मैने इसलिए ज्वाइन की आम आदमी पार्टी – रमेश टेहलानी

आपको विदित होगा कि मैने आम आदमी पार्टी की सदस्यता ग्रहण की है। इस खबर को पाने के बाद कई मित्रों/शुभचिंतकों ने बधाई दी और कुछ ने मेरे इस निर्णय पर प्रश्न उठाए। कुछ ने चिंता जताते हुए कहा कि आप जैसे ईमानदार स्वच्छ छवि वाले व्यक्तित्व को गंदी राजनीति से दूर रहना चाहिए। ऐसे कई कथनों और प्रश्नों के उत्तर में मेरा आज का यह ब्लॉग संदेश है।

आज से दो महीने पहले तक मेरा राजनीति से संबंध महज आपसी दोस्ताना बातचीत और व्हाट्सएप/सोशल मीडिया के फॉरवर्ड पढ़ने तक सीमित था। कभी मनमोहन सिंह सही लगे, कभी मोदी जी। कभी ममता बनर्जी ने चौंकाया और कभी नीतीश कुमार की नीति ने। कभी लगा राहुल गांधी के विचार भी सही है और कभी लगता था अरविंद केजरीवाल की कार्यप्रणाली भी बढ़िया है। ट्रंप का अमेरिकी राष्ट्रपति बनना और फिर बदलाव आना भी जानकारी का हिस्सा बना।
मोबाइल रूपी हथियारों से लैस लाखो IT सेल योद्धा और मीडिया दिन रात अपनी प्रिय राजनीतिक दल के पक्ष में और विपक्ष के विपक्ष में जनमानस बनाने बिगाड़ने में जुटे रहते है और मुझ जैसे आम आदमी की सोच पर प्रभाव डालते थे। स्कूल और कॉलेज में जो इतिहास और राजनीति विज्ञान हमे पढ़ाया गया और जो सोशल मीडिया यूनिवर्सिटी पर इतिहास और राजनीति पढ़ा या पढ़ाया जा रहा है, उसमे काफी विरोधाभास महसूस हुआ। *दिल दिमाग कंफ्यूज हो गए कि महात्मा गांधी हीरो थे या विलेन, अंबेडकर जननायक थे या खलनायक, अकबर महान थे या आक्रांता इत्यादि इत्यादि।* हिंदू-मुस्लिम, जात-धर्म, मन्दिर-मस्जिद, भ्रष्टाचार, कानून-शिक्षा मुद्दों के हर तरह के पहलू का अभूतपूर्व ज्ञान सोशल मीडिया यूनिवर्सिटी पर मिलने के बाद लगने लगा कि मैने कॉलेज में इतिहास राजनिति विज्ञान पढ़ने में तीन साल खराब कर दिए और सोचा काश हमारे जमाने में सोशल मीडिया और अंबानी के जियो की मेहरबानी होती। पर बाएं दिमाग का लॉजिक कहता है कि पता लगाओ सच क्या झूठ क्या। सच का पता लगाना एक खोजी प्रवृति के व्यक्ति के लिए जरूरी होता है, अन्यथा अंतर्द्वंद होने की संभावना बढ़ जाती है।

मेरे आध्यात्म से जुड़ाव और बीस वर्ष से अधिक समय के आध्यात्मिक अध्ययन व व्यवहारिक/कामकाजी अंतरराष्ट्रीय अनुभव के आधार पर मैने हर मुद्दे को अपने ज्ञान/अनुभव की कसौटी पर जांचा, परखा और पाया कि हर राजनीतिक दल तथ्यों- बातो-मुद्दों को अपने फायदे के लिए तोड़ मरोड़ कर पेश करता है और आम आदमी के लिए पता लगाना बहुत मुश्किल होता है कि क्या सच है और क्या फेक। इसी वजह से मुझे राजनीतिक बातो से मुश्किल महसूस होती थी और कई बार अपने करीबियों से व्यर्थ वाद-विवाद भी होता था और कुछ रिश्तों में भी दरारें आने लगी। इसी वजह से मैं राजनीतिक दलों और बातो से दूरी बनाकर रखने की कोशिश की थी, क्योकी लगता था कि सच में यहां गंदगी बहुत है। पर पिछले महीने एक व्यक्ति से मुलाकात ने मेरी सोच में मोच ला दी और मेरी मानसिकता में बदलाव आया। उस व्यक्तित्व का नाम फिर कभी बताएंगे।

वे मेरे ऑफिस में मिलने आए और बातो के दौरान कहा कि “रमेश जी, आप जैसे अच्छी छवि, ईमानदार, पढ़े-लिखे, अर्थव्यवस्था का ज्ञान रखने वाले सफल व्यवसायी को राजनिति में कदम रखना चाहिए।”
मेरा उत्तर था कि “राजनीति में काफी जगह गंदगी है, इसलिए मेरा मन नहीं है कि मैं भी इसका हिस्सा बनूं।”
उन्होंने पूछा कि “आपकी सोच में राजनीति को गंदा क्यों कहा जाता है?”
मैने कहा, “अधिकतम लोग सत्ता प्राप्ति हेतु लगभग सभी दल और लोग किसी भी हद तक उतर जाते है, गलत इल्जाम लगाते है, चरित्र हनन करते है, राजनीति में नैतिकता दिखती नही।” आदि आदि कई बाते।
उन्होंने बताया कि “ऐसा इसलिए है क्योंकि अधिकतम बुद्धिजीवी, सफल, पढ़े-लिखे, नैतिक ईमानदार लोग भय या परेशानी के कारण इस राह को नही लेते और फिर यही लोग अगर कहे कि राजनीति खराब है, तो क्या उन्हे यह कहने का हक होना चाहिए? *जब सही लोग ही लोकतंत्र में हिस्सा नहीं लेंगे तो फिर गलत लोगो के आने के दोषी ये सही लोग है।* आप स्वयं जिम्मेदार है देश में राजनीति के गिरते स्तर के लिए। प्लूटो का कथन है कि *’राजनीति में हिस्सा न लेने का सबसे बड़ा दंड यह हैं कि अयोग्य व्यक्ति आप पर शासन करने लगते है।’* इसलिए आप जैसे व्यक्तियों की इस क्षेत्र में जरूरत है ताकि राजनीति का असल उद्देश्य प्राप्त हो सके और आम जनता का जीवन स्तर ऊपर उठ सके। और वैसे जिस रियल एस्टेट क्षेत्र में आप काम करते है, काफी लोग तो उसे भी गंदा कहते है, पर आपने ऐसे क्षेत्र में अलग छवि और साफ सुथरी पहचान बनाई है। मुझे उम्मीद है आप राजनीति में नैतिकता के साथ काम कर के भी सफल हो सकते है।”
मैं उनकी बाते सुनकर निरुत्तर था। उनके कहे कथन सही और सटीक है। उसी समय निर्णय लिया कि अगर राजनीति के माध्यम से मनवता में योगदान का अवसर मिले तो जरूर प्रयास करने चाहिए। उसी समय मेरे प्रिय दोस्त महेंद्र का व्हाट्सएप मैसेज आया कि *”हार जाने का दुख कुछ दिनों तक रहता है किन्तु कोशिश न कर पाने का दुख अंत तक रहता है।”* इस संदेश और उस व्यक्तित्व ने मुझे राजनीति में कदम रखने के लिए प्रेरणा दी। फिर मुझे एक आम आदमी के वरिष्ठ कार्यकर्ता मिले और उन्होंने मुझे आम आदमी पार्टी से जुड़ने के लिए कहा। मैने सोचने के लिए कुछ दिन का समय मांगा और व्यक्तिगत स्तर पर दिल्ली के परिचित लोगो का सर्वे किया और पाया कि उन परिचितों में से 90% से अधिक आम आदमी पार्टी के कार्य से संतुष्ट है। जब मैने राजस्थान में परिचितों से सर्वे किया तो पाया कि अधिकतर लोग राजस्थान में बदलाव चाहते है और आम आदमी पार्टी को बेहतर विकल्प मानते है। अजमेर में सर्वे किया तो पाया कि आम आदमी पार्टी से जुड़कर अजमेर में बदलाव के लिए प्रयास किया जाना चाहिए।
इन्ही कारणों से मैने आम आदमी पार्टी ज्वाइन करने का निर्णय लिया और आम आदमी पार्टी ने मेरे अनुभव के आधार पर मुझे जिम्मेदारी दी है कि विकास की समान विचारधारा रखने वाले लोगो को जोड़े, ताकि अजमेर और राजस्थान में भी दिल्ली और पंजाब की तरह सकारात्मक परिवर्तन ला सके।

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