पहले मकानों में दुकानें बनने कैसे दी गईं?

फोटो दैनिक भास्कर से साभार

नगर निगम और हाउसिंग बोर्ड ने संयुक्त कार्रवाई करते हुए वैशाली नगर में बनी रही कुछ दुकानों को जेसीबी मशीन से ध्वस्त कर दिया। जाहिर तौर पर इसका विरोध भी हुआ। मौके पर पार्षद मोहनलाल शर्मा व कांग्रेस नेता रमेश सेनानी पहुंच गए, मगर चूंकि पुलिस जाप्ता काफी था, इस कारण कार्यवाही में बाधा नहीं पड़ी। मगर सवाल ये है कि मकानों में दुकानें जब बनाई जा रही थी तब हाउसिंग बोर्ड व नगर निगम के अधिकारी क्या सो रहे थे? उस वक्त उन्हें यह ख्याल क्यों नहीं आया कि जैसे ही कोई दुकान बनाना शुरू करे, उसे रुकवा दिया जाए? आज सैकड़ों मकानों में दुकानें खुली हुई हैं, इसके लिए जिम्मेदार कौन है? स्पष्ट है कि संबंधित अधिकारियों व कर्मचारियों को उस वक्त अपनी जेब गरम करने की ही चिंता होती है, शहर जाए भाड़ में। जहां तक अब तोडफ़ोड़ का सवाल है, जाहिर सी बात है कि अगर किसी व्यक्ति विशेष की दुकानें तोड़ेंगे तो यह सवाल लोग उठाएंगे ही कि ऐसा क्यों? कार्यवाही की जाती है तो सभी दोषियों पर समान रूप से होनी चाहिए? होना तो यह चाहिए कि बाकायदा दुकानों को चिन्हित कर उन्हें विधिवत नोटिस दिया जाए और समयबद्ध तरीके से स्वयं हटाने व विभागीय स्तर पर हटाने की योजना की घोषणा की जाए।
इस मामले में सबसे अहम सवाल ये है कि जब बोर्ड ने कॉलोनी बसाई तो व्यावसायिक गतिविधियों के लिए पर्याप्त स्थान रख कर वहां दुकानें क्यों नहीं बनाई? बोर्ड ने खुद ही मार्केट डवलप क्यों नहीं किया? अगर बोर्ड ऐसा करता तो लोगों को मकानों में दुकानें बनाने की जरूरत ही नहीं पड़ती। तस्वीर का एक पहलु ये भी है कि भले ही मकानों में दुकानें अवैध हैं, मगर आज इन्हीं की वजह से आम लोगों को उनकी हर जरूरत का सामान आसानी से मिल रहा है और शहर के व्यस्ततम बाजारों पर पड़ रहा दबाव कम हुआ है। ऐसे में बेहतर रास्ता ये है कि जहां भी कॉलोनी बसाई जाए, वहां पर मार्केट भी विकसित किया जाए। इससे एक तो कॉलोनी का विकास व्यवस्थित होगा और दूसरा शहर के मुख्य बाजारों पर पडऩे वाली ग्राहकों की भीड़ की वजह से बिगड़ी रही यातायात व्यवस्था में कुछ राहत मिलेगी।
-तेजवानी गिरधर

2 thoughts on “पहले मकानों में दुकानें बनने कैसे दी गईं?”

  1. भाई साहब, नमस्कार, आप हुम सब जानते है कि कैसे यह सब घतीत होता है और कौन सब इस के लिये जिम्मेदार है पेर क्या खाली प्रशाशन और इसके लोग दोशि है ? कया इन दुकान बनाने वले लोगो क कोइ दोश नहि ? भाई सहब अगर रिश्वत लेना पाप है तो देना उससे बदा अपराध है, हा अगर दुकाने जोकि वाकई मे घर है वापस घरो मे बद्ले जा रहे है तोह फिर झग्द क्यो? अगर एक प्रशशनिक अधिकारी गलति कर गया तोह क्या दुसरे को उसे सुधर्ने क हक़ नहि है? हा पुरने पापियो को जरूर पेहचाना जाये और इन मकान मलिको के साथ उन्हे भी सजा दी जाये मगर भै सहाब आप जर इन तथकतित नेतओ से जो हर जगह बिन जरूरत के पहुंच जाते है पता नहि क्या करने से जरूर पुछिये कि ये कय चाहेत है? इन्होने लोहगल रोद जनाना अस्पताल पेर बसी कच्ची बस्तियो क समर्थन किया था आप कभी इन दिनो रात मैन इन्हे यहा से ले कर जनाना अस्पताल तक ले जायिये सारे रास्ते मवेशियो से पते पधे है और रोज़ छोते मोते हाद्से किसि दबदि दुर्घ्तना का इंतज़ार कर रही है, किसी की गरिबी या मजबूरी किसी की मौत का कारन तोह नही बन सकती है ना? वैसे बहि सहाब यहा तो अब आने वाले साल मै वैसे ही आना सागर का कहर बरपने वाला है, और इन्हे खुद हि अपनी गलतियो का अह्सास हो जायेग और फिर प्रशाशन को कोसा जयेगा कि वो कुछ नहि कर रहा है. हा यह बात आपकी 16 आना सही है कि अतिक्रमन हताने मैन भेद-भाब नही होना चाहिये नाही येह किसी सब्य समाज द्वारा सहन किया जाना चाहिये, और आगे से होने वाले अतिक्रमनो को रोकने की कोइ प्रभवी नीति प्रशाशन को बनानी चाहिये आखिर प्रशाशन मे भी अछेचे लोग बैथे है फिर उनकी संख्या चाहे कम ही क्यो ना हो.

  2. बिलकुल सही लिखा आप ने कि पहले क्या जनता और प्रशासन सो रहे थे क्या?
    आज हम जनता राजनीतिज्ञों को कोसते हैं पर हम ही तो हैं न कि उन के बिछाए हुए जाल में अपने स्वार्थवश या उदासीनता वश फंसते हैं…..
    अभी भी अपने आप को अतिक्रमण कारियों का मसीहा दिखाने को मोहनलाल जी और रमेश सेनानी जी पहुँच गए…..
    अरे यदि आप मसीहा थे तो पहले क्यों नहीं जागे???
    सही मुद्दा तो इस न्यूज़ में उठाया गया है……पहले से ही मार्केट क्यों नहीं बनाया गया ??
    तब भी तो आप आवाज़ उठा सकते थे और सार्थक आवाज़…जिस में आप कि दूरदर्शिता का प्रमाण मिलता….
    या सारा खेल सिर्फ और सिर्फ वोट बैंक कि राजनीति का है???

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