मामा को भारी पड़ा छोटा हाथ मारना

pavan bansal 1एक के बाद एक घोटाले मानों इस देश की संस्कृति में रच बस गए है,लेकिन इस बार जिस तरह से रेलवे का जिन्न बोतल से निकला है उससे तो लगता है कि नेता मोटे हाथ मारने के साथ-साथ अब घूसखोरी जैसे कमाई के छोटे मोटे मौके भी नहीं गंवाना चाहते।
बड़ी पार्टी का कद्दावर नेता जब घोटाले की जगह घूसखोरी पर उतर आए तो इज्जत का माखौल तो उड़ना ही था। दस साल बाद देश का सबसे महत्वपूर्ण मंत्रालय पार्टी के हाथ में आया सोचा था पार्टी का खजाना अकेले रेलवे से भर जाएगा। जिस को मंत्रालय सौंपा उसकी औकात तो घूसखोरी की निकली, घोटालों के लिए फेमस पार्टी की इमेज पर लानत पुतवा दी।
हद तो तब हो गई जब मंत्री पद बचाने के लिए नेताजी ने टोटके का सहारा लिया, सफेद बकरी बंगले पर मंगवाई गई,उसकी खूब खिलाई पिलाई की गई, बेचारी “बकरी” को तो पता भी न चला होगा कि उसकी इतनी सेवा क्यों की जा रही है। उधर,पत्नी ने भी नजर उतराई की रस्म अदा कर दी,पति कैसा भी हो वह तो उसके लिए तो हर हाल में परमेश्वर है।
अब फंस गए है तो कोई बचाने नहीं आ रहा। कोई बड़ा हाथ मारते तो पार्टी बचाव में उतर आती। न इस्तीफा देने का दबाव पड़ता न पार्टी की भद्द पिटती। लेन देन होना ही था तो किसी “दलाल” की सेवाएं ले लेते, नौसिखिए मामा ने फैमिली वालों की इज्जत पर भी कालिख पुतवा दी। भांजा फंसा तो बहन और जीजा खफा हो गए,गालियां सुननी पड़ रही है सो अलग।

विजय सिंह
विजय सिंह

घूसखोरी यानी अकेले माल गड़प जाना,घोटाला यानी मिल बांट कर खाना। यूं कहे कि आलाकमान अपना हिस्सा पाकर खुश और घोटाले करने वाले खुरचन से संतुष्ट। आखिर आलाकमान की कमाई का जरिए और है भी क्या। न कोई अपनी दुकान न अपना मकान, न सरकारी नौकरी। ऎसे में फ्यूचर और पीढियों के लिए कैश और ऎश का बंदोबस्त करने के लिए मंत्रियों को घोटाले के टिप्स देने ही पड़ते हैं। टिप्स भी ऎसा कि फंसे तो मंत्री फंसे,आलाकमान पर आंच भी न आए। जेल जाए तो मंत्री जाए, आलाकमान मौज उड़ाए।
-विजय सिंह

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