अतिक्रमण और सड़क जाम से बेबस हुए लोग

शमेन्द्र जडवाल
शमेन्द्र जडवाल
‘अजयमेरु’ जी हाँ ऐतिहासिक नाम से प्रसिद्द यह शहर। अजमेर ही हैं । दो दो ख़ास विश्व प्रसिद्ध घर्म – स्थलियों वाला यह नामी शहर आजकल सड़के जाम हो जाने वाली ट्रैफिक की समस्या से बुरी तरह ग्रसित हो गया है । अकेले स्टेशन रोड पर ही यह जाम अब हर मिनट के हिसाब से लगने लगा है।सड़कों की ऐसी स्तिथि नागरिकों के लिए बडे विकट हालात खडे कर दे रही है।
चौराहों पर ट्रैफिक पॉइंट्स और सिपाहियों के होते ये नजारा रोज का नियम बनता दिख रहा है।
गौरतलब है की नगर में वाहनों की संख्या प्रतिवर्ष बढ़ रही है।लेकिन सड़कों का माप वही है। कई कंपनियां कारें भी बड़े साइज- सेगमेंट की बना रही है।
मुख्य मार्गों और बाजारों की दशा का वर्णन
करना उतना ही कठिनहो रहा है, जैसे केवल हिंदी के जानकार को संस्कृत की क्लास लेनी पड जाय।मुख्य सडक और बाजारो मै अतिक्रमणों की दशा मे रोज ईजाफा इसलिए भी है ,नगर निगम और यातायात पुलिस इनके खिलाफ कारवाही के नाम जो लीपापोती करती है वो भी यदाकदा ही।
बाजारों में दूकानों के आगे कई जगह 8 से 10 फ़ीट तक कब्जे हो गए हैं ।अकेले कैसरगंज में ही एंसलम स्कूल के कॉर्नर पर सब्जीमंडी के पास थडी व ठेलेवालों ने 20 फ़ीट तक सडक पर कब्जा कर लिया है। तो दूसरी तरफ वाहनो की मरम्म्त करने वाले लोग एक मंदिर की आड में सडक घेरे बैठे है।बस वाहनो का निकलना दूभर ।किसी को शहर की परवाह किसे है ।मुख्य सड़क स्टेशन रोड पर,कचहरी रोड और पृथ्वीराज मार्ग ,दौलतब्बाग वाली रोड ,श्रीनगर रोड चूड़ी बाजार के जाम वाले नज़ारे बहुत कुछ कह रहे होते हैं मगर सुननेवालों के कान में जैसे तेल पड़ा हो।जनता बेचारी तो रोज रोज झेल रही है ।
शहर ही में चल रहे वाहनों में लगभ 2500
सिटी बसें और टेम्पो हैं।यातायात विभाग के मुताबिक
इनमे केवल 974 ही परमिट धारी है।बाकी गैरकानूनी रूप से सड़कों पर 15 से 20 घंटे दौड़ते नजर आ रहे हैं।इसके पीछे का गणित ये है कि, इन बसों और टैम्पो की यूनियने बनी हुई हैं।जो हर बार इन सदस्य वाहनों से चन्दे के रुप में पैसों की उगाही करते विभागीय कारिन्दो तक बेखटके पहूचाते हैं।
अब रही बात हाथ ठेलो की वो भी अपना कारोबार प्रतिदिन मुख्य सड़कों और बाजारों में ही जमकर कर रहे हैं। इनपर भी स्थानीय थाणे चौकियों का वरदहस्त यानि संरक्षण है। इन्होंने तो हर एरिया में
फ्रूट सब्जी और कपड़ों काच के बर्तनों जैसी रोजमर्रा के सामानों का मार्किट ही डवलप कर लिया है।
करे भी क्यों ना,जब सैयां भये कोतवाल तो डर काहे का ? इसीके चलते बाजारों और मुख्य सडकों से राहगीरों के लिए बने फुटपाथ ही गायब कर दिये गये हैं।
यहां हर दिन दिखने वाला यह नजारा,और वाहनो का धडल्ले से छोडा जा रहा धूंआ प्रदुषण शहर की आबोहवा को अशांत किये है।ताज्जुब तो जनाब ये है की, पांच पांच मंत्रीस्तर के नेताओं और सैंकड़ों सरकारी अफसर कारिंदों को जैसे कुछ नजर ही नहीं आ रहा ? वे केवल देख भर रहे हैं जैसे ! इधर वैध ,अवैध टेम्पो बसो को जिन रूट्स पर चलने के लिए परिवहन विंभाग ने अधिकृत किया है, उनपर चलना वाहनचालकों की मर्जी जैसा है।मन मर्जी से मुख्य सड़क पर अपना वाहन रोक देना। आधे रुट से लौट आना ,इनके बाएं हाथ का खेल है।ज्यादातर इन वाहनों के धुंए में नाइट्रोजन ऑक्साइड, कार्बोन जैसे पदार्थ है। जो कैंसर पैदा करने वाले होते है ।इसीसे अस्थमा,एलर्जि त्वचारोग, खुजली रोग तथा कपड़ों पर जमती काली धुल से छुटकारा हो तो कैसे हो।लगता भी है जैसे प्रदुषण फैलाने पर कडा कानून बनाया ही नहीं गया है ?
सबसे बड़ा सवाल ये भी है की,प्रातः स्कूली बच्चों को ठसाठस भेड बकरियो की तरह भरकर चलते इन्हीं वाहनों के लिऐ जिम्मेदार कोन है ? सबकुछ देखकर कभी कभी ऐसा लगता है कि विकास के नाम पर कोई बहुत बडी साजिश चलाई जा रही है। जसमे नेता अफसर और कुछ व्यापारी शरीक हो गये हैं। बीमारों की सख्या मे रोज नया ईजाफा है। मगर फिर सवाल उठता ह ैहालात ठीक करे कौन !
अभी दीपावली के मौके पर कोई 3 हजार दुपहिया और 600 छोटे बड़े वाहन सड़कों पर और उतरे है। परिवहन विभाग के अनुसार इन बस टैम्पो के लिए 24 मार्ग निश्चित हैं।विभाग के पास केवल 1500 का ही इन्द्राज है।बाकी 974 गैरकानूनी चल रहे हैं । अजमेर में कोई 4 लाख से ज्यादा ही वाहन रजिस्टर्ड हैं। यहाँ लोग इस बात से हर रोज परेशान दीखते हैं की सड़क पर अतिक्रमण और ट्रैफिक जाम की स्तिथि से निपटें तो कैसे ? अब भगवान ही का भरोसा रह गया है। करें भी तो क्या …….
Shamendra Jarwal

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