सादगी सज्जनता की प्रति मूर्ति प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र बाबू एवं उनके जीवन के प्रेरणादायक संस्मरण पार्ट 3

प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र बाबू के जीवन के प्रेरणादायक संस्मरण

अंगेज को सिखाया पाठ

j k garg
एक बार राजेंद्र बाबू नाव से अपने गांव जा रहे थे। राजेंद्र बाबू के नजदीक ही एक अंग्रेज बैठा हुआ था। कुछ देर बाद अंग्रेज ने उन्हें तंग करने के लिए एक सिगरेट सुलगा ली और उसका धुआं जानबूझकर राजेंद्र बाबू की ओर फेंकता रहा। कुछ देर तक राजेंद्र बाबू चुप रहे। लेकिन वह काफ़ी देर से उस अंग्रेज की इस हरकत को सहन नहीं पाये। कुछ सोचकर वह अंग्रेज से बोले, ‘महोदय, यह जो सिगरेट आप पी रहे हैं क्या आपकी की ही है?’ यह प्रश्न सुनकर अंग्रेज व्यंग्य से बोला, ‘अरे, मेरी नहीं तो क्या तुम्हारी है? ’ अंग्रेज के इस वाक्य पर राजेंद्र बाबू बोले, महोदय ‘अगर विदेशी और महंगी सिगरेट आपकी है। तो फिर इसका धुआं भी आपका ही हुआ न। तब ईस जहरीले धुएं को हम पर क्यों फेंक रहे हो? सिगरेट आपकी है इसलिए इसका धुआं भी आपका है आप अपनी चीज संभाल कर रखो। इसका धुआं हमारी ओर नहीं आना चाहिए। अगर इस बार धुआं हमारी और आया तो सोच लेना कि तुम अपनी जबान से ही मुकर रहे हो। तुम्हारी चीज तुम्हारे पास ही रहनी चाहिए | राजेन्द्र बाबू की बात को सुनकर बेचारा अंग्रेज सकपकाया और उसने अपनी जलती हुई सिगरेट को बुझा दिया।

कॉलेज में भोले बाले देहाती राजेन्द्र बाबू का पहला दिन

सरल एवं निष्कपट स्वभाव वाले बिहार के सीध भोले ग्रामीण युवक राजेन्द्र प्रसाद बिहार पहली बार 1902 में कलकत्ता में प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश हेतु आया था | अपनी कक्षा में जाने पर ग्रामीण युवक वहां के छात्रों को फटी आँखों से ताकते रह गये क्योंकि वहाँ सभी छात्र नगें सिर एवं सभी पश्चिमी वेशभूषा पहने हुवे थे इसलिये उन्होंने सोचा ये सब के सब एंग्लो-इंडियन हैं किन्तु जब हाजिरी बोली गई तो राजेन्द्र को यह जानकर आश्चर्य हुआ कि वे सभी हिन्दुस्तानी थे। जब राजेन्द्र प्रसाद का नाम हाजिरी के समय नहीं पुकारा गया तो उन्होंने हिम्मत जुटा कर हिचकते हुए अपने प्रोफेसर को पूछा कि उनका नाम क्यों नहीं लिया गया। प्रोफेसर उनके देहाती कपड़ों को घूरता ही रहा एवं चिल्ला कर बोला“ठहरो”, मैंने अभी स्कूल के लड़कों की हाज़िरी नहीं ली है |राजेन्द्र प्रसाद ने हठ किया कि वह भी प्रेसीडेंसी कॉलेज के छात्र हैं और उन्होंने प्रोफेसर को अपना नाम भी बताया। अब कक्षा के सभी छात्र उन्हें उत्सुकतावश देखने लगे क्योंकि उस वर्ष राजेन्द्र प्रसाद विश्वविद्यालय में प्रथम आये थे, प्रोफेसर ने तुरंत अपनी गलती को सुधार कर सम्मान से उनका नाम पुकारा और इस तरह राजेन्द्र प्रसाद के कॉलेज जीवन की शुरुआत हुई।

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