भील प्रदेश के मुद्दे ने फिर पकड़ा जोर

अब राजस्थान, गुजरात और मध्यप्रदेश के आदिवासी जिलों को मिलाकर अलग से भील प्रदेश बनाने का मुद्दा एक बार फिर जोर पकड़ने लगी है। कांग्रेस और भाजपा के आदिवासी नेताओं के साथ ही सामाजिक एवं आदिवासी संगठनों के नेताओं ने भी भील प्रदेश को लेकर केन्द्र सरकार पर दबाव बनाने की रणनीति बनाई है। भील प्रदेश को लेकर सक्रिय हुए नेता संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान दिल्ली में एकत्रित होकर राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह,कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी,पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी और जनता दल नेता शरद यादव से मिलकर आदिवासी राज्य के लिए समर्थन मांगने की रणनीति बना रहे है। आदिवासी नेता चाहते है कि आदिवासियों के आस्था स्थल बांसवाड़ा जिले के मानगढ़ को नये प्रदेश की राजधानी बनाया जाय। दो दिन पहले 17 नवम्बर का मानगढ़ के शहीदों की स्मृति में आयोजित शताब्दी समारोह में अलग आदिवासी राज्य का मुद्दा उठा। यह मुद्दा कांग्रेस और भाजपा दोनों के ही कार्यक्रमों में उठाया गया।

मानगढ़ में हुए कार्यक्रमों में अशोक गहलोत सरकार के उच्च शिक्षा राज्यमंत्री दयाराम परमार ने कहा कि आदिवासी राज्य की जरूरत है अथवा नहीं इस पर सभी आदिवासी नेताओं को चिंतन करना होगा। यहां की स्थिति को देखते हुए योजनाएं बने तभी क्षेत्र का विकास सम्भव है। वहीं भाजपा की ओर से आयोजित समारोह में भाजपा नेता और अनुसूचित जनजाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष दिलीपसिंह भूरिया ने कहा कि अब समय आ गया कि मध्यप्रदेश, गुजरात और राजस्थान के आदिवासी जिलों को मिलाकर भील प्रदेश स्थापना के बारे में चर्चा हो एवं इसकी राजधानी मानगढ़ धाम को बनाया जाए। इस बारे में उदयपुर सांसद रघुवीर मीणा का कहना है कि अरुणाचल प्रदेश की तर्ज पर तीन प्रदेशों के आदिवासी क्षेत्र को मिलाकर आदिवासी राज्य बनाया जा सकता है, इससे इससे आदिवासियों का विकास होगा।

उन्होंने कहा कि यह उच्च स्तर पर विचार का विषय है मै भी समय आने पर अपनी बात कहूंगा। बांसवाड़ा की जिला प्रमुख और राज्य के पंचायत मंत्री महेन्द्रजीत मालवीय की पत्नी रेशम मालवीय का कहना है कि अलग राज्य से ही आदिवासियों का विकास होगा, अभी आदिवासियों तक सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं पहुंच पा रहा है, जबकि हम काफी प्रयास कर रहे है, गहलोत सरकार ने कई योजनाएं भी बनाई है। भाजपा नेता और पूर्व सांसद कनक मल कटारा का कहना है कि यह विषय समय-समय पर उठता रहा, इस पर विचार किया जाना चाहिए।

दौसा के निर्दलीय सांसद डॉ. किरोड़ी लाल मीणा ने आदिवासियों की मौजूदा हालत पर चिंता जताते हुए कहा कि कांग्रेस एवं भाजपा सरकारों ने इस क्षेत्र पर ध्यान नहीं दिया,अलग राज्य बनता है तो इनका विकास होगा।

सूत्रों के मुताबिक राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात के आदिवासी नेता अगले माह गुजरात विधानसभा चुनाव के बाद दिल्ली में एकत्रित होकर इस बारे में आंदोलन की रणनीति बनाएंगे।

आदिवासी नेता पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पी.ए.संगमा से भी इस मुद्दे को आगे बढ़ाने में सहयोग मांगेंगे। सामाजिक संगठनों के आदिवासी नेताओं का मानना है कि अगले साल होने वाले राजस्थान और मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव और उसके बाद लोकसभा चुनाव में आदिवासी प्रदेश के मुद्दे पर कांग्रेस एवं भाजपा के अतिरिक्त भी उम्मीदवार खड़े किए जा सकते है जो कि अलग प्रदेश की मांग विधानसभा एवं लोकसभा में उठाएं।

गौरतलब है कि राजस्थान के तीन जिले, गुजरात और मध्यप्रदेश के आदिवासी क्षेत्र को मिलाकर अरूणाचल प्रदेश जितने क्षेत्रफल का प्रदेश बनाया जा सकता है। मानगढ़ तीनों ही प्रदेशों के आदिवासियों का आस्था स्थल रहा है।

इतिहास के मुताबिक 17 नवम्बर,1913 को आदिवासी नेता गोविंद गुरू की अगुवाई में आदिवासी सत्याग्रह कर रहे थे उसी दौरान तत्कालीन अंग्रेज सरकार ने उन पर गोलियां चलाई जिसमें बड़ी तादाद में आदिवासी मारे गए थे, तभी से यह आदिवासियों का आस्था स्थल बन गया और तीनों ही राज्यों के आदिवासी यहां आते रहते है।

पिछले दिनों गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यहां आकर गोविंद गुरू की समाधी पर पुष्पांजली अर्पित की, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी 17 नवम्बर को वहां गए थे।

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