संथारा को लेकर नसीराबाद जैन समाज ने निकला ऐतिहासिक मौन जुलुस

jain1jain2a2नसीराबाद 24 अगस्त//सल्लेखना/संथारा के मूल सिद्धान्त, प्रक्रिया व उद्देश्य के वास्तविक भाव को समझे बिना माननीय राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा हाल ही में पारित निर्णय के विरोध में पुरे भारत वर्ष में चल रहे जैन समाज के ऐतिहासिक आंदोलन की कड़ी में आज सकल जैन समाज नसीराबाद द्वारा अपने ऑफिस, प्रतिष्ठान बन्द रख एंव बच्चो द्वारा अपने स्कूल, कॉलेज से अनुपस्थित रह कर प्रात 10.00 बजे सेठ ताराचन्द जी की नसियां से भेरू चौराया,फ्रामजी चौक,सदर बाजार, गांधी चौक होते हुए एक विशाल मौन जुलुस उपखण्ड अधिकारी कार्यालय पंहुचा ! जिसमे सकल जैन समाज की महिलाएं, पुरुषो, बच्चो ने धर्म बचाओ आंदोलन की कड़ी में केंद्रीय और राज्य सरकार से दखल देने की मांग को लेकर प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री एवं राज्यपाल के नाम पर ज्ञापन दिया !
धर्म बचाओ आंदोलन के तहत नसीराबाद के व्यापारियों ने दोपहर तक स्वैछिक ही अपनी दुकाने बंद रख जैन समाज को अपना पूर्ण समर्थन दिया एवं जैन समाज को पूर्ण समर्थन देते हुए पुरे मौन जुलुस में साथ रहे !
श्री अहिंसा सकल जैन समाज नसीराबाद द्वारा ज्ञापन दिया गया जिसका प्रारूप निम्न हैं !
संथारा/सल्लेखना को आत्म हत्या का दण्डनीय अपराध मानने के विरोध में ज्ञापन
1. संथारा / सल्लेखना के सम्बन्ध में जो मान्य सर्वोच्च न्यायालय में अपील प्रस्ततु है उसमें और मान्य राजस्थान उच्च न्यायालय में जो पुर्नविचार याचिका प्रस्तुत है, उसमें भारत सरकार को व राज्य सरकार को याचिका कर्ता / पीड़ित पक्षकार बना कर जैन समुदाय की धार्मिक आस्था विधि मान्य होनेे की मजबूती से पैरवी करावें।
2.संथारा /सल्लेखना की जैन संस्कृति की रक्षा में संसद से कानून बना कर अल्पसंख्यक समुदाय को कानूनी सुरक्षा प्रदान करावें।
मान्यवर महोदय,
सादर निवेदन है कि दिनांक 10.08.2015 को दिये अपने एक निर्णय में मान्य राजस्थान उच्च न्यायालय ने जैन धर्मावलम्बियों की संथारा/सल्लेखना की क्रिया को आत्म हत्या करने का दण्डनीय अपराध धोषित कर दिया है। इस निर्णय से सम्पूर्ण जैन समाज आहत है।
सथांरा/सल्लेखना ना तो आत्म हत्या है और ना ही इच्छा मृत्यु ,अपितु यह जीवन कोे अन्तिम क्षण तक महोत्सव के रूप में जीने की अध्यात्मिक और वैज्ञानिक कला है जो आदि तीर्थकर भगवान ऋषभनाथ के समय से चली आ रही है और जो भगवान महावीर केेे ’’जीओ और जीने दो’’ के सिद्धान्त से ओतप्रोत है। मृत्यु शास्वत सत्य है और इसे जीतने के लिये आज विश्व को जरूरत है जितेन्द्रीय महावीर के बताये मार्ग का गहराई से अनुसंधान करने की।
मान्यवर, इस देश में पशुओ पर क्रूरता और उनका वध दंडनीय अपराध है लेकिन धार्मिक आस्था पर इसे सरकारी संरक्षण है। इसी तरह इस देश में सार्वजनिक तौर पर मद्यपान करना , भांग ,गांजा अफीम आदि नशीले पदार्थो का सेवन करना दंडनीय अपराध है लेकिन धार्मिक आस्था पर इस व्यसन को सरकारी संरक्षण है तो फिर जैन समुदाय की अपनी धर्मिक आस्था पर प्रतिबन्ध क्यों ? क्यो सरकार न्यायालय में जैन समुदाय के प्रति उदासिन बनी हुयी है ? और क्यों न्यायालय में पैरवी के समय जब जैन शास्त्रो के श्लोक पढे जाते है तो सुनने वालों के चेहरो पर, इन्हे समझने के बजाय, विस्मय के भाव ही आते है ?
विश्व में जीने के अधिकार और मृत्यु के अधिकार को समझने और परिभाषित करने की जबरदस्त द्वन्द्व मची हुई है और इसी अन्र्तद्वन्द्व की एक तरफ झुकती हुयी अभिव्यक्ति है संथारा/सल्लेखना को अपराध मानने की मान्य राजस्थान उच्च न्यायालय की घोषणा, जो ना केवल जैन धर्म के मूल भूत सिद्धान्तों पर आधात हैं बल्कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता की जडों को हिला देने वाली भी है।
भारतीय परिवेश में जीवन जीने और भारतीय संस्कृति से मृत्यु का सामना करने की क्रिया को समझने और परिभाषित करने के लिये अग्रेजी भाषा सक्षम नही है क्यों कि संथारा/सल्लेखना अग्रेजी भाषा के शव्द्कोश मे नही है। सल्लेखना को इस देश में ही जन्मी प्राकृत और संस्कृत भाषा से समझने, समझाने और मानने की आवश्यकता है।
इस देश में गणतन्त्र की स्थापना करने वाले वैशाली के राजकुमार वर्धमान महावीर के अनुयायी ही आज अल्प संख्यक हो गये है और अपने धर्म के अनुसार जीने के लिये बहुसंख्यकों के द्वारा हतोत्साहित किये जा रहे है। देश के राजनैतिक गलियारों में लोग जब 1200 साल बाद पुन: स्वराज आने की बात करते है तो महावीर के अनुयायी भी सोचने पर मजबूर हो गये है कि कब 2500 साल पुराना स्वराज फिर आयेगा।
मान्य राज. उच्च न्यायालय की घोषणा के विरोध में आज दिनाक 24.08.2015 को सकल जैन समाज द्वारा शांतिपूर्ण मौन जुलुस निकाला गया है तथा सभी जैन ने अपने प्रतिष्ठान आदि बन्द रख कर विरोध प्रदर्शन किया है।
अतः अहिसंक जैन समुदाय आपसे विनम्र मांग करती है कि संथारा /सल्लेखना के सम्बन्ध में जो मान्य सर्वोच्च न्यायालय में अपील प्रस्ततु है उसमें और मान्य राजस्थान उच्च न्यायालय में जेा पुर्नविचार याचिका प्रस्तुत है उसमें भारत सरकार को व राज्य सरकार को याचिकाकर्ता / पीडित पक्षकार बना कर जैन समुदाय की धार्मिक आस्था विधि मान्य होनेे की मजबूती से पैरवी करावें और संथारा /सल्लेखना की जैन संस्कृति की रक्षा में संसद से कानून बना कर अल्पसंख्यक समुदाय को कानूनी सुरक्षा प्रदान करावें जिसके लिये जैन समाज आपकी सदेव आभारी रहेगी।

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