वो एकलिंग दीवान कठै वो महाराणा प्रताप कठै

मायड़ भासा काव्य गोष्ठी में महका मरूधरा का गौरव
कला एवं साहित्य के प्रति समर्पित संस्था द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के उपलक्ष्य पर ऑनलाईन ‘मायड़ भासा काव्य गोष्ठी‘ का आयोजन रविवार 21फरवरी को किया गया। इस गोष्ठी में प्रदेशभर से 21 कवि-कवियित्रियों ने राजस्थानी भाषा की काव्य रचनाएं प्रस्तुत कीं। संयोजक उमेश कुमार चौरसिया ने बताया कि राजस्थानी भाषा के रचनाकारों के लिए संस्था ने पहली बार यह अनूठा आयोजन किया जिसमें प्रस्तुत रचनाओं में मारवाड़ी, ढूंढाड़ी, हाड़ौती, मेवाती आदि शैलियों का वैविध्य, मायड़ भाषा की मिठास और मरूधरा के गौरव की सौंधी महक महसूस हूई। वीर, श्रृंगार, हास्य और करूण रस से ओतप्रोत रचनाओं ने सभी को बांधे रखा। इस अवसर पर डॉ विनीता जैन की अगुवाई में कवि माधव जी दरक की प्रसिद्ध कविता ‘वो एकलिंग दीवान कठै वो मेवाड़ी सिरमौर कठै वो महाराणा प्रताप कठै‘ पर भी चर्चा हुई जिसमें राणा प्रताप के शौर्य और मातृभूमि के प्रति समर्पण को दर्शाया गया है।
चित्तोड़ से पंकज झा ने ‘बस्या हुयां छां तीन पीढ़ीं सूं म्हने मती काढ़ो घरां सूं‘, जोधपुर से बसंती परमार ने ‘म्हैं जलमी तो चकचक हुई भाटौ आयौ डाकण आई‘, टोंक से संदीप कुमार जैन ने ‘कर सोला सिणगार बीनणी गेले चाली‘, बीकानेर से पूर्णिमा मित्रा ने ‘मायड़ बोली नै नीं बिसरावो मायड़भासा रो मान बढ़ावौ‘, जितेश सहारन बंशी यथार्थ ने ‘मिनखां रै हियै मांय प्रीत-रीत रा अलेखूं रंग भरां‘, जयपुर से रेखा भाटिया ने ‘आ मुळकती मरूधरा हेत-प्रेम सूं बुळावै‘, लखनलाल माहेश्वरी ने ‘तनै करणो है सो कर लै बखत पाछो कोनी आसी‘, डॉ पी.के.शर्मा ने ‘सियाड़ा रौ तावड़ोै मनै घणौं भावै‘, डॉ विनिता अशित जैन ने ‘थारौ करूं म्हैं गुणगान म्हारो प्यारो राजस्थान‘, मीना सोनी ने ‘केर सांगरी खावण री म्हारे मन में आवै‘, डॉ चेतना उपाध्याय ने ‘बात केऊं म्हूं खरी खरी हे आळी म्हने सुण तो सरी‘, गंगाधर शर्मा हिन्दुस्तान ने ‘विदेसी कर्जा काळ है चोखी दाऊं पीछाण ल्यौ‘, डॉ अरूणा माथुर ने ‘ई भासा री मिठास निराळी‘, देवदत्त शर्मा ने गिरधारीसिंह राजावत की रचना ‘एको कर रै भाई म्हारा हैलो सुण रै भाई म्हारा‘ और गर्व करो मायड़ भासा पै‘, रिंकी माथुर ने ‘घणी याद आवै म्हारा नानी रो गांव‘, के.के.शर्मा ने ‘रिस्तो अेक वार ही बण्या करै है‘, मंजू माथुर ने ‘बोलण मैं चोखी घणी है‘ और सुरक्षा गार्ड मोतीदान चारण ने बीकानेर के सैणदान देपावत की रचना ‘जायो थारो सीमा माथै काम आय ग्यौ‘ रचनाएं प्रस्तुत करके गोष्ठी को समृद्ध किया। प्रदीप गुप्ता, गोविन्द भारद्वाज, गिरीराज कृष्ण माथुर आदि ने चर्चा में भाग लिया।

-उमेश कुमार चौरसिया, संयोजक

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