एडीए की बैठक में फिर नहीं आई कलेक्टर

aarushi a malik thumbअजमेर विकास प्राधिकरण की जिस बैठक में 4 अरब दो करोड़ रुपए का बजट पारित हुआ और अजमेर को स्मार्ट और हेरिटेज सिटी बनाने के लिए जो महत्त्वपूर्ण निर्णय हुए, उसमें जिला कलेक्टर डॉ. आरुषि मलिक शामिल नहीं हुई। यह बैठक 12 मार्च को प्राधिकरण के अध्यक्ष व संभागीय आयुक्त धर्मेन्द्र भटनागर की अध्यक्षता में हुई थी। इससे पहले भी प्राधिकरण की महत्त्वपूर्ण बैठकों में कलेक्टर मलिक अनुपस्थित रहीं। असल में जब भी अजमेर के विकास को लेकर प्राधिकरण की महत्त्वपूर्ण बैठक होती है, तब-तब पारिवारिक कारणों से कलेक्टर को अजमेर से बाहर जाना अनिवार्य हो जाता है। 12 मार्च को भी ऐसे ही पारिवारिक काम के लिए कलेक्टर जयपुर चली गई। डॉ. मलिक की जगह सिटी मजिस्ट्रेट हरफूल सिंह यादव ने कलेक्टर की भूमिका निभाई। एडीए की यह बैठक कितनी महत्त्वपूर्ण थी, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस बैठक में अजमेर के वर्तमान मास्टर प्लान को स्थागित कर नया मास्टर प्लान बनाने का निर्णय लिया गया।
एडीए के विकास कार्यों में कलेक्टर की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है, लेकिन 12 मार्च को एडीए कलेक्टर के सुझावों से वंचित रह गया। माना जा रहा है कि प्राधिकरण के अध्यक्ष डॉ. भटनागर से प्रशासनिक खींचतान के चलते ही कलेक्टर मलिक बैठकों में भाग नहीं ले रही हंै। सरकार ने अजमेर को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए जो हाईपावर कमेटी बनाई है, उसका अध्यक्ष भी संभागीय आयुक्त भटनागर को ही बनाया गया है। इससे भी डॉ. मलिक नाराज बताई जाती हैं।
ठप हो जाएगा विकास कार्य
एडीए की बैठक में नए मास्टर प्लान का जो निर्णय किया गया है। उससे अब अजमेर का विकास ठप हो जाएगा। बड़ी योजनाओं के लिए जमीनों का चिह्निकरण कर नए सिरे से होगा। इसलिए अब किसी भी योजना की अनुमति एडीए द्वारा जारी नहीं की जाएगी। पूर्व में जिन जमीनों का नियमन किया गया था, उन पर भी नए मास्टर प्लान की तलवार लटक गई है। मजे की बात यह है कि गत वर्ष ही दो करोड़ रुपए दे कर जयपुर की आशी कंस्ट्रेक्शन कंपनी ने मास्टर प्लान तैयार करवाया गया था। अब यह दो करोड़ रुपए भी डूब गए है तथा फिर से किसी कंपनी को ठेका देकर मास्टर प्लान तैयार करवाना होगा।
जब तक नया मास्टर प्लान तैयार नहीं होगा, तब तक शहर की प्रमुख सड़कों के आसपास कॉमर्शियल कॉम्प्लेक्स निर्माण की अनुमति भी नहीं मिलेगी। असल में नए मास्टर प्लान के समय सम्पूर्ण क्षेत्र को निर्धारित किया जाता है और फिर इसी के अनुरूप सड़कों की चौड़ाई आदि तय होती है। प्रस्तावित मास्टर प्लान पर आपत्तियां मांगी जाती है और फिर लम्बी प्रक्रिया के बाद मास्टर प्लान मंजूर होता है। एक ओर जिला कलेक्टर जैसे अधिकारी एडीए की बैठक में भाग नहीं ले रहे हैं। तब नया मास्टर प्लान कितने समय में तैयार होगा, यह अभी नहीं कहा जा सकता। अच्छा हो मास्टर प्लान का बखेड़ा करने से पूर्व प्रशासनिक अधिकारी व जनप्रतिनिधियों के बीच आपसी तालमेल करवाया जाए। अभी तो एडीए में जनप्रतिनिधि भी नियुक्त नहीं है।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in) M-09829071511

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