——–राजेन्द्र याग्निक—–
वैश्य समाज अपने बही,-खातों के बारे में बहुत गहनता से सोचता है। होना भी चाहिए व्यापार में जो नुकसान दे उससे वैश्य समाज दूर रहता है। पिछले दिनों समाज के कर्णधारों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह ऐलान कर कि यदि भाजपा और कांग्रेस में से किसी ने भी जिले में एक टिकट भी नहीं दिया तो वैश्य समाज अपना फैसला करेगा। भारतीय जनता पार्टी की सूची आ चुकी है जिसमें किसी भी वैश्य को टिकट नहीं दिया गया है। मसूदा से भाजपा के टिकट का ऐलान होना बाकी है लेकिन वहां कोई संभावना नहीं है कि वैश्य को प्रत्याशी बनाया जाए। जहां तक मुझे याद आता है कांग्रेस ने वैश्य समाज का भरपूर सहयोग किया। 2003 में पुष्कर से डॉक्टर श्री गोपाल बाहेती को प्रत्याशी बनाया और वह विधायक बने। 2008 में इसी उत्तर विधानसभा क्षेत्र से और 2013 में भी उत्तर विधानसभा क्षेत्र से ही डॉक्टर गोपाल बाहेती को कांग्रेस में टिकट देकर प्रत्याशी बनाया लेकिन वे चुनाव हार गए। जिसका कारण संभवतः यह रहा होगा कि वो भाजपा की लहर में बहने के कारण वैश्य समाज के लोगों ने ही डॉक्टर बाहेती का साथ नहीं दिया और भाजपा के वासुदेव देवनानी विधायक बने। कांग्रेस ने 2018 में ब्यावर से पारस पंच को प्रत्याशी बनाया। इसके बाद 2019 में लोकसभा चुनाव में झुनझुनवाला को कांग्रेस ने उम्मीदवारी दी। इसके अलावा याद करें तो केसरी चंद चौधरी, बालचंद डागा किशनगढ़ से, विष्णु बजारी, माणक डाली, चंपालाल जैन, कपूर चंद चौधरी ब्यावर से एमएलए रह चुके हैं। इसके अलावा विष्णु मोदी को भी कांग्रेस ने पुष्कर से टिकट दिया और वे विधायक बने। आगे बात करें तो मोहनलाल सुखाड़िया और हीरालाल देवपुरा यह दोनों वैश्य कांग्रेसी शासन में राजस्थान के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। अब बही- खाता देखिए बीजेपी कांग्रेस का। कौन सी पार्टी ने कितनी बार वैश्य समाज को उसके हक का टिकट दिया। इस हिसाब पर गौर किया जाए तो लगता है कांग्रेस आगे है। फिर भी यह हिसाब करना वैसे समाज का अधिकार है कि जिस पार्टी ने समाज का ख्याल रखा उसका आपने कितना ख्याल रखा। अब देवनानी जी पांचवीं बार फिर मैदान में है उसी भाजपा के टिकट पर जिस पार्टी से चेहरा बदलने की मांग पुरजोर शब्दों में वैश्य समाज के निष्ठावान भाजपाई कर चुके हैं।