धनतेरस आज

राजेन्द्र गुप्ता
इस वर्ष धन तेरस पर्व मंगलवार को मनाई जाएगी। धनतेरस का पर्व 02 नबंवर 2021को कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी की तिथि पर मनाया जाता है। मान्यता के अनुसार धनतेरस का पर्व कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी की तिथि को मनाया जाता है। इस पर्व का संबंध धन और समृद्धि से माना गया है। इस दिन भगवान धन्वंतरि देव की विशेष पूजा की जाती है।

धनतेरस पर ऐसा माना जाता है कि इस दिन ही भगवान धन्वंतरि का जन्म हुआ था। इसी कारण इसे धन्वंतरि जयंती और धन त्रयोदशी भी कहा जाता है। इस दौरान बाजार से आभूषण, वाहन, बर्तन आदि खरीदकर घर में लाने को शुभ माना गया है।

धनतेरस का महत्व
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धनतेरस पर धन्वंतरि देव और मां लक्ष्मी की पूजा का विधान बताया गया है। लक्ष्मी जी को धन की देवी माना गया है। लक्ष्मी जी की कृपा से वैभव, सुख समृद्धि प्राप्त होती है। जिन लोगों पर लक्ष्मी जी का आशीर्वाद बना रहता है, उनका जीवन कष्ट, बाधा और परेशानियों से मुक्त रहता है। इस दिन शुभ मुहूर्त में विधि पूर्वक पूजा करने से धन्वंतरि देव और लक्ष्मी जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

धनतेरस 2021- तिथि और मुहूर्त
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धनतेरस तिथि- 02 नवंबर 2021, मंगलवार
प्रदोष काल- शाम 05:35 से 08:11 तक
वृषभ काल- शाम 06:18 से शाम 08:14 तक
धनतेरस 2021 पूजन शुभ मुहूर्त- शाम 06:18 से 08:11 तक

धनतेरस पर वाहन, घर, संपत्ति, सोना, चांदी, बर्तन, कपड़े, धनिया, झाड़ू आदि खरीदने का महत्व है। इस दिन सभी लोग शुभ महूर्त में ये वस्तुएं खरीदते हैं।

खरीदारी के लिए दिन का मुहूर्त
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त्रिपुष्कर योग : सुबह 06:06 से 11:31 तक। इस योग में खरीदारी शुभ रहेगी।
धनतेरस मुहूर्त : 06 बजकर 18 मिनट और 22 से 08 बजकर 11 मिनट और 20 सेकंड तक का मुहूर्त है, इस काल में पूजा भी होती है।
अभिजीत मुहूर्त : सुबह 11:42 से दोपहर 12:26 तक। यह मुहूर्त खरीदारी के लिए यह शुभ है.
विजय मुहूर्त : दोपहर 01:33 से 02:18 तक

शाम और रात के मुहूर्त :
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गोधूलि मुहूर्त : शाम 05:05 से 05:29 तक
प्रदोष काल : 5:35 मिनट और 38 सेकंड से 08 बजकर 11 मिनट और 20 सेकंड तक रहेगा। इस काल में पूजा की जा सकती है।

धनतेरस मुहूर्त शाम का
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06:18:22 से 08:11:20 तक। इस काल में पूजा और खरीदी दोनों हो सकती है।
वृषभ काल– शाम 06:18 से 08:14: तक
निशिता मुहूर्त- रा‍त्र‍ि 11:16 से 12:07 तक

दिन का चौघड़िया
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लाभ- प्रात: 10:43 से 12:04 तक
अमृत- दोपहर 12:04 से01:26 तक
शुभ- दोपहर 02:47 से 04:09 तक

रात का चौघड़िया :
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लाभ- 07:09 से 08:48 तक.
शुभ- 10:26 से 12:05 तक.
अमृत- 12:05 से 01:43 तक

भगवान धन्वंतरि की कथा
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पौराणिक मान्यता के अनुसार धन्वंतरि देव को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है। इन्हें 12वां अवतार भी माना गया है। धन्वंतरि को आयुर्वेद का जन्मदाता भी कहा गया है। इसीलिए इन्हें देव चिकित्सक का दर्जा प्राप्त है। धन्वंतरि भगवान का जन्म समुद्र मंथन से हुआ था। कार्तिक मास की त्रयोदशी की तिथि में समुद्र मंथन से भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए थे। भगवान धन्वंतरि कई ग्रंथों के रचयिता भी हैं। धन्वंतरि संहिता की रचना भी धन्वंतरि देव ने ही की थी, जो आयुर्वेद का मूल ग्रंथ माना जाता है।

धनतेरस की पौराणिक कथा
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कार्तिक कृ्ष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन धनतेरस का पर्व पूरी श्रद्धा व विश्वास के साथ मनाया जाता है। धनवंतरी के अलावा इस दिन,देवी लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की भी पूजा करने की मान्यता है। इस दिन को मनाने के पीछे धनवंतरी के जन्म लेने की कथा के अलावा, इसके बारे में एक दूसरी कहानी भी प्रचलित है।

कहा जाता है कि एक समय भगवान विष्णु मृत्युलोक में विचरण करने के लिए आ रहे थे तब लक्ष्मी जी ने भी उनसे साथ चलने का आग्रह किया। तब विष्णु जी ने कहा कि यदि मैं जो बात कहूं तुम अगर वैसा ही मानो तो फिर चलो। तब लक्ष्मी जी उनकी बात मान गईं और भगवान विष्णु के साथ भूमंडल पर आ गईं। कुछ देर बाद एक जगह पर पहुंचकर भगवान विष्णु ने लक्ष्मी जी से कहा कि जब तक मैं न आऊं तुम यहां ठहरो। मैं दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूं,तुम उधर मत आना। विष्णुजी के जाने पर लक्ष्मी के मन में कौतूहल जागा कि आखिर दक्षिण दिशा में ऐसा क्या रहस्य है जो मुझे मना किया गया है और भगवान स्वयं चले गए।

लक्ष्मी जी से रहा न गया और जैसे ही भगवान आगे बढ़े लक्ष्मी भी पीछे-पीछे चल पड़ीं। कुछ ही आगे जाने पर उन्हें सरसों का एक खेत दिखाई दिया जिसमें खूब फूल लगे थे। सरसों की शोभा देखकर वह मंत्रमुग्ध हो गईं और फूल तोड़कर अपना श्रृंगार करने के बाद आगे बढ़ीं। आगे जाने पर एक गन्ने के खेत से लक्ष्मी जी गन्ने तोड़कर रस चूसने लगीं।

उसी क्षण विष्णु जी आए और यह देख लक्ष्मी जी पर नाराज होकर उन्हें शाप दे दिया कि मैंने तुम्हें इधर आने को मना किया था,पर तुम न मानी और किसान की चोरी का अपराध कर बैठी। अब तुम इस अपराध के जुर्म में इस किसान की 12 वर्ष तक सेवा करो। ऐसा कहकर भगवान उन्हें छोड़कर क्षीरसागर चले गए। तब लक्ष्मी जी उस गरीब किसान के घर रहने लगीं।

एक दिन लक्ष्मीजी ने उस किसान की पत्नी से कहा कि तुम स्नान कर पहले मेरी बनाई गई इस देवी लक्ष्मी का पूजन करो,फिर रसोई बनाना,तब तुम जो मांगोगी मिलेगा। किसान की पत्नी ने ऐसा ही किया। पूजा के प्रभाव और लक्ष्मी की कृपा से किसान का घर दूसरे ही दिन से अन्न,धन,रत्न,स्वर्ण आदि से भर गया। लक्ष्मी ने किसान को धन-धान्य से पूर्ण कर दिया। किसान के 12 वर्ष बड़े आनंद से कट गए। फिर 12 वर्ष के बाद लक्ष्मीजी जाने के लिए तैयार हुईं।

विष्णुजी लक्ष्मीजी को लेने आए तो किसान ने उन्हें भेजने से इंकार कर दिया। तब भगवान ने किसान से कहा कि इन्हें कौन जाने देता है,यह तो चंचला हैं, कहीं नहीं ठहरतीं। इनको बड़े-बड़े नहीं रोक सके। इनको मेरा शाप था इसलिए 12 वर्ष से तुम्हारी सेवा कर रही थीं। तुम्हारी 12 वर्ष सेवा का समय पूरा हो चुका है। किसान हठपूर्वक बोला कि नहीं अब मैं लक्ष्मीजी को नहीं जाने दूंगा।

तब लक्ष्मीजी ने कहा कि हे किसान तुम मुझे रोकना चाहते हो तो जो मैं कहूं वैसा करो। कल तेरस है। तुम कल घर को लीप-पोतकर स्वच्छ करना। रात्रि में घी का दीपक जलाकर रखना और शायंकाल मेरा पूजन करना और एक तांबे के कलश में रुपए भरकर मेरे लिए रखना,मैं उस कलश में निवास करूंगी। किंतु पूजा के समय मैं तुम्हें दिखाई नहीं दूंगी। इस एक दिन की पूजा से वर्ष भर मैं तुम्हारे घर से नहीं जाऊंगी। यह कहकर वह दीपकों के प्रकाश के साथ दसों दिशाओं में फैल गईं। अगले दिन किसान ने लक्ष्मीजी के कथानुसार पूजन किया। उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया। इसी वजह से हर वर्ष तेरस के दिन लक्ष्मीजी की पूजा होने लगी।

राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9611312076
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