झण्डारोहण के साथ ऋषि मेले का प्रारम्भ

पुष्कर रोड स्थित ऋषि उद्यान में दिनांक १६/११/१८ को हवन के साथ प्रथम दिवस का शुभारम्भ किया गया। परोपकारिणी सभा के कार्यकारी प्रधान श्री सुरेन्द्र जी ने झण्डारोहण करके ऋषि मेले का विधिवत् उद्घाटन किया। इस अवसर पर संस्था के कार्यकारिणी के सदस्य, विद्वान् और विभिन्न गुरुकुलों से पधारे हुये विद्यार्थी उपस्थित थे।
मेले के प्रथम सत्र में दर्शनों की वेदमूलकता विषय पर वेदगोष्ठी का आयोजन किया गया। श्री सुरेन्द्र जी ने वेदगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुये विद्वानों को संबोधित किया कि वेद सत्य की मूल पुस्तक है। अज्ञानता से ही अविद्या फैली है। स्वामी दयानन्द द्वारा दिया गया मूल वाक्य ”वेदों की ओर लौटोÓÓ से ही विद्या का विकास संभव है। गुरुकुल कांगडी के आचार्य संदीप आर्य ने सांख्योक्त ईश्वरीय स्वरूप का वैदिकत्व, डॉ. राकेश शास्त्री बांसवाडा ने ‘वेदान्त के ब्रह्म वेद सम्मह स्वरूप एवं स्वामी दयानन्द सरस्वती की दृष्टिÓ, ब्रह्मचारी राजेन्द्रार्य: हरियाणा ने ‘महर्षि दयानन्द के अनुसार षड्दर्शनों का समन्वयÓ, डॉ. नयन आचार्य महाराष्ट्र ने ‘वैदिक दर्शन और महर्षि दयानन्दÓ, कु. कृष्णा, कु. संगीता, कु. चन्द्रा, कमला एवं कु. स्वाति आर्य कन्या गुरुकुल शिवगंज ने गोष्ठी में पत्रवाचन किया। वेदगोष्ठी का संचालन डॉ. वेदप्रकाश विद्यार्थी जी ने किया।
कार्यक्रम के प्रथम सत्र में भजन के साथ वर्तमान में गुरुकुलों की प्रासंगिकता विषय पर प्रवचन का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता-आचार्य विद्यादेव, मुख्य अतिथि-आचार्य विजयपाल जी थे विषय की मुख्य वक्ता आचार्या सूर्या देवी चतुर्वेदा, स्वामी ऋतस्पति, आचार्य प्रियम्वदा ”वेद भारती जीÓÓ थी। आचार्या सूर्यादेवी जी ने बताया कि महर्षि दयानन्द द्वारा लिखित ५२ ग्रन्थों से ही व्यक्ति अपना सर्वांगीण विकास कर सकता है। गुरुकुल में गुरुकुलीय शिक्षा पद्धति को स्वीकार कर ही आचारवान् बनाया जा सकता है और राष्ट्र निर्माण किया जा सकता है। स्वामी ऋतस्पति जी ने कहा कि जो गुरुकुल से जुड़ेगा वह देश की सभ्यता व संस्कृति से जुड़ा रहेगा। कार्यक्रम की संयोजक-आचार्य ओमप्रकाश जी थे।
प्रथम दिवस के द्वितीय सत्र में महिला उत्थान एवं आर्यसमाज विषय पर प्रवचन का आयोजन किया गया। अध्यक्ष- आचार्या सूर्यादेवी चतुर्वेदा, मुख्य अतिथि-ठाकुर विक्रमसिंह जी। १- मुख्य वक्ता श्री विमल कुमार एडवोकेट ने बताया कि स्त्री शिक्षा का विकास ऋषि दयानन्द के जीवन में परम्परा से था और गुरुदक्षिणा में उन्होंने वेदों का प्रचार-प्रसार, आर्यसमाज को मुख्य कत्र्तव्य माना। २- आचार्या धारणा याज्ञिकी ने बताया वेदों को पढ़कर स्त्री स्वयं का श्रेष्ठतम विकास कर सकती है। वेद ही जीवन के आधार इसलिए ऋषि दयानन्द ने महिलाओं को शिक्षित होने और कुरु तियों से बचने का सन्देश दिया।
कार्यक्रम में भजन व संध्या का आयोजन किया गया, कार्यक्रम का संचालन प्रियम्वदा वेदभारती जी ने किया।
सायंकालीन सत्र में वेद में राष्ट्र की अवधारणा, के विषय पर प्रवचन का आयोजन किया गया। अध्यक्ष-श्री सोमपाल शास्त्री, पूर्व केन्द्रीय कृषि मन्त्री, मुख्य अतिथि- श्री शिवकुमार चौधरी जी थे। मुख्य वक्ता- प्रो. राजेन्द्र जिज्ञासु, डॉ. वेदपाल, डॉ. जगदेव विद्यालंकार, श्री कन्हैयालाल आर्य, ठाकुर विक्रम सिंह थे-जिन्होंने महर्षि दयानन्द और उनके सिद्धान्तों और विचारों को बताया।
परोपकारिणी सभा के मन्त्री श्री ओम्मुनि जी ने बताया कि प्रथम दिवस की तरह द्वितीय दिवस में भी सूक्ष्म क्रियाएँ, आसन, प्राणायाम, यज्ञ, वेदपाठ, प्रवचन, भजन और स्वामी दयानन्द के जीवन पर विद्यार्थियों द्वारा नाटक का मंचन किया जाएगा।

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