-राजकुमार शर्मा– विधानसभा चुनाव की मुकम्मल तारीख की रणभेरी भले ही अभी नही बजी है, पर किशनगढ़ में चुनावी महाभारत की पदचाप वाली आहट से गुटों में बटी भाजपा के संभावित दावेदार चौकन्ने हो गये है। प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्दे नजर किशनगढ़ विधानसभा क्षेत्र में भावी विधायक बनने के सपनों को साकार करने हेतु संभावित उम्मीदवारों ने टिकट की दौड़ में वर्चस्व दिखाने के लिए राजनैतिक चौसर पर अपनी गोटिया जमाना शुरू कर दिया है। आपसी अंतर्कलह और दलीय गुटबाजी के चलते एक-दूसरे दावेदार को पटखनी देने का खेल चल पड़ा है।
भाजपा की स्थिति कांग्रेस से भी बदत्तर वाली बनी हुई है। टिकट के संभावित दावेदार अपने-अपने सिपेहसालारों को मैदान में उतार कर पार्टी की किरकिरी कराने में लगे है। जिससे कार्यकर्ताओं में बिखराव व दलीय दरार के चलते स्थितियों में बदलाव ला दिया है। जातिय समीकरण में ‘जाटÓ समाज के मतदाताओं को प्रभावी समझे जाने वाली भूमिका में कतिपय लोगों ने जाटवाद को समाप्त करने की मुहिम चला दी है। जिसका सीधा फायदा कांग्रेस को पहुंच रहा है।
चौराहो की चौपाल पर भाजपा से मजबूत दावेदार पूर्व विधायक भागीरथ चौधरी को ही मान रहे है। चर्चा है कि चौधरी एक ऐसे व्यक्ति है जिनकी पकड़ जाट वर्ग के अलावा अन्य जातियों पर भी है। उनके सरल स्वभाव, व्यापारिक सोच के चलते सभी जाति के वर्गो में अपनी पैठ कायम किए है। चौधरी ने अपने विधायकी कार्यकाल में कई ऐसी योजनाओं को यहां लाकर विकास की गति को बढ़ाई है। ग्रामीण क्षेत्रों में चौधरी का पिछले 5 वर्षो में लगातार सम्पर्क बना होना ही उनकी कार्यकुशलता का प्रमाण है। गांव-ढाणियों में इन बीते पांच वर्षों में मजबूति मिली है।
भाजपा से ही विकास पुरूष की उपाधी से प्रसिद्धी पाने वाले पूर्व सभापति एवं मार्बल एसोसियेशन के अध्यक्ष सुरेश टाक भी इस दौड़ में शामिल है। टाक के सभापति कार्यकाल में नगर के विकास की महत्ता से सभी वाकिफ है। उन्होने ऐसे-ऐसे विकास कराये जिनकी कल्पना भी नही की जा सकती। टाक को एक साल के कार्यकाल को बनाम तीन साल से भी नगर की जनता नवाज रही है। उनकी कार्यशैली से कोई अनजान नही है। मार्बल एसो. अध्यक्ष पद पर रहते हुए उन्होने व्यापारियों के हित के कार्य कर अपनी पहचान बनाई है। इनके अलावा भाजपा से जिला महामंत्री शंभू शर्मा ने भी अपना खंभ ठोक रखा है। वहीं सभापति गुणमाला पाटनी का नाम भी चर्चा में है।
किशनगढ़ भाजपा संगठन में फूट होने से कार्यकर्ता बिखरे है। संगठन प्रमुख की कार्यशैली से पदाधिकारियों में भी विरोध उत्पन्न हो चला है। पार्टी के प्रमुख नेताओं की आपसी कलह से कार्यकर्ताओं में संशय वाली स्थिति बनी हुई है। पार्टी के अग्रीम संगठनों के लोग भी दोनों हाथों में लड्डू लेकर चल रहे है। जिससे पार्टीछिन्नभिन्न के कगार पर है। टिकट के दावेदार भी इन सब बातों को समझ रहे है, परन्तु करे भी तो क्या।
राजनैतिक हल्कों में चर्चा है कि अगर समय रहते पार्टी ने इन सब बिखरे मोतियों को एक माला में नही पिरोये तो विधानसभा चुनाव में पार्टी को बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
राजनैतिक विश्लेषकों के अनुसार भाजपा को यह सीट निकालनी है तो किसी जाट को ही चुनावी रणक्षेत्र में उतारना होगा। साथ ही यह भी उनका मानना है कि स्थानीय व्यक्ति ही रणक्षेत्र की नदी पार कर सकेगा।
बहरहाल, राजनैतिक उठा-पटक के बीच टिकट का फैसला हाने के बाद ही तस्वीर साफ हो सकेगी।