नाबालिग उम्र से ‘अप्राकृतिक’ छेड़छाड़

संजय तिवारी
संजय तिवारी

-संजय तिवारी- नयी नयी सरकार की नयी नयी महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने जो सुझाव दिया था आखिरकार सरकार ने उस पर अपनी सहमति देते हुए कानून हो जाने का रास्ता साफ कर दिया है। अब सन 2000 में बने उस कानून में संशोधन होगा जिसमें 18 साल तक की उम्र को बचपन और किशोरावस्था घोषित किया गया है। इस नये प्रस्ताव के कानून बन जाने के बाद बचपन 16 साल में समाप्त हो जाएगा और किसी जघन्य अपराध में दोषी पाये गये किसी किशोर के लिए वही सजा होगी जो कि ऐसे ही किसी अपराध में किसी वयस्क को सुनाई जाती है। सरकार के सभी मंत्रालयों से राय ले ली गई है और सभी मंत्रालयों ने जघन्य अपराध के मामलोंं में सजा की उम्र घटाकर सोलह करने के लिए अपनी सहमति दे दी है। मोदी सरकार के इस फैसले पर सबसे पहला सवाल यही उठता है कि क्या यह फैसला सही है?

जरा याद करिए संसद का वह हंगामेदार सत्र जब दिल्ली में चलती बस में हुए एक रेपकांड के बाद बलात्कार के खिलाफ सख्त कानून बनाने के लिए पक्ष प्रतिपक्ष एकसाथ आकर खड़े हो गये थे। दिल्ली के ऐतिहासिक दिसंबर आंदोलन से घबराई मनमोहन सरकार सख्त कानून बनाने के पक्ष में तो थी लेकिन जेएस वर्मा कमेटी के कुछ सुझावों को मानने से इंकार कर दिया था। इसमें दो बातें महत्वपूर्ण थी। एक, पत्नी पत्नी के बीच जोर जबर्दस्ती के रिश्ते को बलात्कार के दायरे में नहीं लाया जा सकता और दूसरा हर बलात्कारी को फांसी नहीं दी जा सकती। मनमोहन सिंह की कैबिनेट जिस कानूनी प्रस्ताव को मंजूरी दी उसमें सहमति से संबंध की न्यूनतम उम्र 16 साल बरकरार रखी और सरकार का प्रस्ताव कानून होने के लिए संसद के भीतर प्रवेश कर गया।

बाकी सब बातों पर तो कमोबेश एकराय थी लेकिन छेड़छाड़ रोकने के लिए किये गये कानूनी प्रावधान और सहमति से संबंध की उम्र पर जबर्दस्त विरोधाभास थे। अगर विपक्ष छेड़छाड़ रोकने के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 354 में किये जा रहे बदलावोंं का विरोध कर रही थी तो उसे यह भी स्वीकार नहीं था सरकार सहमति से संबंध की उम्र 16 साल रखे। जिन दलों और दल प्रतिनिधियों ने छेड़छाड़ के लिए प्रस्तावित कानूनोंं के गलत उपयोग की आशंका जता रहा था कमोबेश हर वही दल और नेता सहमति से रिश्ते बनाने की उम्र को बढ़ाकर 18 साल किये जाने की वकालत कर रहा था। इनमें सबसे मुखर मुख्य विपक्षी भारतीय जनता पार्टी थी। भाजपा का तर्क था कि अगर किसी लड़के के लिए किशोरावस्था 18 साल तक है तो फिर लड़की के मामले में यह भेदभाव क्यों किया जा रहा है? आखिरकार सरकार झुकी और सदन में नेता सत्ता पक्ष सुशील कुमार शिंदे ने घोषणा की कि सरकार सहमति से शारीरिक संबंध बनाने की उम्र 16 साल से बढ़ाकर 18 साल करने के लिए तैयार हो गयी है। संसद ने प्रस्ताव पारित कर दिया और नया कानून बनकर भारत के लोगों पर लागू हो गया। भारत में पूर्व में बलात्कार विरोधी जो कानून है उसमें भी सहमति से संबंध बनाने के लिए निर्धारित उम्र सोलह साल ही थी। लेकिन विपक्ष का ऐसा जबर्दस्त दबाव था कि सरकार कोई तर्क वितर्क न कर सकी। हालांकि बाद में शिंदे ने सार्वजनिक रूप से नाखुशी जाहिर की लेकिन उस वक्त तो कानून बनना था। कानून बन गया।

लेकिन उसी कानून के कारण एक पेंच फंस गया। और वह पेंच भी उसी मामले में फंसा जिसके परिणाम स्वरूप संसद ने नया कानूनी प्रावधान किया था। चलती बस में उस लड़की के साथ जो दरिंदगी हुई थी उसमें एक किशोर भी शामिल था। राष्ट्रवादी विचारधारा के रॉबिनहुड डॉ सुब्रमण्यम स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर करके आग्रह किया कि उस सत्रह वर्षीय किशोर के साथ भी वैसी ही न्यायिक प्रक्रिया अपनाई जाए जैसा कि बाकी दोषियों के साथ अपनाई जा रही है। क्योंकि वह किशोर सत्रह साल का था इसलिए उसका मामला किशोर न्याय बोर्ड में भेज दिया था जहां से उसे अधिकतम तीन साल के न्याय सुधार गृह में ही भेजा जा सकता था, जबकि निर्भया बलात्कार मामले में फांसी की अंतिम सजा के तौर पर मांगी जा चुकी थी। डॉ स्वामी ने भले ही सुप्रीम कोर्ट से लिखित तौर पर यह मांग की हो कि वह मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ है तो इस जघन्य अपराध में शामिल है तो फिर उसे एक कानून की आड़ में बचने का मौका क्यों दिया जाए? लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने स्वामी का तर्क मान्य नहीं किया और मामले को किशोर न्यायालय में ही चलाने का आदेश दिया।

डॉ स्वामी की सक्रियता और पीड़ा समझना ज्यादा मुश्किल नहीं है। जिस किशोर राजू का नाम लेकर स्वामी सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पर खड़े हुए थे वह एक खास समुदाय से संबंधित है। उसी समुदाय से जिसे राष्ट्रवादी राजनीति में मुख्यधारा का नागरिक नहीं समझा जाता है। हो सकता है इसी खास अल्पसंख्यक समुदाय के कारण स्वामी का दर्द और बढ़ा हो लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने आखिरकार कानून को ही सर्वोपरि रखा और किसी एक मामले में कानून के उल्लंघन की इजाजत देने से इंकार कर दिया। बीते साल 22 अगस्त को आये फैसले के बाद स्वामी ने फिर से पुनर्विचार याचिका दायर की जिसे इसी साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने फिर से खारिज कर दिया। इस बार चीफ जस्टिस पी सदाशिवम की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने साफ कहा कि जो प्रावधान है वह संविधान और अंतरराष्ट्रीय कानूनोंं के अनुरूप है। इससे छेड़छाड़ नहीं किया जा सकता है। लेकिन स्वामी जी को न्याय चाहिए था, तो न्याय चाहिए था। न्याय का यह मौका अब उन्हीं की पार्टी बीजेपी की मोदी सरकार ने देने का फैसला कर लिया है।

इस मामले में शिंदे और स्वामी के अपने अपने तर्कों से परे भी मोदी सरकार के इस फैसले से कुछ गंभीर संकट पैदा हो सकते हैं। मसलन, उस वक्त सहमति से शारीरिक संबंध बनाने की उम्र बढ़ाने के लिए जो सबसे बड़ा तर्क दिया गया था वह यही कि पुरुषों के मामले में अगर वयस्क होने की उम्र 18 साल निर्धारित है तो फिर महिलाओं के मामले में यह 16 साल क्यों रहनी चाहिए? उस वक्त सिविल सोसायटी की ओर से जो लोग सहमति से संबंध बनाने की उम्र 18 वर्ष का प्रावधान करने की मांग कर रहे थे उनका सबसे बड़ा तर्क यही था कि ऐसा प्रावधान हो जाने से लड़कियों की मानव तस्करी पर रोक लगाने मेें मदद मिलेगी। निश्चित रूप से यह स्वागतयोग्य कदम था लेकिन अब क्या होगा? अगर सरकार पुरुषों के मामले में यह कानूनी बदलाव करने जा रही है कि 16 वर्ष में रेप जैसे गंभीर मामलों में नौजवान किशोर की बजाय वयस्क माना जाएगा तो फिर लड़कियों के मामले में यह 18 साल कैसे रह पायेगा?

सरकार जो प्रावधान कर रही है उसके पीछे तर्क है कि अगर कोई नौजवान 18 साल से कम उम्र में शारीरिक संबंध बना सकता है तो उसे बाल या किशोर कैसे माना जा सकता है? इसका मतलब एक तरफ सरकार यह मान रही है कि शारीरिक विकास 18 साल से पहले ही ऐसा हो जाता है कि शारीरिक संबंध बन सकते हैं। बस सजा सिर्फ इसलिए दी जानी चाहिए कि ऐसे संबंध अगर असहमति से बनते हैं तो बलात्कार की श्रेणी में गिने जायेंगे और उनकी सुनवाई भी नियमित अदालत में ही होनी चाहिए। सरकार की इस बात को सरासर सही मान लें तो समझ आता है कि सारा संकट सहमति और असहमति के बीच फंसा है। तब सवाल उठता है कि अभी जो कानूनी प्रावधान किये गये हैं उसके मुताबिक 18 साल से कम उम्र की लड़की के साथ सहमति से संबंध बनाना भी बलात्कार के दायरे में आता है। यानी वही सरकार जो नये संशोधन के जरिए एक तरफ यह मानने जा रही है कि 18 साल से कम उम्र में शारिरीक संबंध बनाये जा सकते हैं तो दूसरी तरफ वही सरकार कह रही है कि 18 साल से कम उम्र में शारीरिक संबंध नहीं बनाये जा सकते हैं क्योंकि उस उम्र के पहले तक शरीरिक संबंध बनाने के लिए अविकसित होता है। अगर सहमति से भी ऐसे संबंध बनते हैं तो इसके लिए दोषी नौजवान के लिए अधिकतम उम्रकैद तक का प्रावधान किया गया है। यह सजा तब भी निर्धारित है जबकि यह साबित हो जाए कि संबंध सहमति से बने थे। तो फिर किशोर बलात्कार के ऐसे मामलों में अदालतें क्या फैसला देंगी? लड़के और लड़की के लिए खुद सरकार बालिग और नाबालिग की दो अलग अलग उम्र कैसे कायम रख पायेगी?

इन पहलुओं के अलावा बाल श्रम का भी एक पहलू है जिसके बाद कानूनी रूप से इतने पेंच फंसेंगे कि एक कानून को बदलने के बाद सरकार को कई कानूनों में बदलाव करना होगा। सरकार ने जो नया प्रस्ताव तैयार किया है और जिसे कैबिनेट ने अब मंजूरी दे दी है उस तर्क को स्वामी की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुुप्रीम कोर्ट पहले ही अव्यावहारिक करार दे चुका है। फिर आखिरकार सरकार सुप्रीम कोर्ट सलाह को भी दरकिनार करके कानूनी संशोधन क्यों करने जा रही है जबकि स्वामी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ‘संवैधानिक दायरे में सही’ होने की बात कही थी। तो क्या एक मनमाफिक फैसले की चाहत में सरकार संवैधानिक दायरे से भी छेड़छाड़ करने जा रही है?

यह सब आनेवाले समय में समय समय पर बहस का मुद्दा बनेगा लेकिन इन कानूनी पहलुओं से परे स्त्री पुरुष की अवस्था को लेकर एक प्राकृतिक पहलू भी है जो किसी कानून से ज्यादा स्त्री पुरुष के जीवन पर लागू होता है। यही वह प्रकृति है जो स्त्री पुरुष की शारीरिक, मानसिक संरचना में फर्क करता है। कानूनन कौन कब वयस्क होता है यह तय कर देने से शरीर की संरचना और प्राकृतिक व्यवस्था पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। स्त्री हो कि पुरुष उसके विकास और संसर्ग की अवस्था के निर्धारण के सरकारी प्रयास अप्राकृतिक छेड़छाड़ से कम नहीं हैं। दुनिया के वे देश जो लंबे समय तक ऐसे आदर्शवादी और मनमौजी कानूनों के सहारे अपने आपको आदर्श राज्य बताते रहे हैं अब उन्होंने भी अपने यहां प्रकृति संगत कानून बनाये हैं। नया नया कानूनतंत्र हुए भारत में यह प्रथा अब एक कुप्रथा में बदलती जा रही है कि एक गलती को हम दूसरी गलती से ठीक करने की कोशिश करते हैं। भारत सरकार का ताजा प्रयास और प्रस्ताव उसी कड़ी का एक हिस्सा है।
http://visfot.com/

1 thought on “नाबालिग उम्र से ‘अप्राकृतिक’ छेड़छाड़”

  1. उम्र के मामले मै अपराध और शारीरिक सम्बन्ध बनाने का मसला अलग अलग कर्के देखे जाने की जरूरत है.

Comments are closed.

error: Content is protected !!