स्वामी दयानन्द के सपनों के आर्य राष्ट्र निर्माण में जुट जाना चाहिए

राष्ट्र निर्माण पार्टी के अध्यक्ष दानवीर ठाकुर विक्रमसिंह ने कहा कि सभी देशवासियों को स्वामी दयानन्द के सपनों के आर्य राष्ट्र निर्माण में जुट जाना चाहिए। अभी दयानन्द का सपना पूरा नहीं हुआ है। वह शनिवार को परोपकारिणी सभा की ओर से आयोजित ऋषि मेले के दूसरे दिन ‘आर्यसमाज की प्रासंगिकताÓ विषय पर संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे थे।
ठाकुर विक्रमसिंह ने कहा कि स्वामी दयानन्द का सपना था कि देश में हिन्दी राष्ट्रभाषा बने, गोहत्या बन्द हो, बूचडख़ानों पर रोक लगे, शराब की फैक्ट्रियाँ बन्द हों और वेद का प्रचार हो। उन्होंने अफसोस जताया कि इन मुद्दों पर अभी तक कुछ नहीं हुआ है। उन्होंने चिन्ता जताई कि कुछ शक्तियाँ लगातार भारत का चरित्र नीचे गिराने की साजिश कर रही हैं। आर्य युवाओं को आह्वान किया कि वे उठ खड़े हों और दयानन्द के सपनों का भारत बनाने में जुट जाएँ। अभी भी देश में अन्धविश्वास और पाखण्ड ने अपनी जड़ें जमा रखी हैं। उसे उखाड़ फेंकना है। आर्य वह है जो लक्ष्य प्राप्ति तक ना खुद चैन से बैठता है और ना ही दूसरों को चैन से बैठने देता है।
आचार्य महावीर मीमांसक ने कहा कि आजादी के आन्दोलन के दौरान जेलों में डाले गए बन्दियों में से 80 प्रतिशत आर्यसमाजी थे। उन्होंने कहा कि 21 वीं सदी विज्ञान की होगी और जैसे-जैसे विज्ञान आगे बढ़ेगा वैसे-वैसे वेद भी आगे बढ़ेगा। इसकी वजह बताते हुए उन्होंने कहा कि स्वामी दयानन्द ‘वेद में विज्ञानÓ को पहले ही प्रतिपादित कर चुके हैं। उन्होंने भी समाज में फैले अन्धविश्वास और कुरीतियों को खत्म करने का आह्वान किया।
युवा आचार्य सोमवीर ने कहा कि एक समय भारत विश्वगुरु कहलाता था। ऐसा किसी अन्य कारण से नहीं बल्कि उसकी आध्यात्मिक परम्पराओं के कारण विश्वगुरु कहलाया। स्वामी प्रणवानन्द महाराज ने आर्यवीरों को ‘उठो जागो और देखोÓ का मूल मन्त्र दिया। उन्होंने कहा कि स्वामी दयानन्द ने आर्यजगत् की स्थापना संसार का उपकार करने के लिए की थी। आलस्य और प्रमाद का आर्यसमाज में कोई स्थान नहीं है। उन्होंने शराबखोरी और मांसाहार की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिन्ता जताई। इसे पापाचार बताया। एक तथाकथित गुरु पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा कि लाल, पीली और हरी चटनी खाने से भला नहीं होगा। भला तो वेद पढऩे से ही होगा।
संगोष्ठी का संचालन करते हुए आचार्य राजेन्द्र विद्यालङ्कार ने कहा कि समाज में आर्यसमाज की वही प्रासंगिकता है जो शरीर में साँसों की होती है। उन्होंने कहा कि दयानन्द ने समाज को सवाल खड़े करना सिखाया। इसी की बदौलत आज हम आजाद देश में साँस ले रहे हैं। जबकि तालिबान जैसे धर्मोन्मादी संगठन में सवाल खड़ा करने पर सिर कलम कर दिया जाता है।
संगोष्ठी के दौरान डॉॅ. पुनीत शास्त्री को को ‘श्रीमती सुमनलता इन्द्रजीत्देव कार्यकत्र्ता सम्मानÓ से सम्मानित किया गया। नीदरलैण्ड में आर्यसमाजी विचारों के प्रचारक-प्रसारक रामपाल आर्य की पुस्तक का विमोचन किया गया। शुक्रवार की देर रात श्रीमती उषा शर्मा ‘उषस्Ó चतुर्वेदी को ”श्रीमती कमलादेवी नवाल विदुषी सम्मानÓÓ से सम्मानित किया गया।

error: Content is protected !!