प्रणाम मन्नान राही साहब

आज यह खबर खबर पढ़कर मन उदास हो गया कि मन्नान राही साहब जन्नत नशीन हो गये। ऐसा कौन होगा जिसे शायरी से मोहब्बत हो और वह राही साहब से परिचित ना हो ..।
अजमेर को शायरी लिखने और सुनने का सलीक़ा राही साहब ने सिखाया।उनके अनेक शागिर्द उनकी छाया में लिख-सीख कर ग़ज़ल की दुनिया के सितारें बन गये।वे खुद भी देश भर के मुशायरों में शिरकत एवं निजामत करते रहे हैं..।वे जब कोई शे’र पढ़ते थे तो सायमीन तो सायमीन आस पास के खिड़की दरवाज़े तक खामोशी ओढ़ लेते थे, मानो शे’ र पूरा होने पर एक साथ दाद देंगे …उनकी निजामत का सहुर ए सलीक़ा का जलवा था वे वे शायर की जलसा ए तारीफ़ों के साथ उसकी कमतरी पर लब्ज़ो की बारीक़ नोक़ रख देते थे।
उनके जाने की खबर पढ़कर ,मैं देर तक उनकी शख़्सियत और अंदाज़े बयाँ के बारे में सोचता रहा…बहुत कम नाम हैं जिन्होंने शायरी, सूफ़िज़्म और अजमेर को एक साथ जिया है ..एक पूरी तहज़ीब इस बात का प्रमाण है कि पन्नी ग्राम चौक पर जयरिनो के बीच शायरों की शेर कुछ यूँ ही गुंजा करते थे जैसे भीड़ भरे बाज़ारों में खिलोनों की दुकानों पर सजी बाँसुरी की आवाज़ें …।
अब वें आवाज़ें सूनी हो गई ..पन्नी ग्राम चौक सूना हो गया..सूफ़ी स्वर सूना हो गया.. शायरी सूनी हो गई ..अजमेर सूना हो गया.. और सबसे बड़ी बात वह मोहक उपस्थिति ख़त्म हो गई जो कविता के अलग अलग रंग संजोती थी..।
राही साहब , आप जहाँ कहीं भी हो आपको मेरा प्रणाम मिले…ईश्वर हमें आपकी मोहब्बतें सम्भालने की ताक़त दें ।

*रास बिहारी गौड़*

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