परम्परा पर भारी पड़ रही नई आधुनिक तकनीक

दीपावली की सीजन में दीपक, दुपेड़े बनाने वाले कारीगर मायूस
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आधुनिक लाईटे व पारम्परिक दीपक का सजा बाजार। फोटो- हेमन्त साहू।
आधुनिक लाईटे व पारम्परिक दीपक का सजा बाजार। फोटो- हेमन्त साहू।

ब्यावर, (हेमन्त साहू)। मिट्टीकी कलाकृतियां बनाकर आजीविका चलाने वाले परिवार अपने पूर्वजों की परम्परा को निभा रहे हैं। समय के साथ नई-नई तकनीकों से परम्पराओं में बदलाव आ चुका है। दीपावली की सीजन में दीपक, दुपेड़े अन्य उत्पाद बनाकर परम्परा को कायम रखने वाले कारीगर थोड़े मायूस है। कलाकृतियां बर्तन बनाने के उपयोग में काम में आने वाले मिट्टी मिलना अब मुश्किल हो गया है। सालों पहले जो मिट्टी बगैर कीमत के मिला करती थीं, आज 1100 से 1500 रुपए तक मिल रही है। ब्यावर शहर में लाने के लिए ट्रांसपोर्ट भी एक्ट्रा देना पड़ता है।
मिट्टी से चाक पर बनने वाले दीपक, दुपेड़ें अन्य कलाकृतियां को पकाने पर भी संकट छाने लगा है। लकड़ी पर रोक लगने से बुरादा इत्यादि का सहारा लेना पड़ता है। जो काफी मंहगा पड़ता है। वहीं सीजन के समय में जलाऊ उत्पादों की कीमतों पर भी दोहरी मार पड़ जाती है। शहरी क्षेत्र में माल को बेचना भी किसी चुनौती से कम नहीं है। दीपावली के दिनों में भीड़-भाड़ के चलते अस्थाई दुकाने नहीं लग पाती। वहीं प्रशासन द्वारा भी असहयोग मिलने से तैयार माल खराब हो जाता है। ब्यावर शहर में करीब 50 से ज्यादा परिवार इस काम से जुड़े है। दिपक निर्माण करने वाले गोपाल नें बताया कि सीजन के समय मिट्टी पकाने के ईधन की कीमते बढ़ जाने के कारण दीपक की कीमत भी बढ़ानी पड़ती है। अब नए जमाने में घरों में दीपक जलाना कम और बिजली के दिपक का चलनद बढ गया है। ब्यावर के दीयों की जोधपुर, पाली राजसमंद जिले में मांग बढ़ रही है।

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