हिन्दू मुसलमानों के मसीहा लोक देवता रामदेव—रामसापीर

रामापीर का प्रसिद्ध मेला उत्तर भारत में धूमधाम गाजेबाजे के साथ हर साल दस दिन भाद्रपद शुक्ल 2 से भाद्रपद शुक्ल 11तक मनाया जाता है इस वर्ष यह मेला7 17 सितंबर 2023 से 26 सितम्बर 2023 तक मनाया जा रहा है ।राजस्थान से ही नहीं गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश से भी हजारों श्रद्धालु यहां दर्शन करने आते हैं।रामदेवरा मेला में हज़ारों भक्त दूर-दूर से बड़े-बड़े समुहों में नाचते गाते-भजन कीर्तन करते हुये पैदल, बसों,कारों, बेलगाड़ियों ट्रेक्टर,या अन्य साधनों से आते है मुसलमानों के मसीहा लोक देवता रामदेव जी रामदेव पीर, रामसा पीर, के नामों से जाने जाते हैं |

j k garg
निसंदेह रामदेवजी का मन्दिर हिन्दू और मुसलमानों की आस्था का केंद्र है और हिन्दुस्तान की गंगा जमुना साँझा संस्कृति की अद्भुत मिशाल पेश करता है इस पवित्र जगह को साम्प्रदायिक सद्दभाव संगम स्थल भी कहा जाये तो अतिशयोक्ति नहीं होगी | | विक्रम संवत1409 की भादवा शुक्ल दूज के दिन पश्चिम राजस्थान के पोकरण शहर के नजदीक रुणिचा नामक स्थान के शासक अजमल के घर बाबा रामदेव का अवतार हुआ था |राजस्थान के जन जन के मसीहा पांच पीरों मे बाबा रामसा पीर का प्रमुख स्थान है। बाबा रामदेव तंवर राजपूत थे जिसे मान्यताओं के मुताबिक भगवान विष्णु के अवतार के रूप में पूजा जाता है। मान्यताओं के मुताबिक राजा अजमल ने पुत्र प्राप्ति हेतु दान पुण्य और अनेकों यज्ञ किये | द्वारकाजी में अजमल जी को भगवान के साक्षात दर्शन हुए तब राजा अजमल ने उनसे उनके घर में उनके पुत्र के रूप में जन्म लेने की याचना की तब भगवान द्वारकानाथ ने राजा अजमल ने कहा मैं तुम्हे वचन देता हूँ कि तुम्हारा पहला बेटा वीरमदेव होगा और दूसरे बेटे के रूप में मै खुद तुम्हारे आपके घर आउंगा।

भगवान ने यह भी कहा कि जब में अवतरित होउगां तब उस रात आपके राज्य के जितने भी मंदिर है उसमें घंटियां अपने आप बजने लग जायेगी,महल में जो भी पानी होगा वह दूध में बदल जाएगा तथा मुख्य द्वार से जन्म स्थान तक कुमकुम के पैर नजर आयेंगे वहीं आकाशवाणी भी सुनाई देगी और में रामदेव जी के नाम से प्रसिद्ध हो जाउँगा। कहा जाता है कि श्री रामदेव जी के जन्म लेते ही ऐसी सभी चमत्कारिक घटनाएं घटित हुई | समय के साथ-साथ बाबा रामदेव जी की प्रसिद्धि भारतवर्ष के साथ दुनिया के अनेकों देशों में फेल गई। बाबा रामदेव जी से प्रभावित होकर उस समय के हजारों हिन्दू जो मुसलमान बन गये थे पुनः हिन्दू धर्म में परिवर्तित होने लगे |

रारामदेव जी के बचपन की अद्भुत घटनायें एक दिन सुबह रामदेव एवं विरमदेव अपनी माता मैणादे की गोद में खेल रहे तब उनकी मां दूध को गर्म करने के लिये उसे भगोनी में डाल कर चूल्हे पर चढ़ाने चली गई, उसी वक्त रामदेव जी अपनी माता को चमत्कार दिखाने के लिये अपने बड़े भाई विरमदेव जी के गाल पर चुमटी काट दी जिससे विरमदेव को क्रोध आ गया और उन्होंने राम देव को धक्का मार कर गिरा दिया | रामदेवजी गिर गये और रोने लगे हैं। रामदेव जी के रोने की आवाज सुनकर माता मैणादे दूध को चुल्हे पर ही छोड़कर उनके पास आ गई और रामदेव जी गोद में लेकर पुछ्कारने लगी | उधर दूध को भगोनी के बाहर गिरता देखती माता मैणादे रामदेवजी को गोदी से नीचे उतारना चाह रही थी किन्तु उन्होंने उस वक्त देखा रामदेवजी अपना हाथ दूध की ओर करके अपनी देव शक्ति से उस बर्तन को चूल्हे से नीचे आसानी से जमीन पर रख दिया। यह चमत्कार देखकर माता मैणादे वह वहीं पर उपस्थित पिता अजमलजी तथा नोकर चाकर अचम्भित होकर भगवान द्वारकानाथ की जय जयकार करने लगे ।कपड़े के घोड़े को आकाश में उड़ना बालक रामदेव ने अपने पिता से खिलोने वाले घोड़े की जिद की तब राजा अजमल ने खिलोने वाले को चन्दन और मखमली कपडे का घोड़ा बनाने को कहा। कीमती मखमली कपड़ों को देख खिलोने वाले के मन में लालच आ गया और उसने बहुत सारा कपडा अपनी पत्नी के लिये रख लिया और और बहुत कम कपड़े से घोडा बना कर राजा को दे दिया । जब बालक रामदेव घोड़े पर बैठे तो घोड़ा उन्हें लेकर आकाश में चला ग़या। राजा खिलोने बनाने वाले पर गुस्सा होते उसे जेल में डाल दिया। कुछ समय पश्चात, बालक रामदेव वापस घोड़े के साथ आये। खिलोने वाले ने राजसी कपड़े को चुराने की बात कबूल कर रामदेवजी से उसे राजा के क्रोध से बचाने के लिये प्राथना की, बाबा रामदेव ने दया दिखाते हुए उसे माफ़ किया। आज भी, कपड़े वाला घोड़ा बाबा रामदेव की खास बढ़ावा माना जाता है।मदेव जी के चमत्कारी पर्चे और चमत्कार

दलितों के मसीहा रामदेव बाबा को एक अनाथ लडकी डाली बाई एक पेड़ के नीचे मिली थी। यह पेड़ मंदिर से 3 किमी दूर हाईवे के पास बताया गया है | जन्म से तो बाबा रामदेव क्षत्रिय थे लेकिन उन्होंने डाली बाई को अपने घर बहन-बेटी की तरह रखकर उसका पालन-पोषण कर समाज को यह संदेश दिया कि कोई छोटा या बड़ा नहीं होता

सिरोही निवासी एक अंधे साधु को परचा
मान्यताओं के अनुसार एक अंधा साधु सिरोही से कुछ अन्य लोगों के साथ रुणिचा में बाबा के दर्शन करने के लिए निकला। सभी पैदल चलकर रुणिचा आ रहे थे। रास्ते में थक जाने के कारण अंधे साधु के साथ सभी लोग एक गांव में पहुंचकर रात्रि विश्राम करने के लिए रुक गए। आधी रात को जागकर सभी लोग अंधे साधु को वहीं छोड़कर चले गए। जब अंधा साधु जागा तो वहां पर कोई नहीं मिला और इधर-उधर भटकने के पश्चात वह एक खेजड़ी के पास बैठकर रोने लगा। उसे अपने अंधेपन पर इतना दुःख हुआ जितना और कभी नहीं हुआ था। रामदेवजी अपने भक्त के दुःख से द्रवीभूत हो उठे और वे तुरंत ही उसके पास पहुंचे। उन्होंने उसके सिर पर हाथ रखकर उसके नेत्र खोल दिए और उसे दर्शन दिए। उस दिन के बाद वह साधु वहीं रहने लगा। उस खेजड़ी के पास रामदेव जी के चरण (पग लिए) स्थापित करके उनकी पूजा किया करता था। कहा जाता है वहीं पर उस साधु ने समाधि ले ली |
हिन्दू मुसलमानों के मसीहा लोक देवता रामदेव—रामसापीर

रामापीर का प्रसिद्ध मेला उत्तर भारत में धूमधाम गाजेबाजे के साथ हर साल दस दिन भाद्रपद शुक्ल 2 से भाद्रपद शुक्ल 11तक मनाया जाता है इस वर्ष यह मेला7 17 सितंबर 2023 से 26 सितम्बर 2023 तक मनाया जा रहा है ।राजस्थान से ही नहीं गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश से भी हजारों श्रद्धालु यहां दर्शन करने आते हैं।रामदेवरा मेला में हज़ारों भक्त दूर-दूर से बड़े-बड़े समुहों में नाचते गाते-भजन कीर्तन करते हुये पैदल, बसों,कारों, बेलगाड़ियों ट्रेक्टर,या अन्य साधनों से आते है मुसलमानों के मसीहा लोक देवता रामदेव जी रामदेव पीर, रामसा पीर, के नामों से जाने जाते हैं |

निसंदेह रामदेवजी का मन्दिर हिन्दू और मुसलमानों की आस्था का केंद्र है और हिन्दुस्तान की गंगा जमुना साँझा संस्कृति की अद्भुत मिशाल पेश करता है इस पवित्र जगह को साम्प्रदायिक सद्दभाव संगम स्थल भी कहा जाये तो अतिशयोक्ति नहीं होगी | | विक्रम संवत1409 की भादवा शुक्ल दूज के दिन पश्चिम राजस्थान के पोकरण शहर के नजदीक रुणिचा नामक स्थान के शासक अजमल के घर बाबा रामदेव का अवतार हुआ था |राजस्थान के जन जन के मसीहा पांच पीरों मे बाबा रामसा पीर का प्रमुख स्थान है। बाबा रामदेव तंवर राजपूत थे जिसे मान्यताओं के मुताबिक भगवान विष्णु के अवतार के रूप में पूजा जाता है। मान्यताओं के मुताबिक राजा अजमल ने पुत्र प्राप्ति हेतु दान पुण्य और अनेकों यज्ञ किये | द्वारकाजी में अजमल जी को भगवान के साक्षात दर्शन हुए तब राजा अजमल ने उनसे उनके घर में उनके पुत्र के रूप में जन्म लेने की याचना की तब भगवान द्वारकानाथ ने राजा अजमल ने कहा मैं तुम्हे वचन देता हूँ कि तुम्हारा पहला बेटा वीरमदेव होगा और दूसरे बेटे के रूप में मै खुद तुम्हारे आपके घर आउंगा।

भगवान ने यह भी कहा कि जब में अवतरित होउगां तब उस रात आपके राज्य के जितने भी मंदिर है उसमें घंटियां अपने आप बजने लग जायेगी,महल में जो भी पानी होगा वह दूध में बदल जाएगा तथा मुख्य द्वार से जन्म स्थान तक कुमकुम के पैर नजर आयेंगे वहीं आकाशवाणी भी सुनाई देगी और में रामदेव जी के नाम से प्रसिद्ध हो जाउँगा। कहा जाता है कि श्री रामदेव जी के जन्म लेते ही ऐसी सभी चमत्कारिक घटनाएं घटित हुई | समय के साथ-साथ बाबा रामदेव जी की प्रसिद्धि भारतवर्ष के साथ दुनिया के अनेकों देशों में फेल गई। बाबा रामदेव जी से प्रभावित होकर उस समय के हजारों हिन्दू जो मुसलमान बन गये थे पुनः हिन्दू धर्म में परिवर्तित होने लगे |

रामदेव जी के बचपन की अद्भुत घटनायें एक दिन सुबह रामदेव एवं विरमदेव अपनी माता मैणादे की गोद में खेल रहे तब उनकी मां दूध को गर्म करने के लिये उसे भगोनी में डाल कर चूल्हे पर चढ़ाने चली गई, उसी वक्त रामदेव जी अपनी माता को चमत्कार दिखाने के लिये अपने बड़े भाई विरमदेव जी के गाल पर चुमटी काट दी जिससे विरमदेव को क्रोध आ गया और उन्होंने राम देव को धक्का मार कर गिरा दिया | रामदेवजी गिर गये और रोने लगे हैं। रामदेव जी के रोने की आवाज सुनकर माता मैणादे दूध को चुल्हे पर ही छोड़कर उनके पास आ गई और रामदेव जी गोद में लेकर पुछ्कारने लगी | उधर दूध को भगोनी के बाहर गिरता देखती माता मैणादे रामदेवजी को गोदी से नीचे उतारना चाह रही थी किन्तु उन्होंने उस वक्त देखा रामदेवजी अपना हाथ दूध की ओर करके अपनी देव शक्ति से उस बर्तन को चूल्हे से नीचे आसानी से जमीन पर रख दिया। यह चमत्कार देखकर माता मैणादे वह वहीं पर उपस्थित पिता अजमलजी तथा नोकर चाकर अचम्भित होकर भगवान द्वारकानाथ की जय जयकार करने लगे ।कपड़े के घोड़े को आकाश में उड़ना बालक रामदेव ने अपने पिता से खिलोने वाले घोड़े की जिद की तब राजा अजमल ने खिलोने वाले को चन्दन और मखमली कपडे का घोड़ा बनाने को कहा। कीमती मखमली कपड़ों को देख खिलोने वाले के मन में लालच आ गया और उसने बहुत सारा कपडा अपनी पत्नी के लिये रख लिया और और बहुत कम कपड़े से घोडा बना कर राजा को दे दिया । जब बालक रामदेव घोड़े पर बैठे तो घोड़ा उन्हें लेकर आकाश में चला ग़या। राजा खिलोने बनाने वाले पर गुस्सा होते उसे जेल में डाल दिया। कुछ समय पश्चात, बालक रामदेव वापस घोड़े के साथ आये। खिलोने वाले ने राजसी कपड़े को चुराने की बात कबूल कर रामदेवजी से उसे राजा के क्रोध से बचाने के लिये प्राथना की, बाबा रामदेव ने दया दिखाते हुए उसे माफ़ किया। आज भी, कपड़े वाला घोड़ा बाबा रामदेव की खास बढ़ावा माना जाता है।

जन के सेवक और उनके कष्टों को मिटाने वाले रामसापीर रामदेवजी ने राजा बनकर नही अपितु जनसेवक बनकर गरीबों, दलितों, असाध्य बीमारियों से पीड़ित रोगियों व जरुरत मंदों की हर सम्भव से सहायता और सेवा की। उनकी दया के पात्र हिन्दुओं के साथ मुस्लिम भी होते थे |

रामदेव जी के अनोखे चमत्कार बोहिता को परचा व परचा बाबड़ी रामदेव जी ने सेठ बोहिताराज से वादा किया कि जब कभी तुम पर कोई संकट आयेगा तब मैं तुम्हारी मदद करूगां | सेठ बोहितराज ने विदेश में व्यापार हेतु गये अपार धन- सम्पदा अर्जित की उन्होंने रामदेव जी के लिए हीरों का बहुमूल्य हार भी खरीद कर अपने नौकरों को आदेश दिया कि हीरे जवाहरात नाव में भर दें तभी देव योग से भयंकर तूफान आया से नाव का पैदा फट गया है जिससे डूबने लगी, सभी अपनी मौत को सामने देख कर अपने सारे देवी देवताओं से अपने जीवन को बचाने की प्रार्थना करने लगे किन्तु किसी देवता ने मदद नहीं की | यकायक बोहितराज रामदेव जी से जीवन की भीख मांगते हुए मदद के लिये पुकारने लगे। उधर श्री रामदेव जी रूणिचा में अपने भाई वीरमदेव जी के साथ बैठे थे | रामदेवजी ने बोहिताराज की पुकार सुनी। भगवान रामदेव जी ने अपनी भुजा का फेलाव किया और रोहित राज की डूबती नाव को खीच कर किनारे पर ले आये। यह काम इतनी शीघ्रता से हुआ कि पास में बैठे भाई वीरमदेव को भी पता तक नहीं चलने दिया | नव को खीच कर लेन से उनका हाथ समुद्र के पानी से भीग गया गए सेठ रोहित राज अपनी नाव को सही सलामत किनारे पर पाकर खुशी से झूम कर बोले कि जिसकी रक्षा करने वाले जन जन के देवता रामसापीर हैं उसका कोई बाल बांका भी नहीं कर सकता। गांव पहुंचकर सेठ दोनों हाथ जोड़ कर बाबा की सेवा में उन्क्के दरबार में जाकर बोला कि मैं धन दोलत से लालची बन गया एवँ आपको भूल गया था मेरे मुझे अपने अपराध के लिये क्षमा करें और आदेश करें कि मैं इन हीरों जवाहरात को कहाँ और कैसे खर्च करूँ। रामदेव जी उसे तुरंत आदेश दिया इस डोलत से रूणिचा में एक बावड़ी खुदवा दो | भवन की दया से बावड़ी का पानी मीठा होगा तथा लोग इसे परचा बावड़ी के नाम से पुकारेंगे व इस बावडी का पानी गंगा जल के समान पवित्र होगा। रामदेवरा मे आज भी यह अद्भुत चमत्कारिक बावड़ी मौजूद है |

संवत् 1442 में अपने हाथ में श्रीफल लेकर अपने सारे बुजुर्गों को प्रणाम किया, सभी उपस्थित भक्तों ने पत्र पुष्प चढ़ाकर रामदेव जी का श्रद्धा से अन्तिम पूजन किया। रामदेव जी ने समाधी में खड़े होकर सब के प्रति अपने अन्तिम उपदेश देते हुए कहा “प्रति माह की शुक्ल पक्ष की दूज को पूजा पाठ, भजन कीर्तन करके पर्वोत्सव मनाना, रात्रि जागरण करना। प्रतिवर्ष मेरे जन्मोत्सव के उपलक्ष में तथा अन्तर्ध्यान समाधि होने की स्मृति में मेरे समाधि स्तर पर मेला लगेगा। मेरे समाधी पूजन में किसी से भेदभाव मत रखना। मैं सदैव अपने भक्तों के साथ रहुँगा” ऐसा कहकर रामदेव जी महाराज ने समाधि ले ली।

रामदेव मन्दिर मंदिर के समीप ही स्वयं रामदेव जी द्वारा खुदवाई गई परचा बावड़ी अपनी स्थापत्य कला में बेजोड़ है। इस बावड़ी का निर्माण फाल्गुन सुदी तृतीया विक्रम संवत् 1897 को पूर्ण हुआ। बावड़ी का जल शुद्ध व मीठा है। बावड़ी का निर्माण रामदेव जी के कहने पर बाणिया बोयता ने करवाया था। बावड़ी पर लगे चार शिलालेखों से पता चलता है कि घामट गांव के पालीवाल ब्राह्मणों ने इसका पुनर्निर्माण कराया था। इस बावड़ी का जल रामदेवजी का अभिषेक करने के काम में लाया जाता है।

समाधी स्थल के पास ही रामदेव जी की परम भक्त शिष्या डाली बाई की समाधि और कंगन हैं। डाली बाई का कंगन पत्थर से बना है और इसके प्रति धर्मालुओं में गहरी आस्था है। मान्यता के अनुसार इस कंगन के अन्दर से होकर निकलने पर सभी प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं। मंदिर आने वाले लोग इस कंगन के अन्दर से निकलने पर ही अपनी यात्रा पूर्ण मानते हैं।

रामदेवरा मंदिर बीकानेर के महाराजा श्री गंगा सिंह जी ने रामदेवजी के वर्तमान मंदिर का निर्माण सन् 1939 में करवाया था, उस वक्त इसके निर्माण पर 57 हजार रुपये व्यय हुए थे। रामदेवरा मंदिर अपने आप में अनोखा है क्योंकि यहाँ बाबा रामदेव की मूर्ति भी है और मजार भी । माना जाता है कि बाबा के पवित्रा राम सरोवर में स्नान से अनेक चर्म रोगों से मुक्ति मिलती है । रामदेवरा मंदिर में आस पास के श्रद्धालुओं के साथ साथ राजस्थान के दूरदराज एवं गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश आदि प्रान्तों के हजारों श्रद्धालु भी आते हैं। पैदल यात्रियों के समूह मेले के दिन से बहुत पहले से बाबा की जयकार करते हुये, भजन कीर्तन करते हुए बाबा के दर्शन करने और मनोती मांगने पहुचते है | इन श्रद्धालुओं के चाय-पानी तथा खाने पीने के लिए रास्तों में अनगनित भंडारे स्थानीय भक्तों दुवारा लगाये जाते हैं | यहां कोई न छोटा होता है न कोई बड़ा | यहां मंदिर में नारियल, पूजन सामग्री और प्रसाद की भेंट चढाई जाती है । मंदिर के बाहर और धर्मशालाओं में सैकड़ों यात्रियों के खाने-पीने का इंतजाम होता है । मेले के दौरान बाबा के मंदिर में दर्शन के लिए चार से पांच किलोमीटर लंबी कतारें लगती हैं | निसंतान दम्पत्ति कामना से अनेक अनुष्ठान करते हैं तो मनौती पूरी होने वाले बच्चों का झडूला उतारते हैं और सवामणी करते हैं । रोगी रोगमुक्त होने की आशा करते हैं तो दुखी आत्माएं सुख प्राप्ति की कामना । यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि सेकड़ो श्रद्धालु पहले जोधपुर में बाबा के गुरु के मसूरिया पहाड़ी स्थित मंदिर में भी दर्शन करना नहीं भूलते हैं और उसके बाद जैसलमेर की तरफ रामदेवरा मन्दिर की तरफ कूच करते हैं | बहुत से लोग रामदेवरा में मन्नत भी मांगते हैं और मुराद पूरी होने पर कपड़े का घोड़ा बनाकर मंदिर में चढ़ाते हैं |निसंदेह रामदेवजी का मन्दिर हिन्दू और मुसलमानों की आस्था का केंद्र है और हिन्दुस्तान की साँझा संस्क्रती की मिशाल पेश करता है |

डा जे के गर्ग
पूर्व संयुक्त निदेशक कॉलेज शिक्षा जयपुर

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