जब तक अजमेर-पुष्कर रेल मार्ग शुरू नहीं हो रहा था तो इस बात का हल्ला था कि इसमें लेट लतीफी क्यों हो रही है और जब शुरू हो गया है तो तकलीफ ये है कि यह बेकार और अनुपयोगी है। असल में उसकी बडी वजह ये है कि उसे बाद में मेडता से नहीं जोडा गया। मेडता से जोडे जाने पर ही यह मार्ग बहुत से मार्गों से जुड पाता। इसी सिलसिले में हाल ही राजस्थान पर्यटन विकास निगम के अध्यक्ष धर्मेन्द्र राठौड ने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि पुष्कर से मेड़ता रेल लाइन निर्माण किया जाए। देखना ये होगा कि केन्द्र सरकार उनके आग्रह को कितना गंभीरता से लेती है।
आपको याद होगा कि अजमेर व पुश्कर को रेल लाइन से जोडने की मांग करीब पंद्रह-बीस साल पुरानी थी। स्थानीय राजनीतिक दल लगातार प्रयास करते रहे और बड़ी जद्दोजहद के बाद इसको मंजूरी मिली। तत्कालीन लोकसभा सदस्य प्रो. रासासिंह रावत और राज्यसभा सदस्य डा. प्रभा ठाकुर व औंकार सिंह लखावत ने भी खूब जोर लगाया।
जब अजमेर-पुष्कर रेल मार्ग की महत्वाकांक्षी योजना पर केन्द्र और राज्य सरकार के बीच तालमेल की कमी के चलते धीमी गति से अमल हो रहा था तो यह कहा जा रहा था कि नियत अवधि से यह न केवल तीन साल पिछड़ गया है, अपितु इसकी लागत भी तकरीबन चार करोड़ बढ़ गई है। जहां 88 करोड़ लगने थे, वहां लागत 92 करोड़ को भी पार कर गई। इस रेल मार्ग का काम 1 जनवरी 2006 को शुरू हुआ था। यदि सब कुछ ठीकठाक चलता रहता तो इसको दो साल में पूरा कर लिया जाता, लेकिन लेटलतीफी के कारण इसे कुल चार साल में पूरा होने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। शुरुआत से ही इसकी राह में रोड़े आ रहे थे। सबसे पहले तो जो रूट तय किया गया, उस पर आने वाली वन भूमि मिलने में देरी हुई। वन महकमे ने पूरा डेढ़ साल खराब कर दिया। रेलवे बार-बार आग्रह करता रहा, लेकिन वन महकमे ने इसकी गंभीरता को ही नहीं समझा। केन्द्र व राज्य सरकार में समन्वय न होने के कारण भी काम ठप्प पड़ा रहा। इसके लिए राजनीतिकों को गालियां भी पड़ती थीं कि वे क्षेत्र के विकास पर ध्यान नहीं देते। वो तो बाद में केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट ने रुचि ली, तब जा कर काम ने तेजी पकड़ी और आखिर यह रूट शुरू हो गया। अब जब कि यह शुरू हो गया है तो पता लग रहा है कि ये बेकार ही है। प्रतिदिन सफर करने वाले यात्रियों की संख्या बहुत कम है। जाहिर सी बात है कि जब इस ट्रेन से आमदनी नहीं है तो रेलवे महकमे ने भी न तो स्टेशन पर पर्याप्त स्टाफ रखा है और न ही यात्री सुविधाओं पर कोई ध्यान दे रहा है। कारण यही है कि यात्रियों को सडक मार्ग ज्यादा आसान लगता है। लब्बोलुआब जब तक पुश्कर से मेडता तक रेल लाइन नहीं बढाई जाएगी तब तक यह अनुपयोगी ही रहेगी।
तेजवानी गिरधर
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