जन जन के पूज्यनीय लोक देवता तेजाजी -Part 3

डा. जे.के.गर्ग
डा. जे.के.गर्ग
अपनी बहिन राजल को उसके ससुराल से लोटा आने के बाद तेजाजी ने अपनी माँ और भाभी से पनेर जाने की इजाजत मागीं | माँ-भाभी ने पंडितजी की सलाह के बाद कहा कि वे दो महिने बाद शुभ मुहूर्त पर जायें तब तेजाजी बोले “जंगल के शेर को कहीं जाने के लिए मुहूर्त निकलवाने की जरुरत नहीं होती है “| अगली सुबह तेजाजी अपनी लीलण घोड़ी पर सवार होकर अपनी पत्नी पेमल को लाने के निकल पड़े और बारह कोस का चक्कर लगा कर अपनी ससुराल पनेर आ पहुँचे | वहाँ किसी अज्ञानता के कारण ससुराल पक्ष से उनकी अवज्ञा हो गई। नाराज तेजाजी वहाँ से वापस लौटने लगे तभी पेमल से उनकी प्रथम भेंट उसकी सहेली लाछा गूजरी के यहाँ हुई। तेजाजी बिना पेमल को लिए वापस अपने घर लोटने का तय कर चुके थे | लाछां गूजरी ने पेमल का सन्देश दिया और कहा कि “अगर तेजाजी उसे छोड़ कर गए, तो वह जहर खा कर मर जाएगी “ | तेजाजी के लाछां गूजरी के साथ लोट आने पर पेमल तेजाजी की घोडी लीलण के सामने खड़ीं होकर कहने लगी “आपके इंतजार में मैंने इतने वर्ष निकाले हैं | मेरे साथ घर वालों ने कैसा बर्ताव किया यह मैं ही जानती हूँ | आज आप चले गए तो मेरा क्या होगा | मुझे भी अपने साथ ले चलो | मैं आपके चरणों में अपना जीवन न्यौछावर कर दूँगी” | रूपवती पेमल की व्यथा देखकर तेजाजी पोल में रुके, और आपस में बात करने लगे तभी यकायक उन्हें लाछां के पैरों की आहट सुनाई दी, लाछां गुजरी ने तेजाजी से विनती की कि “मेर के मेणा डाकू उसकी गायों को चुरा कर ले गए हैं, इसलिए तेजाजी आप मेरी गायों को डाकुओं से छुड़ा कर लायें | तेजाजी गायों को लाने के अपने पांचों हथियार लेकर अपनी घोडी लीलण पर सवार हए | पेमल ने घोड़ी की लगाम पकड़ कर कहा कि मैं भी आपके साथ चलूंगी और लड़ाई में घोड़ी थाम लूंगी तब तेजाजी ने बोला “ पेमल जिद्द मत करो, मैं अकेला ही मेणा डाकुओं को हराकर गायें वापिस ले आऊंगा “ | तेजाजी ने भाला, धनुष, तीर लेकर घोडी लीलण पर बैठ करके डाकुओं का पीछा किया, रास्ते में वे जब चोरों का पीछा कर रहे थे, उसी समय उन्हें एक काला नाग आग में झुलजता दिखाई दिया तब तेजाजी ने फूर्ती से भाले के द्वारा नाग को आग से बाहर निकाला ,यह इच्छाधारी बासक नाग था | बासग नाग ने उन्हें शाबासी देने बजाय यह कहा कि मैं तुझे डसूंगा | तेजाजी ने कहा – मरते, डूबते व जलते को बचाना मानव का धर्म है, मैंने तुम्हारा जीवन बचाया है, कोई बुरा काम नहीं किया. भलाई का बदला बुराई से क्यों देना चाहते हो ? नागराज ने फुंफकार कर दोष दिया कि वे उसकी नाग की योनी से मुक्ति में बाधक बने हैं | शूरवीर तूने मेरी जिन्दगी बेकार कर दी एवं मुझे आग में जलने से रोककर तुमने अनर्थ किया है | मैं तुझे डसूंगा तभी मुझे मोक्ष मिलेगा | तेजाजी ने प्रायश्चित स्वरूप नागराज की बात मान ली और नागराज को वापिस लौट आने का वचन देकर सुरसुरा की घाटी में पहुंचें जहाँ मंदावारिया की पहाडियों में डाकुओं के साथ उनका भंयकर संघर्ष जिसमें तेजाजी का पूरा शरीर लहूलुहान हो गया काफी डाकू मारे गये इव बाकीके डाकू भाग गये | तेजाजी सारी गायों को लेकर पनेर पहुंचे और गायों को लाछां गूजरी को सौंप दिया | लाछां गूजरी को सारी गायें दिखाई दी पर गायों के समूह में काणां केरडा नहीं दिखा तो वह उदास हो गई और तेजा को वापिस जाकर काणां केरडा को लाने के लिए प्राथना की | वीर तेजाजी ने वापस जाकर पहाड़ी में छुपे हुए बचे-खूचे डाकुओं को मार करके लाछां गूजरी को उसका काणां केरडा सोपं दिया |
सम्पादन एवं प्रस्तुतिकरण—–डा.जे,के.गर्ग, सन्दर्भ—- विभिन्न पत्र- पत्रिकायें, मेरी डायरी के पन्ने, विभिन्न भोपाओं से बात चीत आदि

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