क्रिकेट के अलावा बाकी खेलों से होता मोहभंग

(29 अगस्त 2015 खेल दिवस पर विशेष)
brahmanand rajpurtखेल कई नियम, कायदों द्वारा संचालित ऐसी गतिविधि है जो हमारे शरीर को फिट रखने में मदद करती है। आज इस भागदौड भरी जिन्दगी में अक्सर हम खेल के महत्व को दरकिनार कर देते हैं। आज के समय में जितना पढना-लिखना जरूरी है, उतना ही खेल-कूद भी जरूरी है। एक अच्छे जीवन के लिए जितना ज्ञानी होना जरूरी है, उतना ही स्वस्थ्य होना जरूरी है। ज्ञान हमें पढने-लिखने से मिलता है और अच्छा स्वास्थ्य शरीर हमें खेल-कूद से मिलता है।
दुनिया में खिलाडियों और खेल प्रेमियों की कमी नहीं है। दुनियां के प्रसिद्ध खेलों (फुटबाल, क्रिकेट, शतरंज, टेनिस, टेबल टेनिस, बैडमिंटन तथा हॉकी-प्रशंसकों की हमारे देश भारत में भरमार है। चाहें क्रिकेट हो, चाहें हॉकी हो, चाहें बैडमिंटन हो, चाहें टेनिस हो, चाहें कुश्ती हो, चाहें निशानेबाजी हो और चाहें बॉक्सिंग हो इन सभी खेलों में भारतीय खिलाडियों ने सफलता के झंडे गाढे हैं। विश्व पटल पर भारत देश का नाम ऊँचा किया है और विभिन्न अन्तर्राष्टीय प्रतियोगिताओं में भारत को विभिन्न पदक दिलाये हैं। चाहे ओलम्पिक खेल हों, चाहें कॉमनवेल्थ गेम्स हों, चाहें एशियन गेम्स हों और चाहें विभिन्न प्रतियोगिताओं की विश्व चौंपियनशिप प्रतियोगिताएं हो हर जगह भारतीय खिलाडियों ने अपने खेल के माध्यम से देश का नाम रोशन करने के साथ-साथ खेल प्रेमियों का दिल जीता है। यह भारत देश और भारत के लोगों के लिए बडे ही गौरव की बात है। देश में प्रतिभाओ की कमी नहीं है बल्कि प्रतिभाओ को खोजने वाले संसाधनों की कमी है।
लेकिन बडे दुःख की बात है कि जैसे हिंदी और सभी भारतीय क्षेत्रीय भाषाओं को अंग्रेजी से दबाया जा रहा है। उसी प्रकार सभी खेलों को क्रिकेट से दबाया जा रहा है। यह बडी विडंबना है भारत देश के लिये, आज हमारे देश में राष्ट्रीय खेल हॉकी कि हालत दयनीय है। जिस हॉकी में भारत ने ओलम्पिक में कई पदक जीते, आज उस हॉकी के खिलाडियों को देश में प्रोत्साहन नहीं दिया जाता है। हॉकी के साथ-साथ ऐसे बहुत सारे खेल हैं, जिनकी हालत भी हॉकी कि तरह है। इन खेलों में खिलाडियों को कोचिंग की देश में उचित व्यवस्था नहीं मिलती और न ही देश और प्रदेश की सरकारें देश के राष्ट्रीय खेल हॉकी और विभिन्नं खेलों पर ध्यान देती हैं। इसलिए देश के होनहारों का क्रिकेट के अलावा सारे खेलों से मोहभंग होता जा रहा है। इसके लिए जरूरत है सरकारों को क्रिकेट के साथ-साथ सभी खेलों को प्रोत्साहन देना चाहिए और ऐसे कार्यक्रम बनाने चाहिए जिससे कि सभी भावी खिलाडियों का रुझान क्रिकेट के साथ-साथ बाकी सभी खेलों कि तरफ भी बढे। और विभिन्न खेलों में भी उन्हें अपना भविष्य नजस आये।
आज क्रिकेट की दुनिया में भारतीय टीम विश्व कि नंबर वन टीमों में गिनी जाती है। क्योंकि भारत देश में क्रिकेट को बढावा दिया जा रहा है। साथ ही साथ हम जितना आगे क्रिकेट में बढ रहे हैं, उतना नीचे बाकी खेलों में गिर रहे हैं। चाहे अपने राष्ट्रीय खेल हॉकी कि बात ही क्यों न की जाए। यह सच्चाई है। इस सच्चाई को देश की सरकारों को अपनी आँखों पर बंधी पट्टी को हटाकर देखना चाहिए।
आज क्रिकेट में जिधर देखेंगे पैसा है, शोहरत है नाम है और चकाचौंध है लेकिन जो मूल क्रिकेट है वो इस २०-२० के चकाचौंध में खोता जा रहा है। क्रिकेट के जो मूल प्रारूप है चाहें वो टेस्ट क्रिकेट हो, चाहें वह वन डे क्रिकेट हो इनको २०-२० क्रिकेट ने बहुत नुकसान पहुँचाया है। इसलिए आज जितना काम हमें बाकी खेलों पर करना है। उतना काम हमें क्रिकेट के मूल प्रारूपों को वापिस लाने पर करना है।
आज खेल दिवस है। आज के दिन उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले खिलाडियों को राष्ट्रपति भवन में भारत के राष्ट्रपति द्वारा खेलों में विशेष योगदान देने के लिए राष्ट्रीय खेल पुरस्कारों से सम्मानित हिया जायेगा। आज का दिन एक खिलाडी के लिये बहुत खास होता है। लेकिन बडे दुर्भाग्य की बात है इन खेल पुरस्कारों को देने में आज राजनीति होती है। खिलाडी इन पुरस्कारों को पाने के लिये कोर्ट तक पहुंच जाते हैं। आज खिलाडियों को भी यह ध्यान देना चाहिये कि कोई भी सम्मान या पुरस्कार मांगने से नहीं मिलता। बल्कि एक सच्चे खिलाडी की मेहनत, परिश्रम और प्रदर्शन से उसके पास खुद व खुद चलकर आ जाता है। और साथ-साथ जरुरी है कि खेल पुरस्कार वितरित करने में सरकार द्वारा पूरी निष्पक्षता और पारदर्शिता बरती जाये जिससे कि एक खिलाडी का मनोबल न टूटे।
आज भी भारत देश में लोगों द्वारा खेल को उतना महत्व नहीं दिया जाता ह,ै जितना जरूरी है। माता पिता आज भी चाहतें हैं कि उनका बेटा बडा होकर जगह डाक्टर बने, इंजीनियर बने या उसे कोई अच्छी सी नौकरी मिले। लेकिन जरूरत है अपनी सोच और नजरिया दोनों बदलने की जिससे कि हॉकी, फुटबाल, क्रिकेट, शतरंज, टेनिस, टेबल टेनिस, बैडमिंटन तथा जितने भी खेल हैं उनका स्तर बढ सके और हर खेल में लोगों कि रूचि पैदा हो। और भारत देश खेलों के क्षेत्र में विश्व में अपना डंका बजा सके। आज खेल दिवस है जो कि महान खिलाडी मेजर ध्यानचंद जी कि याद में मनाया जाता है। सालों से मेजर ध्यानचंद को भारत-रत्न देने कि मांग की जा रही है। लेकिन भारतीय सरकारें सालों से इस मांग को टाल रही हैं। मोदी सरकार को इस ओर विचार करना चाहिए।
– ब्रह्मानंद राजपूत, दहतोरा, आगरा
(Brahmanand Rajput) Dehtora, Agra
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