-अमित सारस्वत – ब्यावर की राजनीति राह से लेकर राजधानी तक सत्ता के गलियारे में हर समय चर्चित रही है। लगभग हर राजनेता की नजर शहर की सियासी गतिविधियों पर रहती है। कुछ दिनों पूर्व भाजपा संगठन में बदलाव की सुगबुगाहट शुरू हुई। खबर आई कि अब मंडल अध्यक्ष का चयन बूथ प्रभारी करेंगे। फिर क्या था, शहर भाजपा में जोड़-तोड़ की गणित शुरू हो गई। पार्टी की फ्रंट लाइन में शामिल नेता मंडल अध्यक्ष बनने के लिए अपनी जाजम बिछाने लगे। 94 बूथ में बंटे शहर से हर बूथ का एक-एक मुखिया चुना जाना था। बूथ अध्यक्ष का यह चुनाव 20 से 30 सितंबर के बीच होना था। यह सारे बूथ अध्यक्ष मिलकर मंडल अध्यक्ष की ताजपोशी करने में अह्म भूमिका निभाने वाले थे मगर शतरंज के दो रंगों की तरह बंटी शहर भाजपा का मुखिया बनना इतना आसान कहां। शहर में चर्चा थी कि सत्ता और संगठन के बीच तालमेल बैठाने वाले ”गणेशजी” सिरमौर बनेंगे। सियासी गलियारे से लेकर खबरनवीसों तक एक नाम के चर्चे आम हो गए। लेकिन राजनीति में कुर्सी पाना कांटों पर चलने के समान है। राजनीति में कड़ी से कड़ी जोडऩे की कमान अब पार्टी के शीर्ष नेता के हाथ में बताई जा रही है। सूत्रों की माने तो एक-दो दिन में भाजपा को नया मंडल अध्यक्ष मिल सकता है। इसके लिए जयकिशन बल्दुआ का नाम तय माना जा रहा है। यदि भाजपा में इस नाम पर कोई विरोधाभास हुआ तो तुरूप इक्के के रूप में दिनेश कटारिया के नाम की घोषणा हो सकती है। फिलहाल भाजपा के हर कार्यकर्ता को नए मंडल अध्यक्ष का इंतजार है, ताकि नए फौज में अपना नाम भी दर्ज करा सके। देखना रोचक होगा कि आदर्शवादी सिद्धांत पर चलने वाली अनुशासित भाजपा में संगठनात्म ढांचे का चयन निर्वाचन से होता है या नियुक्ति से।
-अमित सारस्वत, स्वतंत्र पत्रकार।