केकड़ी क्षेत्र में हालात भाजपा के अनुकूल नहीं

विधानसभा चुनाव को लेकर केकड़ी क्षेत्र में तरह तरह के कयास व अटकलों का दौर चल रहा है वहीं चुनाव में उम्मीदवारों को जनसम्पर्क के दौरान मिल रहे समर्थन, पार्टी के क्षेत्रीय नेताओं की भूमिका, कौन बनेगा विधायक, किसकी बनेगी सरकार, क्या है मतदाताओं का मूड आदि कई तरह के सवालों ने जन्म ले लिया है। भाजपा ने जहां एक साधारण कार्यकर्ता राजेन्द्र विनायका को प्रत्याशी बनाया है वहीं कांग्रेस के दिग्गज नेता डॉ रघु शर्मा चुनाव मैदान में है। सवाल ये है कि क्या पार्षद राजेन्द्र विनायका पहली बार विधायक बनने का सपना पूरा कर पाएंगे या सांसद डॉ रघु शर्मा एक बार फिर विधायक बनेंगे। राजस्थान में सरकार किस पार्टी की बनेगी, क्या भाजपा पुनः सत्ता में आ पाएगी या फिर कांग्रेस सरकार बनाएगी। ज्ञात रहे कि केकड़ी क्षेत्र से जिस पार्टी का उम्मीदवार जीतता है राज्य में उसी पार्टी की सरकार बनती है यह परम्परा बरसों से चली आ रही है। इस बार मतदाताओं का मूड क्या कह रहा है कहीं ऐसा तो नहीं गत वर्ष उपचुनावों में जो संकेत 17 विधानसभाओं में मिले थे वही तो नहीं होने वाले। अगर ऐसा होता है तो फिर भाजपा का पुनः सत्ता में आना टेढ़ी खीर दिखाई दे रहा है। हालांकि टिकट वितरण में इस बार दोनों दलों ने ठोक बजाकर जिताऊ नेताओं को ही अपना उम्मीदवार बनाया है, मगर कई क्षेत्रों में बागियों ने समीकरण बिगाड़ दिए हैं। इसलिए कुछ भी दावा नहीं किया जा सकता कि ऊंट किस करवट बैठेगा। इधर नेताओं की चुनाव में भूमिका को लेकर भी कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। भाजपा के राजेंद्र विनायका के समर्थन में कुछ क्षेत्रीय नेता जिनका मतदाताओं में अच्छा प्रभाव है अभी तक भी चुनाव अभियान में नहीं जुट पाये हैं। इममें विधायक शत्रुघ्न गौतम, पूर्व विधायक बाबूलाल सिंगारिया व पूर्व प्रधान रिंकू कंवर राठौड़ के नाम शामिल हैं। हालांकि विधायक गौतम विनायका के नामांकन के समय आये थे मगर वे उसके बाद क्षेत्र में दिखाई नहीं दिए। उनके नहीं आने के पीछे क्या कारण रहे मालूम नहीं, मगर उनके समर्थकों व क्षेत्र के मतदाताओं के बीच उनके नहीं आने को लेकर चर्चा है। वहीं पूर्व विधायक भाजपा नेता बाबूलाल सिंगारिया भी नहीं आ रहे जबकि विनायका उनसे कई बार आने का आग्रह कर चुके हैं। बताया जा रहा है कि सिंगारिया का अनुसूचित जाति व मुस्लिम मतदाताओं में अच्छा प्रभाव है। उधर रिंकू कंवर राठौड़ पहले ही कह चुकी है कि जब तक मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे उन्हें नहीं कह देती तब तक वे चुनाव के दौरान क्षेत्र में नहीं आएंगी। ऐसी स्थिति में विनायका कांग्रेस के डॉ शर्मा की तुलना में कमजोर पड़ते दिखाई दे रहे हैं। डॉ शर्मा इस मामले में तकदीर वाले हैं, उनके साथ क्षेत्र के सभी कांग्रेसी नेता चुनाव अभियान में लगे हुए हैं। और तो ओर उनके सुपुत्र सागर शर्मा ने चुनाव की बागडोर इस कदर संभाल रखी है कि सैंकड़ों युवा अभी से उनके दीवाने हो गए हैं। सवाल ये है कि सागर शर्मा कहीं अगले चुनाव में कांग्रेस की ओर से नया चेहरा तो नहीं होंगे। जिस तरह से उनके पिताश्री उन्हें राजनीति की एबीसीडी सीखा रहे हैं उससे तो यही लगता है। वहीं सवाल है कि क्या भाजपा के परम्परागत वोट बैंक राजपूत, रावणा राजपूत, ब्राह्मण, कुछ महाजन मतदाता उसके हाथ से छिटक रहे हैं। जनसम्पर्क के दौरान विनायका के चेहरे पर चिंता की लकीरें व डॉ शर्मा के चेहरे पर रौनक किस बात का संकेत दे रहे हैं। आम मतदाताओं के रूझान का पलड़ा कांग्रेस की ओर झुकता दिखाई दे रहा है हालांकि विनायका भी मतदाताओं को रिझाने का भरसक प्रयास कर रहे हैं। बस फर्क इतना है कि डॉ शर्मा को किसी सहारे की जरूरत नहीं पड़ रही वहीं विनायका को क्षेत्र में नया चेहरा होने की वजह से दूसरों की उंगली पकड़कर गांवों में जाना पड़ रहा है। खैर जो भी हो विनायका को अधिक मेहनत करने की जरूरत है, फिलहाल हालात उनके अनुकूल नहीं है !

तिलक माथुर
*9251022331*

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