क्या हैं बार कौंसिल की जांच के मायने?

adalat-me-lipik-bharti-pariksha-02-300x213खबर है कि राज्य में वकीलों की शीर्ष संस्था राजस्थान बार कौंसिल ने अजमेर जिला एवं सत्र न्यायालय में हुई लिपिक परीक्षा में कथित धांधली की जांच के लिए तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया है, जिसके अध्यक्ष बार कौंसिल के सदस्य एवं राजस्व मंडल के वरिष्ठ वकील भवानी सिंह शक्तावत हैं और जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेश टंडन और पूर्व अध्यक्ष किशन गुर्जर को बतौर सदस्य शामिल किया गया है। कौंसिल ने कमेटी को निर्देश दिए हैं कि इस सारे मामले की जांच कर अपनी रिपोर्ट 48 घंटे के भीतर कौंसिल के जोधपुर कार्यालय को भिजवाई जाए।
यूं तो बार कौंसिल की यह त्वरित कार्यवाही उसकी संवेदनशीलता और सक्रियता को दर्शाती है, मगर सवाल ये उठता है कि उसकी इस जांच के मायने और औचित्य क्या है? जब यह मामला क्राइम का है और आगे न्यायिक प्रक्रिया से ही तय होगा कि कौन दोषी है और कौन नहीं, ऐसे में कौंसिल की जांच का क्या होगा? जब स्थापित न्यायिक व्यवस्था के अनुरूप ही कार्यवाही होनी है तो कौंसिल समानांतर रूप से जांच क्यों करवा रही है? क्या कौंसिल को न्यायिक प्रक्रिया पूरी होने से पहले ही जांच रिपोर्ट के आधार पर कार्यवाही का अधिकार है? अगर है तो उसकी संवैधानिक स्थिति क्या है? यदि जांच में यह सामने आता है कि भगवान चौहान सहित अन्य वकील दोषी हैं तो क्या कौंसिल कोर्ट का फैसला आए बिना ही कार्यवाही करेगी? या करने के लिए अधिकृत है? एक सवाल ये भी कि क्या कौंसिल इस प्रकरण में होने वाली न्यायिक प्रक्रिया में एक पक्ष बनने का अधिकार रखती है?
बेशक कौंसिल राज्यभर के वकीलों की अधिकृत संस्था है, मगर क्या उसका लिपिक भर्ती से क्या सीधा संबंध है? जैसा कि जिला बार अध्यक्ष राजेश टंडन ने बताया है कि परीक्षा में धांधली की जांच के लिए उन्हें जो जिम्मेदारी दी गई है, उसके तहत इस मामले में आरोपियों के साथ ही अन्य संबंधित की लिप्तता की पड़ताल की जाएगी और कमेटी यह भी जांच करेगी कि संपूर्ण परीक्षा की कार्रवाई सही तरीके से संपादित हुई थी या नहीं, सवाल ये उठता है कि क्या कौंसिल को परीक्षा की प्रक्रिया के संपादन पर निगरानी अथवा उसकी जांच करने का अधिकार है? अगर कौंसिल की जांच रिपोर्ट में लिपिक दोषी पाए जाते हैं तो क्या वह उनके खिलाफ भी कार्यवाही करने के लिए अधिकृत है? अगर भर्ती प्रक्रिया सही तरीके से संपादित नहीं होने की रिपोर्ट आई तो क्या कौंसिल को उसे रद्द करने का भी अधिकार है अथवा यह हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र में आता है? क्या कौंसिल के कार्यक्षेत्र में वकीलों के अतिरिक्त कोर्ट के लिपिक भी आते हैं?
हां, इतना तो समझ में आता है कि अगर कोई वकील न्यायिक प्रक्रिया के तहत दोषी पाया जाता है तो कोर्ट तो उसे सजा देगा ही और कौंसिल भी कार्यवाही कर सकती है, मगर पूरी भर्ती प्रक्रिया से उसका क्या लेना-देना है? अगर इसका जवाब में ना में है तो यह जांच पूरी तरह से बेमानी ही प्रतीत होती है।
-तेजवानी गिरधर

error: Content is protected !!