अजमेर की मीडिया को सलाम

जिले के थानेदारों से मंथली लेने के मामले में धरे गए अजमेर जिले के पुलिस कप्तान राजेश मीणा की कारगुजारी का जितनी बारीकी से पोस्टमार्टम अजमेर मीडिया ने किया है, वह लाजवाब व तारीफ ए काबिल है। यह अजमेर के जागरूक पत्रकारों व फोटोग्राफरों की हिम्मत ही है कि उन्होंने पुलिस के धमकाऊ रवैये के बाद भी न केवल इस कांड का हर एंगल से खुलासा किया, अपितु दुर्लभ फोटो भी खींचे। शायद ही कोई ऐसा पहलु बाकी रहा हो, जिसे कि मीडिया ने नहीं छुआ हो। उल्लेखनीय बात ये है कि पत्रकारों को आधिकारिक तौर पर सीमित जानकारी ही मिल पाई, बाकी सारी जानकारी उन्होंने अपनी खोजी नजर और कड़ी मेहनत से उजागर की है। सच तो ये है कि इस कांड पर अब तक प्रकाशित सारी जानकारी एक दस्तावेज है, जो पुलिस की कार्यप्रणाली पर संपूर्ण नजर रखता है।
अजमेर की मीडिया की यही खासियत उसे पूरे राजस्थान व देश में अपनी अलग पहचान देती है। केवल रिपोर्टिंग ही नहीं, अपितु घटना से जुड़े हर पहलु पर नजर डालना इसकी फितरत रही है। इतना ही नहीं फॉलोअप के मामले में भी यहां के पत्रकारों को कोई सानी नहीं है। यह पहला ऐसा मामला नहीं है, जिसमें मीडिया ने इतनी मुस्तैदी दिखाई है, इससे पहले भी अनेकानेक कांडों की सटीक रिपोर्टिंग की जा चुकी है। आपको याद होगा देश का सबसे बड़ा अश्लील फोटो ब्लैककांड, जिसे अजमेर की मीडिया ने ही अंजाम तक पहुंचाया। इस सिलसिले में दैनिक भास्कर के मौजूदा डिप्टी न्यूज एडीटर संतोष गुप्ता को माणक अलंकरण मिला था। क्लाक टावर सीआई हरसहाय मीणा का प्रकरण भी सिरे तक पहुंचाने का श्रेय अजमेर की मीडिया को है। अगर केवल क्राइम रिपोर्टिंग की बात करें तो स्वर्गीय जवाहर सिंह चौधरी से लेकर अरुण बारोठिया, प्रताप सनकत, निर्मल मिश्रा, अमित वाजपेयी, विक्रम चौधरी, राजेन्द्र याज्ञिक, राजेन्द्र हाड़ा, रहमान खान, धर्मेन्द्र प्रजापति, कौशल जैन, राजकुमार वर्मा, योगेश सारस्वत, अमर सिंह सरीखे पत्रकारों ने बेखौफ हो कर अपराधियों के चेहरे बेनकाब किए हैं। इसी प्रकार इन्द्र नटराज, स्वर्गीय गुल टेकचंदानी, मोती नीलम, सत्यनारायण जाला, महेश नटराज, मुकेश परिहार, गोपाल शर्मा, मोहन कुमावत, दीपक शर्मा, जय माखीजा, नवीन सोनवाल, मोहम्मद अली, बालकिशन झा, अनिल सरीखे फोटोग्राफरों ने पत्रकारों के साथ कंधे से कंधा मिला कर अपन फन का लोहा मनवाया है।
क्राइम हो या प्रशासनिक क्षेत्र और चाहे राजनीति, हर एक क्षेत्र पर अजमेर के पत्रकारों ने अपनी पकड़ साबित की है। ऐसे सैंकड़ों उदाहरण अजमेर की पत्रकारिता के इतिहास में अंकित हैं।
उम्मीद की जानी चाहिए मीणा कांड के फॉलोअप में भी अजमेर की मीडिया कोई कसर बाकी नहीं छोड़ेगी, चाहे उसे बाद में गाहे-बगाहे पुलिस के गुस्से का शिकार होना पड़े। इस सिलसिले में याद आता है पुलिस का वह बर्बर चेहरा, जब उसने तकरीबन बीस साल पहले कलेक्ट्रेट में पत्रकारों पर अपना गुस्सा उतारा था और उसमें वरिष्ठ पत्रकार स्वर्गीय मोहनराज भंडारी व दैनिक नवज्योति के तत्कालीन रिपोर्टर गजानन महतपुरकर बुरी तरह से जख्मी हुए थे। इसके बाद भी पत्रकारों का हौसला कभी पस्त नहीं हुआ। वह जज्बा आज नवोदित पत्रकारों में भी नजर आ रहा है। ऐसे जांबाज पत्रकारों व अजमेर की मीडिया को मेरा सलाम।
-तेजवानी गिरधर

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