इमाम हुसैन मौजूदा दौर मे भी प्रासंगिक है

अजमेर 20 सितम्बर। सूफी संत हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती के वंशज एवं वंशानुगत सज्जादानशीन दरगाह के आध्यात्मीक प्रमुख दीवान सैयद जैनुल आबेदीन अली खान ने कहा कि जुल्म ओ ज्यादती और नाइंसाफी के इस दौर में जब समूचे विशिव में मानवीय मूल्यों को पामाल किया जा रहा हैं, आतंकी ताकतें इंसान से उसकी जीने की आजादी छीन लेना चाहती है। उन्होने कहा कि करबला की जंग इंसानियत को बचाने की जंग थी हज़रत इमाम हुसैन की कुर्बानी का सबसे बड़ा मकसद अहिंसा था इसलिये इमाम हुसैन मौजूदा दौर मे भी प्रासंगिक है।
दरगाह दीवान ने पैगम्बर मोहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन की याद में मनाऐ जाने वाले मोहर्रम के यौमे आशूरा के मौके पर जारी ब्यान में कहा कि इमाम हुसैन आज भी जिन्दा हैं, मगर यजीदी सोच भी नही मरी है ? यजीद अब एक व्यक्ति नहीं बल्कि आतंकवाद की सोच रखकर अन्यायी और बर्बर सोच और आतंकी मानसिकता का नाम है। दुनिया में जहां कहीं भी आतंक, जुल्म, अन्याय, बर्बरता, अपराध और हिंसा है, यजीद वहां-वहां मौजूद है। यही वजह है कि हज़रत हुसैन हर दौर में प्रासंगिक हैं। उनके सर्वोच्च बलिदान से प्रेरणा लेते हुए मनुष्यता, समानता, अमन, न्याय और अधिकार के लिए उठ खड़े होने का अवसर है।

उन्होंने कहा कि दुनिया में जिहाद के नाम पर आतंकवादी हरकतें करके मासूम बच्चों औरतों और नौजवानों की हत्या करने वाले आतंकी संगठनों को परास्त करने के लिए हुसैनी जज्बे की जरूरत है।इन्साफ और सच्चाई को ज़िंदा रखने के लिए, फौजों या हथियारों की ज़रुरत नहीं होती है कुर्बानियां देकर भी फ़तह हासिल की जा सकती है, जैसे की इमाम हुसैन ने कर्बला में किया कि यजीदी आतंक के खिलाफ किस तरह जीत हासिल की जा सकती है। उन्होंने कथित जिहादी एवं मुजाहिदीन से कहा कि इस्लाम की बढ़ोतरी तलवार पर निर्भर नहीं करती इसलिए मासूमों का कत्ल बंद हो आज इस्लाम का विस्तार तलवार के जोर पर नहीं बल्कि हज़रत इमाम हुसैन के बलिदान का एक नतीजा है। इमाम हुसैन की क़ुर्बानी तमाम गिरोहों और सारे समाज तथा समूची इंसानियत के लिए है और यह क़ुर्बानी इंसानियत की भलाई की एक अनमोल मिसाल है।
दरगाह दीवान ने कहा कि इतिहास में निर्दोषों के नरसंहार के उदाहरणों में कर्बला की जंग एक ऐसी मिसाल है, जो रहती दुनिया में कहीं देखने को नहीं मिलती है कर्बला जैसा जालिम समय आज तक नहीं हुआ और यहां जैसे मजलूम भी दुनिया ने आज तक नहीं देखे होंगे मजलूम भी कौन? वह जो इस्लाम धर्म के पैगम्बर मुहम्मद साहब के परिवार वाले थे. और जालिम भी कौन? जो इस्लाम का नाम लेकर उनके परिवार का कत्ल कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि वह उनकी हत्या नहीं कर रहे थे, बल्कि आज के दौर में सत्य और असत्य की पहचान करवाने के लिए हमें मिसाल दे रहे थे कि जब कोई इस्लाम का नाम लेकर आतंकवादी गतिविधि करे, बेगुनाहों को मारे, असत्य की राह चले, तो कर्बला से पहचान लेना कि जालिम कैसे होते हैं और मजलूम कौन हैं सत्य के लिए अपनी जान ही क्यों न कुर्बान करनी पड़े, तो फिक्र नहीं करनी चाहिए. कर्बला का यही संदेश है, जो हमें आतंकवाद के खिलाफ खड़े होने की राह दिखाता है

उन्होने कहा कि इमाम हुसैन विश्व इतिहास की कुछ ऐसी महानतम विभूतियों में हैं जिन्होंने अपनी सीमित सैन्य क्षमता के बावजूद आततायी यजीद की विशाल सेना के आगे आत्मसमर्पण करने के बजाय लड़ते हुए अपनी और अपने समूचे कुनबे की कुर्बानी देना स्वीकार किया। कर्बला में इंसानियत के दुश्मन यजीद की अथाह सैन्य शक्ति के विरुद्ध इमाम हुसैन ने अपने स्वजनों के साथ अन्याय और असत्य के सामने सर्मपण के बजाए जंग करके इन्सानियत और मजहब को बचाना पहली प्राथमिकता माना इसलिये मौजूदा दौर में आइएसआइएस जैसे यजीदी आतंकी सगठनों से निर्णायक मुकाबला ही हज़रत इमाम हुसैन के प्रति सच्ची अकीदत है।

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