भगत सिंह की फांसी से धारा 370 तक, नेहरू पर फैलाए गए ये 10 झूठ

dr. j k garg
जवाहर लाल नेहरू की आज 130वीं जयंती है, इस अवसर पर देश के कई हिस्सों में कार्यक्रम हो रहे हैं. पंडित नेहरू के योगदान को देश-दुनिया भूल नहीं पाती, लेकिन इसके साथ ही उनके बारे में कई तरह के मिथक, कई तरह की गलत धारणाएं भी प्रचलित हैं.
हमारे पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की जयंती के अवसर पर आज पूरा देश उन्हें श्रद्धांजलि दे रहा है. पंडित नेहरू की आज 130वीं जयंती है, इस अवसर पर देश के कई हिस्सों में कार्यक्रम हो रहे हैं. पंडित नेहरू के योगदान को देश-दुनिया भूल नहीं पाती, लेकिन इसके साथ ही उनके बारे में कई तरह के मिथक, कई तरह की गलत धारणाएं भी प्रचलित हैं. आज उनकी जयंती के अवसर पर हम ऐसी ही कुछ धारणाओं का सच जानने की कोशिश कर रहे हैं.

1. सुभाष चंद्र बोस का सम्मान नहीं किया

नेहरू के बारे में एक मिथक यह प्रचारित किया जाता है कि वे सुभाष चंद्र बोस के विरोधी थे और उनका सम्मान नहीं किया. यह सच है कि गांधी और नेहरू का सुभाष चंद्र बोस से तीखा वैचारिक मतभेद था, लेकिन यह कहीं से भी मनभेद नहीं था और दोनों नेता एक-दूसरे का सम्मान करते थे.

उल्टे सुभाष चंद्र बोस की मौत के बाद नेहरू नेताजी की बेटी को नियमित पेंशन भि‍जवाया करते थे. यही नहीं, परिवार की निजता और नेताजी का सम्मान करते हुए आर्थिक मदद की बात को गुप्त रखा गया.

सुभाष चंद्र बोस के लिए नेहरू अपने पिता के खिलाफ तक खड़े हो गए थे. असल में कांग्रेस के कलकत्ता अधि‍वेशन में मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में गांधी जी के समर्थन से एक ‘डोमिनियन स्टेट्स’ का प्रस्ताव आया था, लेकिन सुभाष चंद्र बोस ने इस प्रस्ताव के खि‍लाफ संशोधन पेश किया कि भारत को संपूर्ण आजादी से कम कुछ नहीं चाहिए. पंडित नेहरू ने गांधी और मोतीलाल नेहरू के खि‍लाफ जाने वाले इस संशोधन का पुरजोर समर्थन किया.

यही नहीं, जिस सुभाष से नेहरू का तीखा वैचारिक मतभेद था, उन्हीं के नारे ‘जयहिंद’ को नेहरू ने देश का नारा बना दिया. 15 अगस्त को लाल किले से दिए जाने वाले संबोधन में नेहरू ने ‘जयहिंद’ बोलना शुरू किया.

सुभाष चंद्र बोस की मौत के बाद आजाद हिन्द फौज (आईएनए) के हजारों सैनिकों-अधि‍कारियों को ब्रिटेन की कैद से निकालने और उन्हें कोर्ट मार्शल से बचाने के लिए के लिए नेहरू ने ‘आईएनए डिफेंस कमिटी’ बनाई. वे खुद इन सैनिकों के वकील बने और काला चोगा धारण कर उनकी पैरवी की.

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2. भगत सिंह से जेल में मिलने नहीं गए

नेहरू के बारे में यह मिथक यह भी प्रचलित है कि जब क्रांतिकारी सरदार भगत सिंह जेल में बंद थे और उन्हें फांसी की सजा दी गई थी तो नेहरू उनसे मिलने कभी भी जेल में नहीं गए. यह बात गलत है. नेहरू देश के उन चुनींदा बड़े नेताओं में से थे जो जेल में जाकर भगत सिंह और उनके साथि‍यों से मिले. नेहरू ने भगत सिंह के हिंसा के रास्ते की कभी तारीफ नहीं की, लेकिन उनकी बहादुरी और देशप्रेम की सार्वजनिक रूप से प्रशंसा की. महात्मा गांधी के अलावा भगत सिंह ही ऐसे व्यक्ति थे जिनकी नेहरू ने सबसे ज्यादा तारीफ की. 8 अगस्त 1929 को जवाहर लाल नेहरू ने जेल में बंद भगत सिंह और उनके साथि‍यों से मुलाकात की और 9 अगस्त को उन्होंने लाहौर में वक्तव्य दिया.

2. सरदार पटेल और नेहरू में नहीं पटती थी

यह सच है कि पंडित नेहरू और पटेल के बीच कई मसलों पर तीखे वैचारिक मतभेद रहे हैं, लेकिन यहां भी यह कहा जा सकता है कि यह मनभेद नहीं था. दोनों में आर्थ‍िक मसलों और सांप्रदायिकता के मसलों पर कुछ वैचारिक मतभेद थे. कई बार दोनों के बीच ऐसे तीखे वैचारिक मतभेद हुए कि दोनों इस्तीफा देने तक को तैयार हो गए. लेकिन राष्ट्र निर्माण के लिए दोनों मिलजुलकर काम करते रहे. नेहरू के मार्गदर्शन में ही सरदार पटेल ने देश की 500 से भी ज्यादा रियासतों के एकीकरण और विलय का अनूठा कार्य पूरा किया.

महात्मा गांधी की हत्या के बाद काफी दुखी सरदार पटेल ने नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देने का फैसला किया. इसके बाद नेहरू ने उन्हें पत्र लिखा: ‘जब बापू जीवित थे तब हमने साथ-साथ बापू से मिलने और उनसे उन बातों की चर्चा करने की आशा रखी थी, जिन्होंने हमें कुछ हद तक परेशान कर रखा था. अपने अं‍तिम पत्र में मैंने यह आशा व्यक्त की थी‍ कि मत और स्वभाव के कुछ मतभेदों के बावजूद हमें साथ-साथ काम करते रहना चाहिए, जैसा कि हमने इतने लंबे समय तक किया है. यह जानकर मुझे आनंद होता है कि बापू की अंतिम राय भी यही थी.’

4. अंग्रेजी भाषा- कल्चर को बढ़ावा दिया, संस्कृत के विरोधी

पंडित नेहरू लंदन में पढ़े थे, लेकिन अपनी माटी से पूरी तरह से जुड़े थे. उनके बारे में अक्सर यह लोग धारणा बना लेते हैं कि उन्होंने देश में अंग्रेजी भाषा, संस्कृति को बढ़ावा दिया. लेकिन सच तो यह है कि वह मातृभाषा, संस्कृत और स्वदेशी-खादी को बढ़ावा देने के समर्थक थे.

आजादी के बाद देश में भाषा का मुद्दा गरमा गया. तब नेहरू ने 6 दिसंबर, 1948 को सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखा, ‘भाषा का सवाल बहुत तर्क-वितर्क का विषय बन गया है. मेरे ख्याल से राज्य की बुनियादी नीति यह होनी चाहिए कि बच्चे की बुनियादी शि‍क्षा उसकी मातृभाषा में हो, ऐसा करने पर बहुत से बच्चों को इससे फायदा होगा.’

संस्कृत के बारे में नेहरू ने लिखा था, ‘मुझे संस्कृत बहुत ज्यादा नहीं आती, फिर भी मैं संस्कृत का बड़ा मुरीद हूं. मुझे उम्मीद है कि आने वाले वक्त में संस्कृत को बड़े पैमाने पर पढ़ा जाएगा.’

5. अनुच्छेद 370 नेहरू की वजह से ही लागू हुआ

एक यह धारणा बनी हुई कि अनुच्छेद 370 पंडित नेहरू की वजह से ही लागू हुआ और सरदार पटेल इसके विरोधी थे. लेकिन यह बात भी सच नहीं है. सच तो यह है कि सरदार पटेल ने अनुच्छेद 370 को कश्मीर के लिए जरूरी बताया था. जब संविधान सभा में अनुच्छेद 370 पर बहस हो रही थी, तो उस समय नेहरू देश से बाहर थे और सरदार पटेल ने इस पर चले बहस की जानकारी नेहरू को दी थी. खुद सरदार पटेल ने संविधान सभा में बहस के दौरान इस बारे में तर्क दिया था कि कश्मीर की विशेष समस्याओं को देखते हुए उसके लिए अनुच्छेद 370 जरूरी है.

जवाहर लाल नेहरू ने 25 जुलाई 1952 को मुख्यमंत्रियों को लिखे अपने एक पत्र में कहा था, ‘जब नवंबर 1949 में हम भारत के संविधान को अंतिम रूप दे रहे थे, तब सरदार पटेल ने इस मामले को देखा. तब उन्होंने जम्मू और कश्मीर को हमारे संविधान में एक विशेष किंतु संक्रमणकालीन दर्जा दिया. इस दर्जे को संविधान में अनुच्छेद 370 के रूप में दर्ज किया गया. इसके अलावा 26 जनवरी 1950 को राष्ट्रपति के आदेश के माध्यम से भी इसे दर्ज किया गया. इस अनुच्छेद के माध्यम से और इस आदेश के माध्यम से हमारे संविधान के कुछ ही हिस्से कश्मीर पर लागू होते हैं.’

6. रंगीन मिजाजी के आरोप

नेहरू को बदनाम करने के लिए सोशल मीडिया पर खूब रायता फैलाया गया है. उनके बारे में तमाम फोटोज जारी कर उन्हें अय्याश बताया जाता है. असल में यह कल्चरल गैप की वजह से भी होता है. नेहरू देश के जिस क्रीमी लेयर या संपन्न परिवार से आते थे वहां औरतों के साथ उठना- बैठना, गले मिलना, सिगरेट पीना आम बात थी, लेकिन एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जिसे ऐसा एक्सपोजर नहीं होता और उसकी संस्कृति अलग है. ऐसे लोग नेहरू को अय्याश साबित कर देते हैं.

यही नहीं, इसके बारे में कई बार तो किसी फोटो का गलत संदर्भ दे दिया जाता है या उसका फोटोशॉप कर दिया जाता है. जैसे नेहरू की एक जवान लड़की के साथ गले मिलते हुए फोटो शेयर की जाती है, जबकि यह तस्वीर किसी अंग्रेज महिला की नहीं बल्कि एक भारतीय महिला की ही है. यह भारतीय महिला और कोई नहीं बल्कि नेहरू की भांजी नयनतारा सहगल हैं. नयनतारा सहगल जवाहर लाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित की दूसरी बेटी हैं.

नेहरू की भांजी के साथ फोटो, जिसे गलत संदर्भ में पेश किया जाता है

7. वंशवाद को बढ़ावा दिया

नेहरू के बारे में एक धारणा यह प्रचारित की जाती है कि उन्होंने वंशवाद को बढ़ावा दिया. इसकी वजह यह है कि उनकी बेटी इंदिरा भारत की प्रधानमंत्री बनीं और उसके बाद उनके ‘गांधी परिवार’ का देश में लंबे समय तक शासन रहा. सच यह है कि नेहरू यह नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनें. गांधी परिवार को अगर राजनीति में किसी ने आगे बढ़ाया है वह इंदिरा हैं, नेहरू नहीं. वैसे भी इंदिरा गांधी को नेहरू की मौत के बाद तत्काल प्रधानमंत्री नहीं बनाया गया था, बल्कि तब लाल बहादुर शास्त्री देश के प्रधानमंत्री बने थे. हां यह जरूर सच है कि इंदिरा गांधी पहले स्वतंत्रता संग्राम और बाद में कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय थीं, जिसकी वजह से उन्होने अपना एक स्थान बना लिया.

बेटी इंंदिरा के साथ नेहरू (फोटो: Getty Images)

8. गांधी के योग्य उत्तराधि‍कारी नहीं थे

नेहरू के बारे में यह सबसे जबरदस्त धारणा फैली हुई है कि वह गांधी के योग्य उत्तराधि‍कारी नहीं थे और उनसे बेहतर पटेल थे जिन्हें भारत का पहला पीएम बनना चाहिए था. लेकिन सच यह है कि नेहरू की योग्यता को सरदार पटेल ने भी स्वीकार की थी और उन्होंने नेहरू के नेतृत्व में काम करना स्वीकार किया था. गांधी ने पंडित नेहरू को देश का पहला पीएम इसलिए बनाया क्योंकि उनकी स्वीकार्यता देश के हर इलाके और हर वर्ग तक थी. उनके बाकी विकल्प जैसे सरदार पटेल, राजेंद्र प्रसाद, मौलाना आजाद आदि कुछ वर्गों और इलाकों तक जनाधार रखने वाले नेता थे. वह निर्विवादरूप से गांधी के बाद कांग्रेस के सबसे बड़े नेता बन गए थे.

9. तानाशाही नजरिया रखते थे

नेहरू के बारे में एक मिथक यह भी है कि वह तानाशाही तरीके से काम करते थे. इस धारणा के बनने की एक वजह यह भी हो सकती है कि नेहरू का कोई बहुत करीबी मित्र नहीं बन पाया और वो अपना कोई उत्तराधि‍कारी भी नहीं खड़ा कर पाए. लेकिन सच यह है कि उन्होंने देश में लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ाने के लिए काफी काम किया. वे अभिव्यक्ति की आजादी के प्रबल समर्थक थे. यही नहीं, आजादी के बाद जो मंत्रिमंडल बनी उसमें पंडित नेहरू अपने को सबसे बड़ा नहीं बल्कि ‘फर्स्ट अमंग इक्वल्स’ यानी बराबर के लोगों में प्रधान मानते थे. वे तो इस मामले में यहां तक लोकतांत्रिक थे कि उन्हें एक बार सरदार पटेल ने समझाया कि वे प्रधानमंत्री हैं और बाकी कैबिनेट मंत्रियों के काम में दखल दे सकते हैं.

10. अपने आर्थिक मॉडल से देश को बर्बाद किया

नेहरू के आर्थिेक मॉडल को भी देश की कथि‍त ‘बर्बादी’ की एक वजह माना जाता है. उनकी आर्थिक नीति असल में साम्यवाद और पूंजीवाद का एक घालमेल थी जिसे नेहरूवादी समाजवाद भी कहा गया. यह ठीक है कि आज उनकी नीतियां कुछ अजीबोगरीब लगती हैं, लेकिन आज के 70 साल पहले के भारत के लिए ऐसी नीति जरूरी थी, जिसको अंग्रेज पूरी तरह से चूस कर गए थे और जहां खाने का अनाज तक आयात करना पड़ता था. एक गरीब देश में घोर पूंजीवाद को लागू नहीं किया जा सकता था. लोककल्याण जरूरी था और उद्योगों का संरक्षण भी. इसलिए नेहरू ने बड़ी-बड़ी सरकारी कंपनियां यानी पीएसयू की स्थापना की जो ब्रेड से लेकर स्टील तक के उत्पादन में शामिल थीं. देश में बिजली, पानी, सड़क, खनन जैसे सभी सेक्टर में भारी पूंजी लगाने की जरूरत थी और तब निजी क्षेत्र इतना विकसित नहीं था कि उसे यह काम सौंपा जा सके.

Reference—— दिनेश अग्रहरि ( AAjtak dated 14th November 2019) (एम.जे. अकबर की किताब ‘कश्मीर बिहाइंड द वेल’, पीयूष बबेले की किताब ‘नेहरू मिथक और सत्य’, अशोक पांडेय की किताब ‘कश्मीरनामा’ तथा कुछ अन्य स्रोतों पर आधारित)

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