वे हैं तो निवर्तमान, मगर सौंपे गए काम को वर्तमान की तरह बखूबी अंजाम देते हैं। जी हां, हम जिक्र कर रहे हैं विजय जैन का, जो षहर जिला कांग्रेस की नैया के चप्पू थामे हुए हैं। दो साल से भी ज्यादा हो चले हैं, मगर अधर में लटके हुए हैं। न इधर के न उधर के। षायद गहलोत जी जिस रगडाई का हवाला देते हैं, वह यही हुआ करती है। कुछ लोगों का मानना है कि बिना आधिकारिक कार्यकारिणी के नेतृत्व का बोझ संभालते संभालते अब थक गए होंगे। मगर उनके चेहरे पर षिकन तक नहीं। वैसे उनकी भी यही पीडा होगी कि या तो उन्हें कन्टीन्यू कर दिया जाए, या फिर किसी और को नियुक्त कर दिया जाए। त्रिषकू क्यों बना रखा है?
दिलचस्प बात देखिए कि सचिन पायलट खेमे के होने के बाद भी गोविंद सिंह डोटासरा उनकी तारीफ करते हैं। ऐसा कम ही होता है। ये भी राजी और वे भी राजी। सब को खुष रखने की कीमिया किसी किसी में होती है। ऐसे में स्वर्गीय श्री माणकचंद सोगानी की याद दस्तक देती है, जिनके आभा मंडल में आना वाला हर गुस्सेल षांत हो जाता था। आपको ख्याल होगा कि जैन ने मेरवाडा एस्टेट में आयोजित संभागीय कांग्रेस सम्मेलन की जिम्मेदारी इतनी बखूबी निभाई कि डोटासरा ने षाबाषी देते हुए आष्चर्य जताया था कि निवर्तमान होते हुए भी ऐसा वे कैसे कर लेते हैं। अर्थात मुख्यमंत्री अषोक गहलोत लॉबी में भी पार्टी के प्रति उनकी वफादारी काउंट की जाती है। कानाफूसी है कि इस रगडाई का उनको ईनाम मिलेगा ही। फिलवक्त भले ही वे चुपचाप काम किए जा रहे हैं, मगर समझा जाता है कि उनके दिलो दिमाग में भी कोई सपना पल रहा होगा। चुनावी गतिविधियां आरंभ होते ही वे अजमेर उत्तर सीट के लिए दावेदारी करेंगे। उन पर कोई दाग भी नहीं है। मगर धर्मेन्द्र सिंह राठौड के मुकाबले कितनी दमदारी से खम ठोक कर खडे रह पाते हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो इतना पक्का है कि चुनाव में कांग्रेस की जीत होने पर उनको बडी राजनीतिक नियुक्ति तो मिल ही जाएगी।