अधर्म पर धर्म अहंकार पर विनम्रता असत्य पर सत्य की विजय का पर्व विजयादशमी part 5

j k garg
हम सभी को इन तामसिक आदतों के विनाशकारी नतीजों के बारे में आत्ममंथन करना होगा |क्रोध एक माचिस की तिली है जो दूसरों को जलाने से पूर्व खुद को ही जला डालती है | क्रोध में हम अपना विवेक एवं मानसिक संतुलन खो कर अपना ही नुकसान करते हैं| क्रोधित होकर हम सफलता के सभी दरवाजे बंद कर देते हैं |

हमारे दुर्व्यसन यानि धूम्रपान, मिथ्या वचन, दूसरों के साथ मारपीट करना, दूसरों को अपमानित करना एवं प्रताड़ित करना, शराब पीना हमें सन्मार्ग से हटा कर विनाश के गर्त में ढकेल कर हमारे और हमारे स्वजनों के जीवन को नारकीय और कष्ट मय बना देता है|

आलस्य आदमी को उसके कर्मों से विमुख कर देता है, उसकी बुद्धि मंद हो जाती है जिससे समाज में उसकी कोई अहमियत नहीं होती है और वह उपेक्षा का पात्र बनता है|

तलवार से लगे घावों को तो भरा जा सकता है किन्तु कटु-कर्कश वाणी के घावों को कभी भी नहीं भरा जा सकता है ,कर्कश वाणी सिर्फ शत्रु पैदा कर सोहार्दता को समूल नष्ट करती है | काम वासना योनाचार-अनाचार की जननी है | आदमी काम वासनाओं से अपने को चरित्रहीन बना लेता है एवं अनेकों अनैतिक कार्यो को कर अनेक बीमारियों को बुलावा देता है | काम वासना के वशीभूत होकर ही रावण ने ने माता सीता का बलात अपहरण किया जिसके परिणाम स्वरूप वह भगवान राम के हाथों मारा गया।

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