इस्रायल-ईरान-भारत, संबधों का त्रिकोण और मोदी सरकार

zzअयोध्या में राम मंदिर बनाए जाने का पक्ष लेकर , तीन तलाक बिल का समर्थन करने और मदरसों में आंतकी तैयार किए जाने को लेकर शिया वक्फ बोर्ड ने जिस तरह से प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखा उससे केन्द्र सरकार गदगद हुई और इससे प्रभावित हुई लेकिन इस्रायल प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू के भारत दौरे का शिया धर्मगुरु कल्बे जव्वद ने विरोध किया है और केन्द्र सरकार से कहा है कि इस्रायल भरोसे लायक देश नहीं है। गौरतलब है कि शिया समुदाय बहुल्य ईरान देश का इस्रायल से संबध अच्छे नहीं हैं। शिया समुदाय देश में भाजपा का समर्थन कर रहा हेै, केन्द्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी शिया समुदाय से ही हैं साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री मोहसीन रजा इसी वर्ग से आते हैं। मुस्लिम समुदाय में शिक्षित और संपन्न लोग अधिकतर शिया वर्ग से हैं। इतिहास में जाएं तो जहांगीर की बेगम नूरजहां शिया थीं और बुद्विमान थी इसलिए जहांगीर के दौर में देश में शिया वर्ग बहुत फूला फला , उस दौर में इस्लाम से संबधित किताबें शिया वर्ग के लेखकों ने खूब लिखी और प्रचारित हुईं। मुस्लिम समुदाय में शिया और सुन्नी वर्ग में वैचारिक मतभेद हैं हालाकिं दोनों इस्लाम के अनुयायी हैं। स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस ने ईरान के मुकाबले अरब जगत से संबध ज्यादा मजबूत किए जिसके कारण सुन्नी वर्ग का झुकाव कांग्रेस की ओर रहा जबकि शिया वर्ग ने दूरी बनाए रखी। देश के नेता अटल बिहारी वाजपेयी ईरान के साथ संबधों पर तवज्जो देते रहे और यही कारण रहा कि जब केन्द्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी तो ईरान के साथ संबध पहले से ज्यादा मधुर हुए और भारत के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आदान प्रदान और समुद्र के रास्ते ईरान से भारत तक गैस पाईप लाईन जैसे प्रोजेक्ट पर कार्य शुरु हुआ।

मुजफ्फर अली
मुजफ्फर अली
ईरान सामरिक रुप से और प्रमाणु प्रधान देश है। देश का शिया वर्ग ईरान से स्वाभाविक लगाव रखता है। आज एक तरफ देश इस्रायल के साथ संबध मजबूत बनाए रखने के प्रयास में हैं वहीं दूसरी ओर केन्द्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ईरान के साथ चाबाहर प्रोजेक्ट पर बात कर रहे हैं। मोदी सरकार को विपरीत देशों के बीच सामांजस्य बनाना आसान नहीं है।
-मुजफ्फर अली

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