माननीय उच्चतम न्यायालय के अरुणाचल प्रदेश के बारे में ताजा फैसले के परिपेक्ष दक्षिण पंथी पार्टी समर्थक मेरठ से प्रकाशित एक अखबार के संपादकीय को पड़ने से ऐसा लगता है की संपादक माननीय उच्चतम न्यायालय को ही कटघरे में खड़ा कर रहा है जब वह कहता है
” अच्छा होता की सुप्रीम कोर्ट विधान सभा अध्यक्ष के अधिकारों और फैसलो की भी गहन समीक्षा करता , क्योंकि बहुमत खो चुकी सरकार की फिर से बहाली आदर्श स्थिति नहीं । अरुणाचल में शक्ति परिक्षण के बाद जो भी स्थिति बने , यह भी ठीक नहीं है कि अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल बार बार का विषय बन रहा है । ऐसा तब हो रहा है जब इस अनुच्छेद के इस्तेमाल पर सुप्रीम कोर्ट कई बार समीक्षा करनी पड़ी है । क्या यह बेहतर नहीं होगा कि इस अनुच्छेद को बेहतर करने उन उपायों पर भी विचार किया जाए जिससे राज्य सरकारे अस्थिरता से बची रहे ”
आदरणीय संपादक जब माननीय सुप्रीम कोर्ट से अपेक्षा कर रहा है की धारा 356 की व्यापक समीक्षा हो तो उसे यह भी समझ में आता होगा की धारा 356 का उपयोग और दुरूपयोग केवाल भारत का प्रधान मंत्री करता है या करवाता है जब वह अपने मंत्री समूह की बैठक में किसी राज्य के राज्यपाल द्वारा भेजी गई रिपोर्ट के आधार पर माननीय राष्ट्रपति को राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुसशां करता है जिसको मानाने के लिए राष्ट्रपति बाध्य होते हैं ? धारा 356 की समीक्षा करने का अधिकार किसी न्यायालय के पास नहीं है ? न्यायालय का काम उसके दुरुपयोग की समीक्षा करना होता है ? समीक्षा का काम संसद का है उसको ही कानून में उचित प्रावधान बनाने होंगे जिससे किसी को भी धरा 356 के अधिकार को अंतिम रूप में इस्तेमाल किया जा सके ?
क्योंकि जिस प्रकार से वर्तमान सरकार ने धारा 356 का उपयोग उत्तर खंड में और अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस मुक्त भारत बनाने की अपनी परिकल्पना के अंतर्गत किया है वह कुकृत्य माननीय सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया है , इस लिए अगर समीक्षा किसी को करनी चाहिए तो वर्तमान सरकार और उसकी पार्टी तथा नेताओं को करनी चाहिए की भारत कांग्रेसन्मुक्त तभी हो सकता है जब वह अपने अहंकार को छोड़े और कांग्रेस को अपने वैचारिक युद्ध में परास्त करे न की धारा 356 का दुरूपयोग करके कांग्रेस की स्थिर सरकारों को बर्खास्त करके लोकतंत्र को नष्ट करे ? प्रधान मंत्री और बीजेपी के दम्भ और अहंकार से कांग्रेस कभी परास्त नहीं हो सकती ?
एस.पी.सिंह, मेरठ ।