dr. j k gargपरशुराम जी ने शिवजी को प्रसन्न करने के लिये अनेक बार तपस्या पूजा अर्चना की थी |शिवजी ने परशुराम को वरदान देते हुए कहा कि परशुराम का जन्म धरती के राक्षसों का नाश करने के लिए हुआ है | इसलिए भगवान शिव ने परशुराम को, देवताओं के सभी शत्रु, दैत्य, राक्षस तथा दानवों को मारने में सक्षमता का वरदान दिया | हिन्दू धर्म में विश्वास रखने वाले अनेक ज्ञानी, पंडितो के मतानुसार धरती पर रहने वालों में परशुराम और रावण के पुत्र इंद्रजीत को ही सबसे खतरनाक, अद्वितीय और शक्तिशाली अस्त्र – ब्रह्मांड अस्त्र, वैष्णव अस्त्र तथा पशुपति अस्त्र प्राप्त थे |· दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है | परशु अर्थात “कुल्हाड़ी” तथा “राम”. इन दो शब्दों कोमिलाने पर “कुल्हाड़ी के साथराम”अर्थनिकलता है |जैसे राम, भगवान विष्णु के अवतार हैं| उसी प्रकारपरशुराम भी विष्णु के अवतार हैं | इसलिए परशुराम को भी विष्णु जी तथारामजी के समान शक्तिशाली माना जाता है |· परशुराम के अनेकनाम हैं.उन्हें रामभद्र, भार्गव, भृगुपति, भृगुवंशी (ऋषिभृगु के वंशज),जमदग्नि(जमदग्निके पुत्र) के नाम से भी जाना जाता है | भगवान राम ने सीता स्वयंवर के समय राजा जनक कीशर्त की अनुपालन में भगवान शिव के धनुष को तोड़ दिया और उनका माता सीता के साथविवाह हो गया | शिव धनुष के तोड़े जाने के समाचार को सुनकरशिव भक्त परशुराम अपना आपा खोकर क्रोधित होते हुवे राजा जनक की राज सभा पहुंचे |राज सभा में उनका लक्ष्मणजी के साथ तीर्व वादविवाद हुआ और उनके मध्यलड़ाई की नोबत आ गई | मर्यादा पुरषोंतम राम ने अत्यंत शालीनताके साथ उनसे बात करके उनके क्रोध को शांत किया | परशुरामअपनी योग शक्ति से मालुम पड़ा कि उनके सामने भगवानविष्णु के अवतार भगवान राम खुद खड़े हैं | अपने इस अनुभूतिकी पुष्टि करने के लिये परशुराम ने विष्णु काप्रिय धनुष गांडीव भगवान राम को देते हुए उसको संधान करने को कहा | भगवान रामने एक तीर प्रत्यंचा पर चढ़ाई और महर्षि परशुराम से कहा कि वे अब इस तीर को खालीनहीं छोड़ सकते. वे बताएं कि वे इसे किस पर चलाये | तबपरशुराम जी ने भगवान राम से आग्रह किया कि वे उस तीर के माध्यम से उनके अहंकार कोनष्ट करने की कृपा करें | इसके बाद परशुराम जी प्रसन्न मन से महेन्द्र पर्वत पर निवास करनेके लिये चले गये |धार्मिक मान्यता है कि भगवान परशुराम जी को अमरता का वरदान प्राप्तहै और आज भी वे उसी महेन्द्र पर्वत पर निवास करते हैं