पटरियों की तरह
पहले -पहल जब हम रोज मिला करते थे अनकही बातों के जबाब भी तुम मुस्कुरा कर देते थे और अब हम समझदार हो गए ज्यादातर चुप रहते हैं किसी बहाने से हाथों को छूने के तरीके भी नहीं तलाशते वो रंग जो मेरे पहनने से तुम्हारी आँखों में फबा करता था मैं उससे कतराती हूँ … Read more