प्रजातंत्र (लोकतंत्र) और गणतन्त्र एवं भारतीय संविधान पार्ट 4

j k garg
हमारे संविधान निर्माताओं का स्पष्ट मत था कि न्याय पालिका, कार्यपालिका और विधायकी अपने आप में पूर्णतया स्वतंत्र रूप में कार्य करें कोई भी एक दुसरे के कार्य को प्रभावित करने की कोशिश नहीं करें | पिछले अनेकों सालों से ऐसा लगता है कि सामर्थ्य व्यक्ति या संस्था इस मूल भावना के विपरीत काम कर रही है वे एक दूसरे के कामों में अप्रत्यक्ष रूप से हस्तक्षेप करते हैं |

वर्तमान में समाज और देश के हालात को देख कर ऐसा लगने लगा है कि हम सभी अत्यंत निष्क्रिय इन्सान बन गये हैं और हम सभी ने अपने आप को उनके यानि राजनेताओं के भरोसे छोड़ दिया है और हम कभी उनसे सवाल नहीं करते हैं |हम अपनी तुच्छताओं के अंदर विभाजित हो गये है | हमको कभी जाति प्रभावित करती है तो कभी धर्म , कभी मन्दिर तो कभी मसिज्द तो कभी गिरजाघर तो कभी गुरुदुवारे तो कभी श्मसान तो कभी कब्रिस्तान | हम राज नेताओं के आने पर उनकी ही दी हुई फूलमालाओं और गुलदस्तों से उनका स्वागत करते हैं, उनके साथ फोटो खिचवा के नाचते हैं और यह गलत फहमी पाल कर कि अब उनकी क्रपा से हम लोगों के अच्छे दिन आने वाले हैं | किसी बुद्दीजीवी और समझदार व्यक्ति ने बिलकुल सही कहा कि हमें वैसी ही सरकारें और मार्गदर्शन करने वाले मिलते हैं जिसके हम पात्र होते है | जब हम बदलेगें और हमारी सोच बदलेगी तभी उनकी सोच बदलेगी और सरकारों की सोच एवं कार्यशेली भी बदलेगी |

डा.जे.के. गर्ग
पूर्व संयुक्त निदेशक कालेज शिक्षा , जयपुर

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