युग प्रवर्तक युवा सम्राट स्वामी विवेकानंद part 4

j k garg
एक समय में एक काम करो, और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ। स्वामीजी ने संकेत दिया था कि विदेशों में भौतिक समृद्धि तो है और उसकी भारत को जरूरत भी है भारतीयों को याचक नहीं बनना चाहिये। स्वामी विवेकानंद का यह कथन अपने देश की धरोहर के लिये दम्भ का बड़बोलापन नहीं था किन्तु एक सच्चे वेदांत संत की भारतीय सभ्यता और संस्कृति की तटस्थ, वस्तुपरक और मूल्यगत आलोचना थी।स्वामी विवेकानन्द परमात्मा में विश्वास से अधिक अपने आप पर विश्वास करने को अधिक महत्व देते थे। स्वामी जी ने कहा कि जीवन में हमारे चारों ओर घटने वाली छोटी या बड़ी, सकारात्मक या नकारात्मक सभी घटनायें हमें अपनी असीम शक्ति को प्रकट करने का अवसर प्रदान करती है।

स्वामीजी के मुताबिक़ विनम्रता से किसी भी जटिल परिस्थिति को हल्का किया जा सकता है और प्रेम के धागे को टूटने से बचाया जा सकता है। स्वामी विवेकानंद के मन में हमेशा अपने आपसे यह सवाल करते थे कि क्या सच में भगवान है? रामकृष्ण जी ने उनके इस प्रश्न के उत्तर में कहा, “हाँ, मैंने भगवान को देखा है ठीक वैसे ही जैसे अभी मैं तुम्हें देख रहा हूँ। भगवान तो हर जगह व्याप्त है, बस तुम्हें उन्हें देखने के लिए वो दृष्टि चाहिए” | अपने गुरु की बात सुनकर उनको विश्वास हो गया कि ईशवर है | स्वामीजी ने अपना सारा जीवन अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस देव को समर्पित कर दिया | रामक्रष्ण जी ने अपनी महा समाधि लेने पूर्व अपने शिष्य नरेन्द्र को अपने सीने से लगाकर कहा आज मेने अपनी सारी साधना और सिद्धियां को तुम्हें सुपुर्द कर दिया और में खाली हो गया हूँ |

error: Content is protected !!