*आसक्ति एवम पाप वैराग्य मे बाधक – सौम्य दर्शन मुनि जी*

नवकार कॉलोनी स्थित महावीर भवन में आयोजित धर्म सभा को संबोधित करते हुए पूज्य श्री सौम्य दर्शन मुनि जी महाराज साहब ने फरमाया कि व्यक्ति के जीवन में वैराग्य क्यों नहीं आता ?इसका पहला कारण है कि व्यक्ति संसार के प्रति आसक्ति का त्याग नहीं करना है, संसार में व्यक्ति की आसक्ति धन से, मकान से, दुकान से ,परिवार एवं जमीन जायदाद से जुड़ी रहती है और इन सबसे ज्यादा शरीर के प्रति व्यक्ति की आसक्ति सबसे ज्यादा होती है .व्यक्ति जब तक इन सब से आसक्ति का भाव कम नहीं करेगा तब तक उसको परमात्मा से आसक्ति का भाव ही नहीं आ सकता है, संसार की आसक्ति ही व्यक्ति को संसार में फंसाए रखती है ।जिस प्रकार बंदर चने की आसक्ति में पड़ता है, बंदर को पकड़ने वाले छोटे मुंह वाली मटकी में चने मूंगफली डालते हैं जिसमें बंदर का खाली हाथ तो जा सकता है पर बंद मुट्ठी बाहर नहीं निकल सकती, बंदर हाथ फस जाने पर भी चनो को छोड़ता नहीं है तब बंदर को पकड़ने वाले बंदर को पकड़ लेते हैं ।जिस प्रकार चने की आसक्ति बंदर को फसाती है ,उसी प्रकार संसारी व्यक्ति भी संसार के प्रति आसक्ति के कारण संसार में फंसा रहता है। इसी के साथ व्यक्ति को वैराग्य नहीं आने का दूसरा कारण है उसके मन में पापों से घृणा का भाव नहीं आता, व्यक्ति की हालत तो यह है कि वह पाप करके खुशियां मनाता है पाप के जीवन में ही आनंद मनाता है मगर परमात्मा की वाणी फरमाती है कि पाप का परिणाम कभी भी अच्छा नहीं होता, इसलिए सबसे पहले आवश्यकता तो यह है कि व्यक्ति पाप को पाप माने, मन में ग्लानि लाने का प्रयास करें ,अगर व्यक्ति को पाप करते हुए ग्लानि का पाप के प्रति घृणा का भाव उत्पन्न हुआ तो एक न एक दिन उसके जीवन में वैराग्य का भाव जरूर उत्पन्न होगा ।अगर आप चाहते हैं कि मेरे जीवन में भी वैराग्य आए तो अपने संसार के प्रति आसक्ति को कम करते हुए पाप से घृणा के भाव को लाने का प्रयास करें ।ऐसा प्रयास यदि आपका रहा तो निश्चित यह दुष्कर मानव भाव का पाना सार्थक सिद्ध हो सकेगा
धर्म सभा को पूज्य श्री विराग दर्शन जी महारासा ने भी संबोधित किया।
धर्म सभा का संचालन हंसराज नाबेडा ने किया ।
पदम चंद जैन
चातुर्मास संयोजक

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