जाने माने बैंक अधिकारी वेद माथुर का सेवा काल पूर्ण, उनकी जुबानी…

फिर मिलेंगे

वेद माथुर
वेद माथुर
पंजाब नैशनल बैंक जैसे गौरवशाली संस्थान में 39 वर्ष की संतोषजनक सेवा पूर्ण करना किसी भी पीएनबी परिवार के सदस्य के लिए गौरव का विषय हो सकता है। अपनी इस लम्बी यात्रा के दौरान मुझे हजारों लोगों को आवास ऋण, शिक्षा ऋण, स्वरोजगार ऋण आदि देकर अथवा बचत खाते खोलकर सहायता करने का मौका मिला। कुरान शरीफ में कहा गया है कि यदि अपने सीमित साधनों में से किसी विधवा की सेवा या हज में से कोई एक विकल्प चुनना हो तो सेवा का विकल्प चुनना चाहिए। अन्य धर्मों की भी यही भावना रही है। अतः मैं पीएनबी के इस सफर को ‘तीर्थ यात्रा’मानता हूँ।
श्रीगंगानगर की अनाज मण्डी शाखा से शुरू हुआ मेरा बैंकिंग सफर प्रधान कार्यालय में समाप्त हो रहा है और विविध क्षमताओं में कार्य कर यहां तक पहुँचने का सौभाग्य कम ही लोगों को मिलता है। मुझे शाखाओं, अंचल कार्यालय, आरसीसी, ट्रेनिंग सैण्टर सहित सभी तरह के कार्यस्थलों पर कार्य करने का मौका मिला। जयपुर जैसे खूबसूरत शहर से लेकर पाकिस्तान सीमा क्षेत्र से सटे सम जैसे दुर्गम गांव में कार्य करने का अवसर मिला, इसी प्रकार जबलपुर जैसे अपेक्षाकृत पिछड़े और गुजरात जैसे समृद्ध मंडल का नेतृत्व करने का सौभाग्य भी मुझे प्राप्त हुआ। आईबीए की “कूवरजी होरमुसजी भाभा फ़ेलोशिप (Cooverjee Hormusjee Bhabha fellowship)” के अंतर्गत रिसर्च कर प्रथम पुरस्कार प्राप्त करने का भी सुअवसर मुझे मिला।
इस यात्रा में अपने अजमेर प्रवास को मैं स्वर्ण काल मानता हॅूं, जहां मैंने हजारों आवास ऋण एवं सैकड़ों कार ऋण किए।
आफिसर्स एसोसिएशन की राजस्थान इकाई (शत प्रतिशत सदस्यता) का नेतृत्व करने का भी मुझे मौका मिला और उस दौरान हमनें जयपुर व जोधपुर में एसोसिएशन के अतिथिगृह बनवाए, जो ‘मील का पत्थर‘ सिद्ध हुए।
मेरी इस यात्रा की सबसे बड़ी उपलब्धि बैंक के बाहर और भीतर बड़ी संख्या में दीर्घावधि संबंध विकसित होना रहा।
मेरा विजन कभी भी बैंकिंग लेन-देन करना, अपने प्रोडक्ट ग्राहक को बेचना अथवा जमा, अग्रिम और कासा बढ़ाना नहीं रहा बल्कि मेरा विजन ग्राहकों के साथ पारदर्शी, ईमानदार, सोहाद्रपूर्ण एवं लम्बी अवधि के संबंध विकसित करना रहा। व्यवसाय इन संबंधों तथा सदैव उत्साहपूर्वक दूसरों की सहायता करने की प्रवृत्ति का स्वाभाविक सह-उत्पाद है।
बैंकिंग के अपने इन अनुभवों को मैं अपनी पुस्तक ‘मनी एंड मंकीज’ (money and monkeys)के माध्यम से आप लोगों से साझा करने जा रहा हूँ, जो हिन्दी एवं अग्रेजी दोनों ही भाषाओँ उपलब्ध होगी|आशा है कि यह पुस्तक आप तक अगले छः माह में पहुँच जाएगी।
मेरी यह छोटी सी सफलता कथा आपके एवं अन्य मित्रों के सहयोग के बिना असम्भव थी। इसके लिए मैं आपका सदैव आभारी रहूँगा| कृपया अपना सहयोग व स्नेह पूर्ववत् बनाए रखें।
बैंक में व्यतीत आनंदमय सफर में मिली स्मृतियां मैंने अपने मन-मस्तिष्‍क में संग्रहीत कर ली हैं, ये सदैव मेरा उत्साहवर्द्धन करेंगी।
बैंक से विदा लेने के बाद फिलहाल मैं अजमेर लौट रहा हूँ, जहां मेरे आवास गृह ‘सुकून‘ (ए-367, पंचशील मार्ग, माकडवाली रोड़, अजमेर) में आप सभी का सदैव स्वागत है।
इन पंक्तियों के साथ मैं फिलहाल अपनी बात समाप्त करता हूँ:
“कामयाबी ए सफ़र में धूप बड़ी काम आई,
छांव अगर होती तो सो गये होते”
आदर और शुभकामनाओं सहित,
भवदीय
(वेद माथुर)

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