अहिंसा और समाजवाद के प्रणेता अग्रवंशी सम्राट महाराजा अग्रसेन Part 1

j k garg
निर्विवाद रूप से किसी भी राष्ट्र या समाज एवं परिवार को उन्नत विकसित और कल्याणकारी बनाने के लिये उसके आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक स्तम्भों का मजबूत होना अति आवश्यक है | इन चारों स्तंभों को दृढ़ करके ही राष्ट्र को प्रगतिशील एवं विकसित देश बनाया जा सकता है | महाराजा अग्रसेनजी इन्हीं चार स्तंभों को मजबूत कर समर्द्धशाली, कल्याणकारी समाजवादी एवं शक्तिशाली राज्य का निर्माण करने में सफल हुए थे | अग्रसेन एक पौराणिक कर्मयोगी लोकनायक होने के साथ साथ अहिंसा और समाजवाद के प्रणेता तपस्वी धर्म परायण दानवीर युग पुरुष थे जिनका जन्म द्वापर युग के अंत वह कलयुग के प्रारंभ में लगभग 5145 वर्ष पूर्व अश्विनशुक्ल प्रतिपदा के दिन प्रताप नगर के सूर्यवंशी राजा वल्लभसेन के यहाँ हुआ था। ऐसा भी कहा जाता है की महाराजा अग्रसेन भगवान श्रीरामके पुत्र कुश की 34 व़ी पीढ़ी के थे | इस मान्यता के मुताबिक अग्रवंशी भगवान राम के वंशस होते है | कहा जाता हे कि महाभारत के दसवें दिन राजा वल्लभसेन वीर गति को प्राप्त हो गये थे |पन्द्रह वर्ष की अल्प आयु मे ही अग्रसेनजी ने महा भारत के धर्मयुद्ध में पांडवो की तरफ से भाग लिया था| कहा जाता है कि भगवा श्रीकृष्ण भी उनकी बुद्धीमता,शोर्य,पराक्रम,समझबुझ से अत्यंत प्रभावित हुए थे और उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि युवा अग्रसेन भविष्य में एक पराक्रमी सम्राट एवं युग पुरुष होंगे |

विवाह —युवा अग्रसेन ने सर्पों के राजा नागराज की बेटी राजकुमारी माधवी के स्वयंवर में अनेकों राजाओं, राजकुमारों और स्वर्ग के सम्राट इंद्रदेव के साथ भाग लिया था | इंद्र देवता राजकुमारी माधवी की सुंदरता पर मोहित थे इसीलिए एन केन प्रकारेण राजकुमारी माधवी से विवाह करना चाहते थे| स्वयंवर में राजकुमारी माधवी ने राजकुमार अग्रसेन का चयन कर उनका वरण किया | अग्रसेन माधवी के विवाह से दो विभिन्न संस्कृतियों एवं परिवारों का मिलन हुआ क्योंकि राजकुमार अग्रसेन जहाँ एक सूर्यवंशी थे वहीं राजकुमारी माधवी एक नागवंशी थी | राजकुमारी माधवी का विवाह अग्रसेन जी के साथ हो जाने से इंद्रदेव बहुत क्रोधित हुए और इन्द्र ने प्रताप नगर के निर्दोष स्त्री-पुरुषों,बालक-बालिकाओं को प्रताड़ित करने हेतु प्रताप नगर पर कई वर्षा तक बारिश नहीं होने दी जिससे प्रताप नगर में भयानक अकाल पड गया | सम्राट अग्रसेन ने अपनी प्रजा एवं प्रताप नगर की सुरक्षा और राजधर्म के पालनार्थ इंद्र के खिलाफ धर्मयुद्ध प्रारम्भ कर दिया | युद्ध में इंद्र की पराजय हुई | पराजित इंद्रने नारदमुनि से अनुनय-विनय कर उनकी सम्राट अग्रसेन से सुलह कराने का निवेदन किया | नारद मुनि ने दोनो के बीच में मध्यस्थता करके सुलह करवा दी |

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