मोदी से पंगे का अंजाम बना गठबंधन का अंत

modi with nitish kumarसंजीव पांडेय– आखिरकार 17 साल पुराना राजनीति का वैवाहिक संबंध टूट गया। इससे पहले नितिश कुमार ने कहा था दुआ देते है जीने की, दवा देते है मरने की। इस शायराना अंदाज को ब्ययान करते हुए नितिश जरूर उन दिनों को याद कर रहे होंगे जब भाजपा के ही एलके आडवाणी और अरूण जेतली के कहने पर उन्होंने नरेंद्र मोदी से पंगे की शुरूआत की थी। लेकिन इस पंगे का आज यह परिणाम होगा, उन्हें अंदाज नहीं था। उन्हें यह अंदाज नहीं था कि राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ बाबरी मस्जिद के ध्वंस के जिम्मेदार एलके आडवाणी को दूध की मक्खी की तरह निकाल फेंकेगा और गुजरात दंगों के जिम्मेदार नरेंद्र मोदी को सर आंखों बिठाएगा। नितिश के लिए आगे कुंआ पीछे खाई की स्थिति थी। आज नितिश अपने स्टैंड से हटकर मोदी को स्वीकार करते तो उनकी पूरी राजनीतिक क्रेडिबिलिटी खत्म होती। जबकि संबंध विच्छेद की स्थिति में नितिश के सबसे पुराने दुश्मन लालू यादव फिर एक बार अब बिहार की राजनीति में हावी होंगे।

बात 2009 के लोकसभा और 2010 के बिहार विधानसभा चुनावों के समय की है। नितिश कुमार ने नरेंद्र मोदी को बिहार आने से रोक दिया था। वैसे तो राजनीतिक गलियारों में यह मैसेज दिया गया था कि मुस्लिम मत नाराज न हो इसलिए मोदी की एंट्री बिहार में प्रतिबंधित की गई थी। लेकिन राजनीति के जानकार बिहार में मोदी की एंट्री पर नितिश के प्रतिबंध को भाजपा के अंदरूनी राजनीति को जिम्मेवार बताते है। भाजपा के दो वरिष्ठ नेता एलके आडवाणी और अरूण जेतली नरेंद्र मोदी के बढ़ते कद को लेकर चिंतित थे। लेकिन सामने आकर मोदी से विरोध नहीं ले सकते थे। उन्होंने ही मोदी के बढते कद को रोकने के लिए नितिश को आगे किया था। नितिश उस समय एलके आडवाणी और अरूण जेतली की बातों में आ गए थे। क्योंकि ये भाजपा के उन नेताओं में थे जो नितिश के शर्तों पर राज्य में शासन चलाने के लिए भाजपा को नितिश के हवाले कर दिया था। इन्हीं कारणों से नरेंद्र मोदी को लेकर नितिश ने कुछ इस तरह का स्टैंड लिया मानों 1990 में पूरे देश में रथयात्रा के बाद मुस्लिम विरोधी उन्माद उपजाने एलके आडवाणी पूरी तरह से सेक्यूलर हो गए। जबकि गुजरात के दंगो के जिम्मेदार मोदी भारी कम्युनल हो गए। नितिश को उस समय यह अंदाज नहीं था कि भाजपा के अंदर एलके आडवाणी को इस तरह से किनारे लगाया जाएगा। जिस अरूण जेटली पर भारी विश्वास नितिश ने किया वे मोदी कैंप ज्वाइन कर गए।

नितिश ने बिहार की जनता के बीच यह संदेश देने की कोशिश की कि मोदी विरोधी स्टैंड के कारण वो भारी सेक्यूलर है। लेकिन इस स्टैंड का लाभ नितिश को मिलेगा इसमें भारी संदेह है। उसके कई कारण है। बिहार में अभी भी मुस्लिम मतदाता लालू यादव को ज्यादा विश्वनीय मानता है। उसका कारण है। 1990 में एलके आडवाणी के रथ को बिहार के समस्तीपुर में लालू यादव ने ही रोका था। हाल ही में महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र में हुए चुनाव में मुस्लिम मत लालू यादव को पड़े। नितिश कुमार के लगातार एंटी नरेंद्र मोदी स्टैंड का कोई लाभ महाराजगंज में नितिश को नहीं मिला। लेकिन इस चुनाव में नितिश को भारी नुकसान अलग हो गया। अगड़ी जातियां नितिश के एंटी नरेंद्र मोदी स्टैंड के कारण या तो शिथिल हो गई या नितिश को सबक सिखाने के लिए राजद को वोट कर आयी। बिहार के मुस्लिम मतदाताओं को अभी भी ये लगता है कि भाजपा से संबंध विच्छेद के बाद भी आज नहीं तो कल नितिश कुमार फिर भाजपा से दोस्ती करेंगे। इसका कारण नितिश कुमार की अवसरवादी राजनीति है। अपने राजनीतिक जीवन में नितिश ने अपने फायदे के लिए अपने पुराने दोस्तों को छोड़ा नए दोस्त बनाए। मुस्लिम मतदाताओं को पता है कि नितिश कुमार तब भी राजग के मंत्रिमंडल में मौजूद रहे जब गुजरात में भीषण दंगे हुए थे।

बिहार की जनसंख्या का भूगोल भी नितिश कुमार के पक्ष में नहीं है। पूरे बिहार में नितिश कुमार को भारी सफलता इसलिए मिली की कांग्रेस के परंपरागत समर्थक ऊंची जातियां जो फिलहाल भाजपा में है, वो पूरे राज्य में गठबंधन की स्थिति में नितिश के साथ आए है। लेकिन गठबंधन टूटने की स्थिति में ऊंची जातियों की स्वाभिवक पसंद भाजपा होगी। इसमें ब्राहमण, भूमिहार, राजपूत और बनिया शामिल है। महाराजगंज में भी नरेंद्र मोदी का लगातार विरोध से नाराज ऊंची जातियों ने नितिश को सबक सिखाने के लिए राजद को वोट दिया। लालू यादव ने इस सच्चाई को स्वीकार किया कि ऊंची जातियों क एक बड़ा तबका महाराजगंज में उन्हें वोट किया। ऊंची जातियों के हटने के बाद नितिश को सबसे बड़ी चुनौती पिछड़े समाज से मिलेगी, जिसके वोटिंग पैटर्न को मुस्लिम मतदाता नजदीक से देख अपना वोटिंग का फैसला लेता है। बिहार में नितिश कुमार की जाति कुर्मी सिर्फ छ जिलों में ही मजबूत स्थिति में है। जबकि लालू यादव की जाति बिहार के सभी जिलों में एक अच्छी संख्या लिए बैठे है। जिस अति पिछड़ा वोट पर नितिश भारी विश्वास कर रहे है, वो अभी भी जिलों के स्थानीय समीकरण के हिसाब भाजपा, लालू यादव और नितिश के बीच बंटा है। इन परिस्थितियों का लाभ लालू यादव को सबसे ज्यादा मिलेगा। बिहार में एक सफल मुस्लिम यादव समीकरण पूरे राज्य में बनता है। जबकि कुर्मी-मुस्लिम समीकरण बिहार के छ जिलों में सिमट जाएगा। वैसे भी अगर मुस्लिम मतदाताओं को अगर यह लगेगा कि ऊंची जातियों का वोट नितिश बजाए भाजपा की तरफ जा रहा है तो वे नितिश को वोट देकर अपना वोट खराब नहीं करेंगे। उनकी स्वभाविक पसंद लालू यादव होंगे। दिलचस्प स्थिति दलित वोटों का है। पासवान बिरादरी पूरे राज्य में नितिश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल बैठा है। जबकि महादलित वोट बंट गया है। ये भाजपा, नितिश और लालू के पास स्थानीय समीकरणों के हिसाब से जाएगा। महादलित अपने इलाके में दबंग बिरादरियों के रूख को देखते है। अगर इलाके में यादव दबंग है तो महादलित यादवों के साथ हो जाते है। अगर इलाके में ऊंची जाति के लोग दबंग है तो महादलित उनके साथ जाते है।

संजीव पांडेय
संजीव पांडेय

नितिश कुमार ने अपनी पहली पारी में कानून व्यवस्था और सड़कों को लेकर अच्छा काम किया था। इस कारण बिहार की जनता ने उन्हें दूसरी पारी दी थी। बिहार की जनता को नितिश की दूसरी पारी से काफी उम्मीद थी। जनता को उम्मीद थी कि बिजली, पानी और रोजगार को लेकर नितिश दूसरी पारी में अच्छा काम करेंगे। लेकिन नितिश को भारी विफलता हाथ लगी। राज्य में निवेश भी नहीं आया। राज्य में बिजली और पानी का भारी संकट है। बिजली गांवों में है नहीं, शहरों में बीस घंटे का पावर कट है। इस कारण राज्य में निवेश न के बराबर है। जो सड़कें नितिश कुमार ने पहली पारी में बनवायी थी वो आज जर्जर हालात में है। सड़कों को देख एक बार फिर लोगों को लालू यादव का समय ही याद आता है। लेकिन ताजा मामला भ्रष्टाचार है। लालू यादव के समय में भ्रष्टाचार का पैमाना काफी कम था। लेकिन आज बिहार भ्रष्टाचार में अवार्ड लेने की स्थिति में आ गया है। छोटे से छोटे काम के लिए ब्लॉक से लेकर जिलों के प्रशासनिक मुख्यालयों में पैसे की मांग की जाती है। चाहे जाति प्रमाणपत्र लेना हो या जमीन का मोटेशन करवाना है। भ्रष्टाचार इस समय बिहार में भारी मुद्दा बन चुका है। आम जनता के बीच एक गरीब राज्य के मंत्रियों और नौकरशाही के अमीर होने की चर्चा आम है। http://visfot.com से साभार

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