अब ये तो जाहिर ही है कि कभी पिछडो व समाज के दबे कुचले लोगों को बराबरी पर लाने के लिए की गई आरक्षण व्यवस्था अब समाज और देश के लिए नासूर बनती जा रही है। इसका लाभ भले ही वास्तविक हकदारों को नहीं मिल रहा है,लेकिन इसका फायदा उठाकर कई लोग सम्पन्न जरूर हो गए हैं। राजनीति मे तो इसके चलते परिवारवाद फल फूल रहा है, तो प्रशासनिक ठाठ बाठ का आनंद भी कुछ जाति विशेष के लोग ले रहे हैं। ऐसे मे आरक्षण का सबसे बेहतर आधार तो आर्थिक हो सकता है।क्योंकि वोटों की राजनीति के चलते आरक्षण खत्म करना तो असंभव है, चाहे कोई पार्टी दो तिहाई बहुमत के साथ ही सत्ता मे क्यों ना जाए। ऐसे मे संघ की सम्पन्न वर्ग से आरक्षण छोडने की अपील को इस दिशा मे कदम मान सकते हैं। लेकिन क्या संघ घर से इसकी शुरुआत करेगा। हो सकता है उसका त्याग देख देश मे सकारात्मक माहौल बने। वरना तो वही बात होगी पर उपदेश कुशल बहुतेरे।
ओम माथुर, अजमेर. 9351415379