एडीए अध्यक्ष के लिए वैश्य समाज का दावा हुआ कमजोर

zila parishad thumbजिला परिषद में जिला प्रमुख पद के लिए हुए चुनाव में वैश्य समाज की श्रीमती सीमा माहेश्वरी के जीतने के साथ ही अजमेर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष पद पर वैश्य समाज की दावेदारी कमजोर हो गई है। ज्ञातव्य है कि विधानसभा चुनाव में श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा के मसूदा से निर्वाचित होने के बाद उन्होंने जिला प्रमुख पद से इस्तीफा दे दिया था और इसी कारण उप चुनाव की नौबत आई।
जहां तक जातीय समीकरण का सवाल है, जिले में इस वक्त एक भी विधायक वैश्य समाज से नहीं है। ऐसे में अब वैश्य समाज का दबाव था कि उनके किसी नेता को प्राधिकरण का अध्यक्ष पद दिया जाए। मगर अब जब कि जिला प्रमुख पद पर वैश्य समाज की सीमा माहेश्वरी काबिज हो गई हैं, वैश्य समाज उतने दमदार तरीके से दावा नहीं कर पाएगा। ज्ञातव्य है कि नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष धर्मेश जैन चाहते हैं कि उन्हें फिर मौका दिया जाए, ताकि वे अपने अधूरे काम पूरे कर सकें, साथ ही नए कार्य भी हाथ में लें। जाहिर तौर पर उनका तर्क ये है कि पिछली बार जिस विवाद की वजह से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा, वह विवाद था ही नहीं। भाजपा की छोडिय़े, कांग्रेस सरकार में ही उन्हें क्लीन चिट दी गई। यानि कि वे पूरी तरह से पाक साफ साबित हो चुके हैं। उनके तर्क में दम भी है, मगर अब उनका दावा कुछ कमजोर हो गया है। विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर की टिकट के लिए एडी चोटी का जोर लगाने वाले शिवशंकर हेडा के भी ऊपर अच्छे रसूखात हैं और वैश्य तुष्टिकरण के नाते उनका नंबर आना संभावित है, मगर चुनाव के दौरान उनसे जुड़े कुछ कार्यकर्ताओं पर देवनानी विरोधी काम करने का आरोप है।
बात अगर राजपूत समाज की करें तो यूं तो नगर परिषद के पूर्व सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत का दावा काफी मजबूत माना जाता है, मगर मसूदा से श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा के विधायक होने के कारण राजपूत समाज का कोटा भी पूरा हो गया है। शेखावत का तर्क ये हो सकता है कि विधानसभा चुनाव में वे अजमेर उत्तर से टिकट के प्रबल दावेदार थे, मगर हाईकमान के आश्वासन के बाद उन्होंने सब्र किया, अत: उन्हें अब उचित इनाम मिलना ही चाहिए। बताया जाता है कि मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे से उनके करीबी रिश्ते भी हैं। मगर उनके साथ एक दिक्कत ये भी है कि उन्हें उन्हें वरिष्ठ भाजपा नेता ओम प्रकाश माथुर लॉबी का माना जाता है, जिनकी वसुंधरा राजे से नाइत्तफाकी जगजाहिर है। हालांकि तस्वीर का दूसरा रुख ये है कि माथुर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के करीबी हैं, इस कारण ऊपर की सिफारिश भी रंग ला सकती है।
जिला प्रमुख चुनाव के बाद बदले समीकरण में नगर निगम के पहले मेयर धर्मेन्द्र गहलोत को भी प्रबल दावेदार माना जाता है। उन पर अजमेर उत्तर के विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी का वरदहस्त है। वे काफी ऊर्जावान भी हैं। इसी क्षमता के कारण उनका नाम नए शहर भाजपा अध्यक्ष पद के लिए चर्चा में है, मगर उनकी रुचि एडीए चेयरमेन बनने में बताई जा रही है। उनके साथ दिक्कत ये है कि देवनानी विरोधी पूरी लॉबी उनके भी खिलाफ खड़ी है। पूर्व शहर भाजपा अध्यक्ष पूर्णाशंकर दशोरा का भी नाम चर्चा में है, मगर उनकी निर्विवाद छवि और निर्गुट शैली की वजह से फिर से शहर भाजपा अध्यक्ष बनाने पर विचार हो रहा बताया।
यूं तो शत्रुघ्न गौतम के केकड़ी से विधायक होने के कारण देहात जिला भाजपा अध्यक्ष प्रो. बी. पी. सारस्वत का दावा कुछ कमजोर माना जा सकता है, मगर जिला प्रमुख चुनाव में अहम भूमिका निभाने व वसुंधरा के करीबी होने के कारण उन्हें गंभीर माना जा सकता है। वैसे उनके किसी विश्वविद्याय का कुलपति बनाए जाने के भी आसार हैं। रहा सवाल सिंधी समाज का तो अजमेर उत्तर से प्रो. वासुदेव देवनानी विधायक हैं, इस कारण इस समाज से भी किसी को अध्यक्ष बनाए जाने की संभावना कुछ कम है। ज्ञातव्य है कि श्रीमती वसुंधरा राजे की चार माह की सुराज संकल्प यात्रा में पूरे समय साथ रह कर गांव-गांव में केबल नेटवर्क के जरिए प्रचार प्रसार करने वाले शहर भाजपा के प्रचार मंत्री व स्वामी समूह के एमडी कंवलप्रकाश किशनानी को भी दावेदार माना जा रहा है, मगर स्थानीय गुटबाजी कुछ बाधक बन सकती है। अनुसूचित जाति से इस कारण नहीं बनाया जाएगा क्योंकि अजमेर दक्षिण से श्रीमती अनिता भदेल विधायक हैं। साथ ही अजमेर नगर निगम में मेयर का पद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है और उस पर कांग्रेस के कमल बाकोलिया काबिज हैं। जिले में रावतों का दबदबा है और उसके दो विधायक पुष्कर से सुरेश सिंह रावत और ब्यावर से शंकर सिंह रावत हैं, इस कारण उनका नंबर भी आता नजर नहीं आता।
-तेजवानी गिरधर

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