वसुधैव कुटुंबकम की भावना को प्रदर्शित करता 75वां निरंकारी संत समागम

आध्यात्मिकता मानवता को सुंदर रूप प्रदान करती है
– सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज

केकड़ी 21 नवंबर(पवन राठी) “आध्यात्मिकता मनुष्य की आंतरिक अवस्था में परिवर्तन लाकर मानवता को सुंदर रूप प्रदान करती है यह प्रतिपादन निरंकारी सत्गुरु गाता सुदीक्षा जी महाराज ने 75वें वार्षिक रात समागम में उपस्थित लाखों की संख्या में उपस्थित विशाल मानव परिवार को सम्बोधित करते हुए किया। निरंकारी आध्यात्मिक स्थल, समालखा (हरियाणा) स्थित विशाल मैदानों में 16 से 20 नवंबर के दौरान आयोजित इस दिव्य समागम में विश्वभर से लाखों की संख्या में समाज के हर स्तर एवं विभिन्न संस्कृतियों की पृष्ठभूमि के श्रद्धालु भक्त सम्मिलित हुए हैं दिव्यता की इस अलौकिक छटा को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा है कि मानो जैसे समूचे समागम प्रांगण में वसुधैव कुटुंकन का एक अनुपम दृश्य:परिक्षीत हो रहा हो।

केकड़ी ब्रांच मुखी अशोक कुमार रंगवानी ने बताया कि सत्गुरु माता जी ने मन की अवस्था पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ह्रदय में जब इस परमपिता परमात्मा का निवास हो जाता है तब अज्ञान रूपी अंधकार नष्ट हो जाता है और मन में व्याप्त समस्त दुर्भावनाओं का अंत हो जाता है। परमात्मा शाश्वत एवं सर्वत्र समाया हुआ है जिसकी दिव्य ज्योति निरंतर प्रज्ज्वलित होती रहती है। जब ब्रह्मज्ञानी भक्त अपने मन को परमात्मा के साथ इकमिक कर लेता है तब उस पर दुनियादी बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। फिर यह हर परिस्थिति में संतुलित गाय से व्यावहार करता है और यही उसका स्वभाव बन जाता है।

केकड़ी मीडिया सहायक राम चन्द टहलानी के अनुसार सत्गुरु माता जी ने आगे कहा कि आध्यात्मिकता के मार्ग पर अग्रसर होते हुए हमारा सामाजिक स्तर, जाति वर्ण अथवा धार्मिक आस्था इत्यादि कभी भी बाधित नहीं बनते क्योकि सत अपने कर्म एवं व्यवहार द्वारा सभी को सहज रूप में स्वीकार करने का भाव रखते हैं। परमात्मा के साथ हमारा वास्तविक सम्बन्ध रुहानि है जिसका होम होने पर जीवन सुखमय एवं आनंदित मन जाता है।

केकड़ी सेवादल इंचार्ज लक्ष्मण धनजानी के अनुसार इसके पूर्व सत्संग समारोह में निरंकारी राजपिता रमित जी ने अपने सम्बोधन में कहा कि अच्छे कर्म मानवता और नैतिकता इत्यादि की बातें तो निरंतर होती ही रहती है परन्तु इसके साथ आध्यात्मिकता को जोड़ने की आवश्यकता इसलिए भी है क्योंकि आध्यात्मिकता में कर्ता माथ पश्चाताप अथवा भय का भाव नहीं होता अपितु ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना होती है। सच्चा भक्त ईश्वर का ज्ञान प्राप्त करके अपने वास्तविक स्वरूप एवं स्वनाय को प्राप्त कर लेता है। इस आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से उसके अंदर मानवता के दिव्य गुण स्वतः ही समाहित हो जाते है जो उसके कर्म एवं व्यवहार में स्वाभाविक रूप से झलकने लगते हैं। आज यह मानवता का मिशन परोपकार की इन्ही भावनाओं को सारे संसार तक पहुंचा रहा है।
कवि दरबार
निरकारी संत समागम में आज का मुख्य आकर्षण रहा एक बहुभाषीय काँमै दरबार जिसका शीर्षक था ‘रूहानियत और इंसानियत संग संग’ इस विषय पर आधारित बहुभागीय कवि दरबार में देश विदेशों से आये हुए 22 कवियों ने हिंदी, पंजाबी, उई हरियाणवी, मुलतानी, अंग्रेजी, मराठी एवं गुजराती भाषाओं के माध्यम से काव्य पाठ किया ।

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