दोष
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राजेन्द्र गुप्ता
हिंदु धर्म में श्राद्ध का बड़ा महत्‍व है। कुंडली में पितृ दोष से बड़ा दोष और कुछ नहीं। इसीलिए श्राद्ध पक्ष महत्‍वपूर्ण माने गए हैं हिन्दू धर्म में श्राद्ध का बहुत महत्व है। कहते हैं कि मृत्यु के बाद श्राद्ध करना बेहद जरूरी है। यह मान्यता है कि अगर किसी मनुष्य का विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण ना किया जाए तो उसे धरती से मुक्ति नहीं मिलती और वह आत्मा के रूप में संसार में ही रह जाता है।

ब्रह्म पुराण में इसे कहा गया है श्राद्ध
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ब्रह्म पुराण के अनुसार जो भी वस्तु उचित काल या स्थान पर पितृों के नाम उचित विधि की ओर से ब्राह्मणों को श्रद्धापूर्वक दिया जाए वह श्राद्ध कहलाता है। श्राद्ध के माध्यम से पितृों को तृप्ति के लिए भोजन पहुंचाया जाता है। पिण्ड रूप में पितृों को दिया गया भोजन श्राद्ध का अहम हिस्सा होता है।
इसी के तहत वर्ष में पंद्रह दिन के लिए श्राद्ध तर्पण किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि अगर पितृ रुष्ट हो जाए तो मनुष्य को जीवन में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पितृों की अशांति के कारण धनहानि और संतान पक्ष से समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। संतान-हीनता के मामलों में ज्योतिषी पितृ दोष को अवश्य देखते हैं। ऐसे लोगों को पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।

पितृ पक्ष का महत्व
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ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार देवताओं को प्रसन्न करने से पहले मनुष्य को अपने पित्रों यानि पूर्वजों को प्रसन्न करना चाहिए।
पितृ दोष को सबसे जटिल कुंडली दोषों में से एक माना जाता है। पितृों की शांति के लिए हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक के काल को पितृ पक्ष श्राद्ध होते हैं।
मान्यता है कि इस दौरान कुछ समय के लिए यमराज पितृों को आजाद कर देते हैं ताकि वह अपने परिजनों से श्राद्ध ग्रहण कर सकें।

क्या दिया जाता है श्राद्ध में
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श्राद्ध में तिल, चावल, जौ आदि को अधिक महत्त्व दिया जाता है। साथ ही पुराणों में इस बात का भी जिक्र है कि श्राद्ध का अधिकार केवल योग्य ब्राह्मणों को है। श्राद्ध में तिल और कुशा का सर्वाधिक महत्त्व होता है। श्राद्ध में पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोज्य पदार्थ को पिंडी रूप में अर्पित करना चाहिए। श्राद्ध का अधिकार पुत्र, भाई, पौत्र, प्रपौत्र समेत महिलाओं को भी होता है।

श्राद्ध में कौओं का महत्व
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कौए को पित्रों का रूप माना जाता है। मान्यता है कि श्राद्ध ग्रहण करने के लिए हमारे पितृ कौए का रूप धारण कर नियत तिथि पर दोपहर के समय हमारे घर आते हैं। अगर उन्हें श्राद्ध नहीं मिलता तो वह रुष्ट हो जाते हैं। इस कारण श्राद्ध का प्रथम अंश कौओं को दिया जाता है।

किस तारीख में करना चाहिए श्राद्ध
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सरल शब्दों में समझा जाए तो श्राद्ध दिवंगत परिजनों को उनकी मृत्यु की तिथि पर श्रद्धापूर्वक याद किया जाना है। अगर किसी परिजन की मृत्यु प्रतिपदा को हुई हो तो उनका श्राद्ध प्रतिपदा के दिन ही किया जाता है। इसी प्रकार अन्य दिनों में भी ऐसा ही किया जाता है।

इस विषय में कुछ विशेष मान्यता भी है जो निम्न हैं:
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-पिता का श्राद्ध अष्टमी के दिन और माता का नवमी के दिन किया जाता है।
-जिन परिजनों की अकाल मृत्यु हुई जो यानि किसी दुर्घटना या आत्महत्या के कारण हुई हो उनका श्राद्ध चतुर्दशी के दिन किया जाता है।
-साधु और संन्यासियों का श्राद्ध द्वाद्वशी के दिन किया जाता है।
-जिन पितृों के मरने की तिथि याद नहीं है, उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाता है। इस दिन को सर्व पितृ श्राद्ध कहा जाता है।

राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9611312076
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