यूआईटी अनुपयोगी अवाप्तशुदा भूमि अवाप्ति से मुक्त करे

यह सर्वविदित है कि राज्य सरकार द्वारा नगर सुधार न्यास अधिनियम बनाकर नगर सुधार न्यासों का गठन नगरों के समुचित व योजनाबद्ध विकास हेतु किया गया था। इसी उद्देश्य से नगर सुधार न्यासों की विभिन्न योजनाओं के लिए भूमि अवाप्ति की व्यवस्था की गई ताकि वे उन अवाप्तशुदा भुमि का विकास करें और अच्छी सड़क, नल, पानी, बिजली की व्यवस्था के साथ रहने के लिए इच्छुक नागरिकों को उस भ्ूामि के प्लॉट बनाकर बेचान करें।
न्यास के लिए भूमि अवाप्ति का यह ध्येय कदापि नहीं था कि भूमि अवाप्ति के बाद यदि किसी कारण से उसका विकास नहीं हो सके तो उस पर कुंडली मारके बैठा रहा जाय और ऐसी भूमि पर जनता से चौथ वसूली करके उन्हें अवैध निर्माण के लिए प्रेरित किया जाय।
सभी न्यासों में प्राय: ऐसी स्थिति हैं, जहां भूमि नगर सुधार न्यास की योजना के लिए अवाप्त तो कर ली है, परन्तु विभिन्न कारणों से न तो उनका मुआवजा दिया गया है, न उन पर योजना बनाई जा सकी और न अब बनाई जा सकती है क्योंकि उन पर व्यक्तिगत निर्माण कार्य हो चुके हैं तथा उनका कब्जा भूमि-धारक के पास ही है, कभी कब्जा नगर सुधार न्यास ने लिया ही नहीं।
ऐसा ही एक केस नगर सुधार न्यास अजमेर की ज्वाला प्रसाद नगर योजना का है, जिसके लिए दो दशक पूर्व भूमि अवाप्त की गई। इस योजना में नगर सुधार न्यास ने अवाप्ति का काम तो कर दिया लेकिन यह ध्यान में नहीं रखा कि लगभग आधी भूमि ऐसी है, जहां पहले से ही भवन निर्माण कार्य पूरे हो चुके हैं और यहां पर नई कॉलोनी बनाना न तो उपयोगी है और न ही लाभदायक। आज भी इस योजना के आधे भाग में जिसका कि स्वयं नगर सुधार न्यास ने पीटी सर्वे भी कराया है, आधी से अधिक भूमि पर 80 प्रतिशत व्यक्तिगत निर्माण कार्य हो चुका है।
कायदे के अनुसार तो यह बात होनी चाहिए कि जहां नगर सुधार की योजना क्रिर्यान्वित होना संभव नहीं है उस क्षेत्र को अपनी योजना से बाहर किया जाए ताकि उस भूमि पर काबिज व्यक्ति नगर सुधार न्यास से नियमन कराके उसका विकास कर सके।
राज्य सरकार ने एक बार नहीं अनेक बार अपने नोटिफिकेशन और सरक्यूलर में यह बात कही है कि जिस भूमि पर खातेदार अथवा रजिस्ट्रीशुदा प्लॉटधारक ने अपना कब्जा किया है, उसका विकास सम्बन्धित भूमिधारक के द्वारा ही न्यास द्वारा घोषित मानदंडों के अनुसार हाना चाहिए चाहिए ताकि भूमि के विकास का रास्ता साफ हो सके।
राज्य सरकार ने ऐसी भूमि को अवाप्ति से बाहर करने के लिए कोई कार्यवाही व कार्ययोजना नहीं बनाई है उल्टे अवाप्तशुदा ऐसी भूमि के नियमन की रेट सामान्य से 10 गुना अर्थात 1500 रु. प्रति वर्गगज रखी है। अवाप्ति की परिभाषा भी इस प्रकार दी है कि चाहे भूमि का कोई मुआवजा ही नहीं दिया हो, चाहे भूमि पर कब्जा भी नहीं किया गया हो, चाहे भूमि पर कोई कागजों में योजना नहीं बनाई हो, तब भी उसे अवाप्त भूमि ही माना जायेगा और उस पर अन्य कृषि भूमियों के मुकाबले 10 गुना राशि अर्थात् 150 के स्थान पर 1500 रु. वर्ग गज नियमन शुल्क लिया जायेगा।
यह सभी को विदित है कि नगर सुधार न्यास नगर और नागरिकों के संरक्षण, सुंदर व्यवस्था उपलब्ध कराने के लिए बनी है न कि उनके लिए किसी प्रकार की कोई अड़चन पैदा करने के लिए। ज्वाला प्रसाद नगर योजना के बाशिंदों ने 10 वर्ष पूर्व से भूमि के नियमन हेतु फाइलें लगाई हुई हैं और यह अनुरोध किया है उनकी भूमि जहां नगर सुधार न्यास की कोई योजना कार्यान्वित ही नहीं हो सकती, उसे वह अवाप्ति से मुक्त करें ताकि उसके विकास की राह खुल सके परंतु न्यास ने इस ओर कभी भी कोई कदम नहीं उठाया है।
अब से लगभग 10 वर्ष पूर्व न्यास की एक समझौता समिति योजना के अंतर्गत यहां के भूमिधारियों से आवेदन मांगे और साथ में 1 हजार रुपए का शुल्क भी लिया, मात्र इसलिए कि यदि उनके आवेदन सही हैं तो उस भूमि को अवाप्ति से बाहर किया जाए परंतु दु:ख और खेद का विषय है कि यह कार्य जान-बूझकर टाल दिया गया और आज तक सभी भूमिधारी परेशान हैं। अब एकाएक उनसे ऐसे प्रकरणों में 1500 रुपए प्रति वर्ग गज का शुल्क मांगा जा रहा है, जिसे वे कभी भी और किसी भी हालत में नहीं देंगे। इसका परिणाम यह होगा कि 150 रु. जो साधारण रेट पर अनगिनत भूमिधारक अपनी भूमि का नियमन कराना चाहते हैं वे नियमन नहीं कराएंगे और बदले में न्यास को जो आय होने वाली है उससे न्यास वंचित रह जायेगी।
इस प्रकरण में न्यास को तुरंत गहराई से विचार करने की आवश्यकता है और ऐसा प्रस्ताव अपने बोर्ड मीटिंग में पास करने की जरूरत है, जिसके अंतर्गत यह व्यवस्था हो कि जो भूमि न्यास योजना के लिए उपयुक्त नहीं है, न इस पर कोई योजना बनाई जा सकती है और ना ही इस पर अब तक कोई योजना बनी है, उसे तुरंत योजना से बाहर करके सामान्य कृषि भूमि की संज्ञा दी जाए ताकि यहां कि भूमिधारक सामान्य दर से नियमन करा सके।
आज भी इस क्षेत्र में न्यास ने जो अपने प्लॉट बेचे हें वे पूरे नहीं बिके हैं उन प्लॉटों के लिए सड़कों, नालियों, बिजली, पानी की व्यवस्थाएं नहीं की हैं। ऐसे में न्यास को यह सोचना चाहिए कि वह कहीं इस क्षेत्र के नागरिकों के साथ अन्याय तो नहीं हो रहा है।
न्यास ने इस समय अध्यक्ष के रूप में एक सक्षम और प्रतिष्ठित व्यावसायी काबिज हैं और साथ ही एक सक्षम कर्मठ आरएएस अधिकारी सेके्रटरी के रूप में हैं, तब इन बिंदुओं पर विचार करने में कोई देरी नहीं करना चाहिए और ऐसे खसरों को अवाप्ति से मुक्त करके उनके सुगम नियमन का रास्ता साफ करना चाहिए।
यह कहने की आवश्यकता नहीं कि इस कॉलोनी की वस्तुस्थिति न्यास की नजर में है। आज भी वहां कई-कई मंजिल के भवन निर्माण हो रहे हैं ऐसी परिस्थिति में न्यास को इन खसरों को अवाप्ति से मुक्त करने की कार्यवाही हेतु विचार करना चाहिए। यदि अवाप्त से मुक्ति हेतु वह सक्षम नहीं है तो प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजना चाहिए ताकि वह दन खरसरो को अवाप्ति से मुक्त कर सके व जनता को प्रशासन शहरों की ओर योजना का सही लाभ मिल सके।


-एन. के. जैन सीए, वरिष्ठ पत्रकार
नाका मदार, अजमेर

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