क्या आपको भूमाफिया जनप्रतिनिधि चाहिए?

तेजवानी गिरधर
यह खबर लिखे जाने तक हालांकि पुष्कर नगर पालिका के अध्यक्ष पद की लॉटरी नहीं निकली है, इस कारण चुनावी आकाश पर धुंधलका छाया हुआ है, मगर बावजूद इसके वार्ड मेंबर के चुनाव के लिए दावेदारों ने मालिश शुरू कर दी है। कुछ ने तो पूरा गणित ही बैठा लिया है और मतदाता सूचियों में अपने-अपने हिसाब से नाम जुड़वा दिए हैं। यदि ठीक से जांच की जाए तो सारी पोल खुल जाएगी कि किस वार्ड में क्या बदमाशी की जा रही है। जहां तक ग्राउंड सर्वे का सवाल है, यह साफ-साफ नजर आ रहा है कि इस बार चुनाव में भूमाफियाओं का बोलबाला रहने वाला है। यानि कि ईमानदार व समर्पित दावेदार तो चुनाव लडऩे की सोच भी नहीं सकता।
पिछले चुनाव का अनुभव बताते हुए हारे हुए एक प्रत्याशी बताते हैं कि वार्ड में उनकी जबरदस्त पकड़ थी और अब भी है। उन्होंने अनेक मतदाताओं के निजी काम करवाए थे। इस कारण उनको पूरा यकीन था कि वे आसानी से जीत जाएंगे, मगर मतदान की पूर्व संध्या में ही पासा पलट गया। समझा जा सकता है कि पासा कैसे पलटा होगा। अगर उनको एक सेंपल के रूप में लिया जाए तो कल्पना कर सकते हैं कि वास्तव में अपनी मातृ भूमि की सेवा करने वालों में चुनाव लडऩे की कितनी इच्छा शेष रह गई होगी।
असल में पुष्कर में तीन तरह के लोग प्रभावशाली हैं। जमीन की दलाली करने वाले, होटल व्यवसायी व एक्सपोर्टर्स। और इन सबसे ऊपर सक्रिय राजनीति करने वाले। इन्हीं के पास राजनीति में पैसा झोंकने की गुंजाइश है। जगहाहिर है कि आज चुनाव में पैसे का कितना बड़ा रोल है। ऐसे में ये लोग ही पुष्कर पालिका चुनाव में अहम भूमिका निभाएंगे। जीत जाने अथवा किसी को जितवा देने के बाद ये इन्वेस्ट किए हुए धन का कई गुना दोहन करेंगे। ऐसा नहीं है कि ऐसा पहली बार होने जा रहा है। पिछले कई चुनावों से ऐसा होता आया है। तो फिर आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि ये पुष्कर के भले की सोचेंगे। अपना ही घर तो भरेंगे। यदि एक-एक का नाम लेकर बात की जाए तो यह पूरी तरह से स्पष्ट हो जाएगा कि अधिसंख्य जनप्रतिनिधियों ने राजनीति में आने के बाद कितना निजी विकास किया है। अगर राजनीति में दखल रखने वालों ने भला सोचा होता तो आज पुष्कर की बुरी हालत नहीं होती।
पुष्कर की दुर्दशा देख कर सहसा हम सरकार व प्रशासन को कोसते हैं कि वे कुछ नहीं कर रहे, मगर सच्चाई ये है कि यहां के विकास के लिए समय समय पर अतिरिक्त बजट आवंटित हुआ है। बावजूद इसके अगर पवित्र सरोवर स्वच्छ पानी को तरस रहा है, सरोवर के घाटों पर गंदगी पसरी है, सड़कों की दुर्दशा है, अतिक्रमणों की भरमार है तो इसका मतलब ये है कि जो भी राशि सरकार की ओर से आती है, वह या तो ठीक से उपयोग में नहीं लाई गई या फिर जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों, अधिकारियों व ठेकेदारों के बीच बंदरबांट में निपट गई।
बेशक पुष्कर का विकास करने की जिम्मेदारी सरकार की है, अजमेर विकास प्राधिकरण व नगर पालिका की है, मगर उतनी ही जिम्मेदारी हमारी है कि हम विकास कार्यों पर नजर रखें, ताकि केन्द्र व राज्य सरकार से विभिन्न योजनाओं के लिए मिलने वाले धन का दुरुपयोग न हो। इस कड़ी में हम समाजसेवी व बुद्धिजीवी श्री अरुण पाराशर का नाम ले सकते हैं, जिन्होंने सक्रिय राजनीति में भाग न लेते हुए पुष्कर से जुड़े हर मसले पर गहन अध्ययन करने के बाद सरकार व प्रशासन पर दबाव बनाया है कि विकास के लिए आने वाले धन का सदुपयोग हो। संभवत: वे इकलौते बुद्धिजीवी हैं, जिनके पास पुष्कर के विकास के लिए अब तक बनी सभी योजनाओं के बारे तथ्यात्मक जानकारी है और फॉलोअप के लिए आरटीआई के जरिए जुटाए गए आंकड़े हैं, जिनसे स्पष्ट दिखता है कि बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ है, जिसके बारे में आम मतदाता को कुछ भी नहीं।
श्री पाराशर का जिक्र करने का निहितार्थ यह है यदि हमें पुष्कर में हो रहे विकास कार्यों पर ठीक से निगरानी करनी है तो ऐसे और बुद्धिजीवियों को एक मंच पर लाना होगा। ये प्रयास करना होगा कि भूमाफियाओं की आगामी नगर पालिका चुनाव में कम से कम भूमिका हो। हर वार्ड में आपको ऐसे समाजसेवी मिल जाएंगे, जो कि वास्तव में पुष्कर का विकास चाहते हैं। उन्हें प्रोत्साहित करना होगा।

-तेजवानी गिरधर
अजमेर की मशाल से साभार

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