जरा सोचिये और चिंतन मनन कीजिये कि क्या ऐसा हो रहा है? अगर नहीं तो रावण-कुंभकर्ण-मेघनाद के पुतलों को जलाने और भव्य राम लीलाओं को देखने एवं श्री राम की कसमें खाने का क्या औचित्य है? क्यों हम लाखों करोड़ो रूपये पुतले बनाकर उन्हें जलाने में व्यर्थ खर्च करते हैं ? क्यों हमारे मन में काम, क्रोध, लोभ, मद , मोह, आलस्य की जड़ें दिन प्रति दिन मजबूत बनती जा रही है ? क्यों हम पर निंदा करने में सबसे आगे रहते हैं? क्यों हमारी बहन-बेटियां अपहरणकर्ताओं के हाथों रोजाना बेइज्जत होती है? क्यों भ्रष्टाचार का विषाणु हममें आत्मसात हो गया है ? क्यों हमारी कथनी और कथनी में अंतर बढ़ता ही जा रहा है ? क्यों हमारी जुबान पर राम किन्तु बगल में छुरी होती है ? क्यों जरा सी सत्ता मिलते ही हम अहंकारी बन जाते हैं ? कहते हैं कि देवता वो होते हैं जो कभी भी गलतीयां नहीं करते हैं,वहीं मनुष्य वें होते हैं जो दूसरों की गलतीयों से सीखकर खुद वैसी गलतीयां नहीं करते हैं, वहीं मूढ़ व्यक्ति वो होता है जो बार बार गलतीयां करता है, उन्हें दोहराता है और अपने को सुधारने का कोई प्रयास भी नहीं करता है |