*पुरुषार्थ से नियति को भी बदला जा सकता है: गुरुदेव श्री प्रियदर्शन मुनि*

संघनायक गुरुदेव श्री प्रियदर्शन मुनि जी महारासा ने फरमाया की साधना के मार्ग में आगे बढ़ने के लिए गुरु का होना बहुत आवश्यक होता है। ऐसे ही “गुरुनाम गुरु”गुरुओं के भी गुरु प्रभु महावीर जो धर्म की आदि करने वाले हैं उन्ही प्रभु महावीर की मंगलमय जीवन गाथा को हम प्रतिदिन सुन रहे हैं।
श्वेतांबीका नगरी की ओर जाते समय नदी में नाव में प्रभु बैठे थे और पूर्व भव के एक बेरी दैत्य ने आकर नदी में तूफ़ान पैदा कर दिया। तब दो देव कंवल और संभल, उन्होंने आकर एक ने नाव को खेया, और दूसरे ने युद्ध करके दैत्यों को भगाया।यह कंबल और संबल पूर्व भव में बैल की योनि में थे।उस समय उसे गांव में अंतिम समय में इनको सेठ व सेठानी द्वारा नवकार महामंत्र सुनाया गया।धर्म का शरण दिलाया गया। और इस धर्म की शरण के प्रभाव से वह इस भव में देव बने थे। इसलिए धर्म के प्रति अगाध श्रद्धा होने के कारण उन्होंने यह कार्य किया।
नदी में उतरने के बाद प्रभु आगे बढ़ गए उनके पद चिन्हों को देखकर पुष्पमित्र नामक ज्योतिषी ने विचार किया कि अवश्य ही यहां से कोई चक्रवर्ती सम्राट गुजरे हैं।आगे जाकर देखा तो भगवान साधना में रत थे। उसने विचार किया क्या मेरा ज्योतिष ज्ञान मिथ्या है वह अपनी किताबों को फेकने लगा, तब आकाशवाणी होती है कि यह चक्रवर्तियों के भी चक्रवर्ती हैं। अगर विश्वास नहीं हो तो यह जिस स्थान पर खड़े हैं उसके नीचे की भूमि खोद कर देख लेना, और प्रभु के आगे जाने के बाद उसने उस स्थान को खोदा तो उसमें अपार धनराशि मिली। उसे विश्वास हो गया कि यह अपार रिद्धि सिद्धि के स्वामी है।
एक स्थान पर आहार ग्रहण करने पर देवों द्वारा हुई अपार धन वृष्टि को देखकर ऐसी रिद्धि सिद्धि पाने के लिए एक व्यक्ति मंगली पुत्र गौशालक भगवान के साथ हो गया। कहने लगा कि आप मेरे गुरु है वह बड़ा ही चंचल प्रकृति का था, प्रभु जी जो भी कथन फरमाते थे वह गौशालक उनकी बात को मिथ्या सिद्ध करने का प्रयास करता। मगर फिर भी वहीं घटना घट जाती है।तब गौशालक के मन में यह धारणा बैठ जाती है कि जो होना है वह होकर रहता है, मगर भगवान फरमाते हैं की नियति का अपना एक पक्ष हो सकता है मगर पुरुषार्थ के द्वारा नियति को भी बदला जा सकता है। अतः भगवान ने पुरुषार्थ का सिद्धांत फरमाया।
स्वयं भगवान ने भी इसी मार्ग का अनुसरण किया।हमें भी भगवान के बताये हुई मार्ग पर चलने का प्रयास करना है।अगर ऐसा प्रयास रहा तो सर्वत्र आनंद ही आनंद होगा।
धर्म सभा को पूज्य श्री विरागदर्शन जी महारासा ने भी संबोधित किया। धर्म सभा का संचालन हंसराज नाबेड़ा ने किया।
पदमचंद जैन

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