संकष्टी चतुर्थी व्रत आज

राजेन्द्र गुप्ता
हर माह में पड़ने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। संकष्टी चतुर्थी भगवान गणेश को समर्पित होती है। इस बार मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली चतुर्थी 23 नवंबर मंगलवार की पड़ रही है। बुद्धि और शुभता के देव गणेश जी की संकष्टी चतुर्थी के दिन विधि-विधान से पूजा-अर्चना और उपासना की जाती है। मान्यता है कि संकष्टी चतुर्थी पर व्रत आदि करने से विघ्नहर्ता प्रसन्न होते हैं और भक्तों के सभी विघ्नों का नाश कर उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।

संकष्टी चतुर्थी तिथि और शुभ मुहूर्त
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मार्गशीर्ष मास कृष्ण पक्ष चतुर्थी आरंभ- 22 नवंबर 2021 दिन सोमवार रात 10 बजकर 26 मिनट से
मार्गशीर्ष मास कृष्ण पक्ष चतुर्थी समापन- 24 नवंबर 2021 12 बजकर 55 मिनट पर ए एम तक
चंद्रोदय का समय- 20:27:02

संकष्टी चतुर्थी व्रत का महत्व
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कहते हैं कि किसी भी शुभ कार्य की शुरुआक भगवान गणेश के पूजन की जाती है। बुधवार का दिन गणेश भगवान को समर्पित है। भक्तों के विघ्न दूर करने वाले विघ्नहर्ता भगवान गणेश विघ्न विनाशक और विघ्नहर्ता के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि चतुर्थी तिथि पर गणेश जी का पूजन और ध्यान कर उन्हें जल्द प्रसन्न किया जा सकता है। गणेश जी का पूजन करने से जीवन में सकारात्मकता आती है। अपने भक्तों की विपदाओं को दूर करके गणपति महाराज सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।

संकष्टी चतुर्थी पूजन विधि
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संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रत रखने से पहले प्रातः जल्दी उठकर स्नानादि कर लें और इसके पश्चात पीले या लाल रंग के वस्त्र धारण करें।

इसके बाद मंदिर की साफ-सफाई करें और गणेश जी के समक्ष दीपक प्रज्वलित करें।

गणेश जी को सिंदूर लगाकर तिलक करें और फल-फूल आदि अर्पित करते हुए विधिवत पूजन करें।

दूर्वा की 21 गांठें अर्पित कर लड्डू या मोदक का भोग लगाएं। पूजन पूर्ण होने के बाद क्षमायाचना करते हुए गणेश जी की आरती करें। इतना ही नहीं, इस दिन चंद्र दर्शन और अर्घ्य का भी विधान है।

पौराणिक कथा
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पार्वती जी ने गणेश जी से पूछा कि अगहन कृष्ण चतुर्थी संकटा कहलाती है, उस दिन किस गणेश की पूजा किस रीति से करनी चाहिए?

गणेश जी ने उत्तर दिया कि हे हिमालयनंदनी! अगहन में पूर्वोक्त रीति से गजानन नामक गणेश की पूजा करनी चाहिए। पूजन के बाद अर्घ्य देना चाहिए। दिन भर व्रत रहकर पूजन के बाद ब्राह्मण को भोजन कराकर जौ, तिल, चावल, चीनी और घृत का शाकला बनाकर हवन कराएं तो वह अपने शत्रु को वशीभूत कर सकता हैं। इस संबंध में हम एक प्राचीन इतिहास सुनाते हैं।

प्राचीन काल में त्रेतायुग में दशरथ नामक एक प्रतापी राजा थे। वे राजा आखेट प्रिय थे। एक बार अनजाने में ही उन्होंने एक श्रवणकुमार नामक ब्राह्मण का आखेट में वध कर दिया। उस ब्राह्मण के अंधे मां-बाप ने राजा को शाप दिया कि जिस प्रकार हम लोग पुत्रशोक में मर रहे हैं, उसी भांति तुम्हारा भी पुत्रशोक में मरण होगा। इससे राजा को बहुत चिंता हुई। उन्होंने पुत्रेष्टि यज्ञ कराया। फलस्वरूप जगदीश्वर ने राम रूप में अवतार लिया। भगवती लक्ष्मी जानकी के रूप में अवतरित हुई।

पिता की आज्ञा पाकर भगवान राम, सीता और लक्ष्मण सहित वन को गए जहां उन्होंने खर-दूषण आदि अनेक राक्षस व राक्षसियों का वध किया। इससे क्रोधित होकर रावण ने सीताजी का अपहरण कर लिया। सीता जी की खोज में भगवान राम ने पंचवटी का त्याग कर दिया और ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंचकर सुग्रीव के साथ मैत्री की। तत्पश्चात सीता जी की खोज में हनुमान आदि वानर तत्पर हुए। ढूंढते-ढूंढते वानरों ने गिद्धराज संपाती को देखा। इन वानरों को देखकर संपाती ने पूछा कि कौन हो? इस वन में कैसे आये हो? तुम्हें किसने भेजा है? यहां पर तुम्हारा आना किस प्रकार हुआ है।

संपाती की बात सुनकर वानरों ने उत्तर दिया कि भगवान विष्णु के अवतार दशरथ नंदन रामजी, सीता और लक्ष्मण जी के साथ दंडकवन में आए हैं। वहां पर उनकी पत्नी सीताजी का अपरहण कर लिया गया है। हे मित्र! इस बात को हम लोग नहीं जानते कि सीता कहां है?

उनकी बात सुनकर संपाती ने कहा कि तुम सब रामचंद्र के सेवक होने के नाते हमारे मित्र हो। जानकी जी का जिसने हरण किया है और वह जिस स्थान पर है वह मुझे मालूम है। सीता जी के लिए मेरा छोटा भाई जटायु अपने प्राण गंवा चुका है। यहां से थोड़ी ही दूर पर समुद्र है और समुद्र के उस पार राक्षस नगरी है। वहां अशोक के पेड़ के नीचे सीता जी बैठी हुई है। रावण द्वारा अपह्रत सीता जी अभी भी मुझे दिखाई दे रही हैं। मैं आपसे सत्य कह रहा हूं कि सभी वानरों में हनुमान जी अत्यंत पराक्रमशाली है। अतः उन्हें वहां जाना चाहिए। केवल हनुमान जी ही अपने पराक्रम से समुद्र लांघ सकते हैं। अन्य कोई भी इस कार्य में समर्थ नहीं है।

संपाती की बात सुनकर हनुमान जी ने पूछा कि हे संपाती! इस विशाल समुद्र को मैं किस प्रकार पार कर सकता हूं? जब हमारे सब वानर उस पार जाने में असमर्थ हैं तो मैं ही अकेला कैसे पार जा सकता हूं?

हनुमान जी की बात सुनकर संपाति ने उत्तर दिया कि हे मित्र, आप संकटनाशक गणेश चतुर्थी का व्रत कीजिए। उस व्रत के प्रभाव से आप समुद्र को क्षणभर में पार कर लेंगे। संपाती के आदेश से संकट चतुर्थी के उत्तम व्रत को हनुमान जी ने किया। हे देवी, इसके प्रभाव से हनुमान जी क्षणभर में समुद्र को लांघ गए। इस लोक में इसके सामान सुखदायक कोई दूसरा व्रत नहीं हैं।

श्रीकृष्ण जी कहते हैं कि महाराज युधिष्ठर, आप भी इस व्रत को कीजिए। इस व्रत के प्रभाव से आप क्षणभर में अपने शत्रुओं को जीतकर सम्पूर्ण राज्य के अधिकारी बनेंगे। भगवान कृष्ण का वचन सुनकर युधिष्ठर ने गणेश चतुर्थी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से वे अपने शत्रुओं को जीतकर राज्य के अधिकारी बन गए।

राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9611312076

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